परिश्रम 
Parishram



व्यक्ति के कर्म ही उसके व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं।

विनोबा भावे


ईमानदारी से किया गया परिश्रम सफलता को और समीप ला देता है।

अज्ञात


हम जिस वस्तु की मूलतः कामना करते हैं, उसी से कर्म की उत्पत्ति होती है।

अज्ञात


प्राणियों के सारे कर्म दस बुराइयों से दूषित हो जाते हैं और यदि इन दस बुराइयों से दूर रहा जाए, तो वे अच्छे बन जाते हैं। इसमें तीन बुराइयां शरीर की हैं, चार जीभ की और तीन मन की।

भगवान बुद्ध


कर्म की सार्थकता फल में नहीं, कर्मठता में हैं, उस पुरुषार्थ में है, जो एकएक कदम की गति, एकएक कदम की चढ़ाई का आनंद लेता है। वास्तव में चढ़ाई के प्रयत्न का सुख अपनेआपमें इतना मीठा है कि उसकी तृप्ति की कोई सीमा नहीं।

जवाहरलाल नेहरू


मेरे दाहिने हाथ में कर्म है, बाएं हाथ में जय है।

अथर्ववेद



परिश्रम ऋण को चुकाता है, आलस्य उसे बढ़ाता है।

स्वामी विवेकानंद


कर्म ही कामधेनु है।

महात्मा गांधी


देह जल से पवित्र होती है मन सत्य से, आत्मा धर्म से और बुद्धि मन से पवित्र होती है।

मनुस्मृति


परस्पर विरोधी बातों के बीच एकता कराने से अधिक कठिन काम कोई और नहीं है।

ओवेन डिक्सन