दुखी बहिन का बड़े भाई को पत्र घर बुलाने के लिए ।




मौहल्ला कानूनगोयान, 

मुरादाबाद । 

दिनांक 4 फरवरी, ...... 


आदरणीय भाई साहब,

सादर नमस्ते । 

बहुत दिनों से आपका कोई पत्र नहीं मिला । आपने भी क्या मुझ अभागिन को अपने मन से बिसार दिया ? आप भी समय के साथ-साथ ऐसे निष्ठुर बन जाओगे, ऐसा कभी नहीं सोचा था । कदाचित जिसे मैं निष्ठुरता समझ बैठी हूँ, वह समय का अभाव भी हो सकता है । भगवान करे ऐसा ही हो ।

एक सप्ताह से आपको पत्र लिखने की सोच रही थी, पर आज किसी तरह साहस बटोरकर लिखने बैठी हूँ। उनके आँख मूंद लेने के बाद इस दुनिया में आप ही मेरा अवलंबन हैं । सोचा था, भैया यहाँ ससुराल में सास-ससुर की सेवा करके जिंदगी के बाकी दिन काट दूंगी । परंतु अभी उनकी चिता की राख भी ठंडी न हो पाई थी कि सास जी ने आँखें फेर ली । ताने और गाली गलौच भी किसी तरह सहन करती रही पर अब तो उससे भी बढ़कर मेरी शोचनीय अवस्था कर दी गई । सारा दिन काम धंधे में लगे रहने के बाद बचा-कुचा खाने को मिलता है और फिर साथ में मार भी । रोज-रोज की मार ने शरीर छलनी कर दिया है । 'पति को डस गई सर्पिनी' यह व्यंग्यात्मक प्रहार ससुर जी की ओर से सुनने को मिलते हैं । मेरी सहनशीलता उनके व्यवहार को न बदल सकी। अब इस अत्याचार को चुपचाप कब तक सहन करूं? आप ही मुझे बता दें।

विवश होकर यह सब कुछ लिख रही हूँ, भैया । मुझे अब अपने पास बुला लो । वहाँ पर सिलाई-कढ़ाई करके किसी तरह अपना गुजारा कर लूँगी । बहिन का भार आपको सहन न करने दूंगी। इससे भाभी जी को भी असुविधा न होगी। मेरे लिए तो आप ही पिता के स्थान पर हैं । मैं अपनी पीड़ा को और किस पर व्यक्त कर सकती हूँ?

जल्दी ही मुझे यहाँ आकर ले जाइएगा । पंद्रह दिन तक मैं आपकी प्रतीक्षा करूँगी । बाद में शायद आप कभी भी इस अभागिन को न देख सकेंगे । भाभी जी को नमस्ते व मुन्ना को प्यार ।

आपकी अभागिन बहन,

मोहिनी