पुत्र का पिता के नाम औपचारिक पत्र ।


कक्ष सं० 12, 

हिंदू छात्रावास, 

इलाहाबाद ।

दिनांक 18 अगस्त, ..... 


पूज्य पिता जी,

सादर प्रणाम । 

आपका भेजा हुआ साढ़े तीन सौ रुपये का मनीआर्डर प्राप्त हुआ । मैंने उसमें से छात्रावास तथा विश्वविद्यालय का शुल्क दे दिया है । अब मैं निश्चित होकर अपने अध्ययन कार्य में जुट गया हूँ । संगीता की याद मुझे यहाँ बहुत सताती है। कभी-कभी तो पढ़ते-पढ़ते उसकी सतौनी सूरत पुस्तक के पृष्ठ पर साकार हो उठती है । कल जब मैं भक्त प्रवर सूरदास के कृष्ण की बाल लीला संबंधी पदों का मनन कर रहा था, तो सहसा मुझे संगीता का पाजेब पहन कर ठुमक-ठुमककर चलना स्मरण हो आया । दशहरे के अवकाश के दिनों में घर आऊँगा और संगीता के लिए सुंदर-सुंदर फ्राक और खिलौने लाऊँगा ।

कुछ पाठ्य-पुस्तकें क्रय करनी हैं। उनके लिए कम से कम पचास रुपये और चाहिए । कृपया उन्हें यथाशीघ्र मनीआर्डर द्वारा भेज दें । पारिवारिक कुशल समाचार यथाशीघ्र भेज दिया करें । बड़ों को नमस्ते व छोटों को मृदुल प्यार ।

पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में । 

आपका आज्ञाकारी पुत्र, 

रवींद्र शरण