पिता का पुत्र को औपचारिक पत्र।

740, कूडे वालान, 

अजमेरी गेट, 

दिल्ली-6 

दिनांक 10 नवंबर, ...... 


प्रिय पुत्र सुमन,

चिरंजीव रहो ! 

काफी समय से तुम्हारा कोई समाचार नहीं मिला । घर से जाते समय तुमने हर सप्ताह पत्र लिखने का वचन दिया था; पर सप्ताह के स्थान पर मास बीतने को आ गया है । आशा है कि तुम सकुशल होंगे और पत्र यथाशीघ्र लिखोगे ।

पिछले रविवार को तुम्हारा मित्र जीवन यहाँ आया था । बातों ही बातों में वह कह गया कि तुम्हें सिनेमा की लत लग गई है। किसी भी चीज की लत लग जाना बुरा है । मनोरंजन के लिए कभी-कभी चित्र देख लेना कोई बुराई की बात नहीं है, पर इसकी लत बुरी है । इसके शौकीन विद्यार्थियों का अध्ययन प्रायः छूट-सा जाता है । आदर्शवाद पीछे रह जाता है । जीवन का लक्ष्य भुला दिया जाता है और दिन-रात अभिनेता और अभिनेत्रियों के विषय में ही विचार करते हुए बीत जाते हैं । इतना ही नहीं, उस समय किसी फिल्म के गीत भी गुनगुनाये जाते हैं । अभिनेता सरीखा बनने का प्रयास किया जाता है। विद्यार्थियों की, इस तरह के दुष्प्रभावों से जहाँ तक हो सके दूर ही रहने में भलाई है। उन्हें अपनी आर्थिक स्थिति को देखकर चलना चाहिए । सादगी और संयम से विदयार्जन करना उनका धर्म होना चाहिए।

आशा है कि तुम इस पत्र को पाकर उस पर आचरण करोगे । अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखोगे । दूध और फलादि का सेवन नहीं छोडोगे । तुम्हारी माता जी तुम्हें बहुत याद करती हैं । कविता तुम्हें नमस्ते कहती है।

पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में । 

तुम्हारा स्नेही पिता,

बद्रीनाथ