यात्रा का उल्लेख करते हुए छोटी बहिन को पत्र




रामेश्वरम । 

दिनांक 18 अक्टूबर,..... 


प्रिय कुसुम, 

आनंदित रहो ।

अत्र कुशलं तत्रास्तु। बहुत दिनों से तुम्हें पत्र लिखने की सोच रहा था, समय ही नहीं मिल पाया, आज बड़ी मुश्किल से लिखने बैठा हूँ। हमने थोड़े ही दिनों में बहुत कुछ देख डाला । यह कहने में भी अत्युक्ति न होगी कि सारा दक्षिण भारत ही रौंद डाला । यहाँ के विशाल देवालयों में पत्थर की सुंदर नक्काशी, पुरातन कला की प्रतीक मूर्तियाँ और त्रिपुंडधारी ब्राह्मण देखे । मुझे दक्षिण भारत में सबसे अच्छा मैसूर लगा । इसे यहाँ का नंदन वन कहा जाता है । सुंदर गगनचुंबी प्रासाद, सुंदर उद्यान, चौड़े और खुले राजमार्ग देखते-देखते नेत्र नहीं अघाते । हम भारतवर्ष का सर्वश्रेष्ठ प्रपात 'ऊटी प्रपात' देखने गए। बड़ी ही ठंडी रम्य स्थली है । सच कहूँ कुसुम, मेरा मन तो इसी पर्वतीय स्थली में रम गया है।

इसके बाद 'मद्रास दर्शन' किए । यहाँ के विशाल भवन और चौड़ी सड़कें बड़ी शानदार हैं । यहाँ के सागर तट पर भ्रमण करने में विशेष आनंद आता है। यहाँ पर छोटे-छोटे बगीचे बने हुए हैं, जिनमें संध्या समय मधुर संगीत चलता रहता है । काश ! तुम भी मेरे साथ होती ।

माता जी ने चलते समय कुछ नमकीन और बेसन के लड्डू बना दिए थे। वे इस यात्रा में बहुत काम आए । कल महाबलीपुरम देखने के बाद रामेश्वरम जा रहे हैं । कदाचित दो सप्ताह तक मेरा लौटना हो सकेगा।

माता जी तथा पिता जी को मेरा प्रणाम कहना । तुम्हारे लिए मैंने हर स्थान की सुंदर-सुंदर वस्तुएँ लेकर रख ली हैं। शेष फिर लिखूँगा। रात काफी हो चुकी है। 

तुम्हारा बड़ा भाई, 

प्रमोद कुमार