पिता का पुत्र को पत्र-नियमित जीवन के विषय में 


5, अंसारी रोड, 

दरियागंज, 

नई दिल्ली-110002 

दिनांक 31 जनवरी, ..


प्रिय रोहन, 

आनंदित रहो ।

अत्र कुशलं तत्रास्तु । कई दिनों की प्रतीक्षा के बाद आज तुम्हारा पत्र मिला । समाचार से अवगत हुआ । तुम्हारे छात्रावास में विधिवत रहने की बात जानकर बहुत खुशी हुई । अब इस बात का भी संतोष है कि तुम कुछ ही दिनों में उत्तम आचरण व कर्तव्यपरायणता की अनेक अच्छी बातें सीख जाओगे । विद्यार्थी जीवन ही भावी जीवन के निर्माण की सोपान है । जो इस सोपान पर चढ़ना सीख जाते हैं, वे अपने जीवन में सफल कहलाते हैं । उन्हें किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं होता । विश्व के जितने भी महापुरुष हुए हैं, सभी ने इस जीवन के महत्त्व को समझा है । इसी पर हमारी प्रगति निर्भर है।

जैसा कि तुम्हारे पूर्व पत्र से पता चला है कि तुम्हारे छात्रावास का कार्यक्रम पूर्णतया शृंखलाबद्ध हैं, यह तुम्हारे लिए बहुत ही अच्छा है । यदि तुम अभी से नियमितता का आचरण करने लगोगे तो भविष्य तुम्हारा सुखमय होगा। विश्व में वे ही लोग कुछ कर सकते हैं जिनका जीवन व्यवस्थित होता है । उनमें नियमितता स्वयं ही आ जाती है । यही सारे जीवन की सफलता की कुंजी है ।

नियमितता मानव का एक बहुत बड़ा गुण है । जिनमें यह गुण पाया जाता है, वे सभ्यता एवं संस्कृति की दौड़ में सबसे आगे रहते हैं । इसी से हमारे आचरण ऊँचे उठते हैं और समाज में विशेष सम्मान मलता है। अनियमितता इंसान को पशु बना देती है । नियमितता के द्वारा हम शारीरिक तथा मानसिक रूप से अपने को स्वस्थ रख सकते हैं । इसे अपनी सफलता का मूल मंत्र समझना चाहिए और इसके विकास में प्रयत्नशील रहना चाहिए ।

शेष सब ठीक है । तुम्हारी माता जी तुम्हें आशीर्वाद देती हैं और मन्ना नमस्ते कहता है । अपने स्वास्थ्य का सदैव ध्यान रखना । किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो लिखना ।

तुम्हारा शुभचिंतक,

योगेश्वर चंद्र