मेरा प्रिय खिलौना 
Mera Priya Khilona



खिलौना बच्चों का प्रियतम मित्र होता है। बच्चे जितनी बातें सजीव वस्तुओं से नहीं करते उतनी बातें निर्जीव वस्तु खिलौने से करते हैं।

मेरा सबसे प्रिय खिलौना लकड़ी का बना घोड़ा है। इसे मैं कैलाश के मेले से खरीद कर लाया था। मैं इस पर पहली नजर में ही मोहित हो गया था। अपने बड़े भाई से निवेदन करके मैंने इसे खरीदा था। मैं इसके साथ घंटों संवाद करता हूँ। मैं जब अपने गृहकार्य से मुक्त होता हूँ तो मेरा खिलौना मेरा बेचैनी से इन्तजार करता है और जब मैं इसके पास जाता हँ तो मुझसे खेलने का इशारा आँखों ही आँखों में करता है। जब मैं इसके दोनों कान पकड़कर इसकी पीठ पर बैठता हूँ तो यह राणा प्रताप के घोड़े चेतक को भी चुनौती देता है और अपने पहियों पर सरपट दौड़ता है। मेरी बहिन इसे तब पकड़ भी नहीं पाती है। मैं जब सुबह नहाता हूँ तो यह भी नहाने की जिद करता है। मैं जब इसको नहीं नहलाता हूँ तो यह मुझे अपनी पीठ से गिराकर मेरी बहिन की शरण में भाग जाता है। वास्तव में मैंने इसके लिये पाँच जोड़ी कपड़े सिलवा रखे हैं। मैं जब भी नये कपडे पहनता हूँ तो यह नाराज हो जाता है और मुझे इसके लिये नयी पोशाक सिलवाई है। जब हम खेलते-खेलते दोनों थक जाते हैं तो हम दोनों एक-दूसर की बाँहों में बाँहें डालकर सो जाते हैं। खेलते समय जब इसकी पूँछ को मैं पकड़ता हैं तो यह हिरन हो जाता है और तेज दाड़ता है। फिर हाथ से छूट जाने पर यह मुझे नाराज करना चाहता है और मुझ इसका काफी पीछा करना पड़ता है। तब कहीं जाकर मैं अपने दोस्त घोड़े को अपने सीने से लगाता हूँ। जब मैं इससे दूर हो जाता हूँ तो इसके वियोग में मेरी आँखें नम हो जाती हैं। मैंने इसके नहाने के लिये लाइफबॉय साबुन खरीद रखा है। इसकी मालिश प्रतिदिन की जाती है। मैं इसके हजार नखरे सहन करता हूँ। जब मेरा घोड़ा रूठता हो तो मानो मेरा संसार मुझसे छिन गया हो। वास्तव में, मेरा घोड़ा मेरा दोस्त और खुशियों से भरा उपहार है।

300 Words