शिष्टाचार 
Shishtachar



अच्छी आदतें तथा शिष्टाचार किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के लिये अत्यंत आवश्यक होते हैं। शिष्टाचार ही मनुष्य के व्यक्तित्व का दर्पण होता है। मनुष्य अपने सभ्य व्यवहार तथा शिष्टाचार से ही किसी दूसरे व्यक्ति पर अपना प्रभाव छोड़ सकता है। शिष्टाचार के बिना व्यक्ति का जीवन अभिशप्त है। शिष्टाचार ही मनुष्य तथा पशुओं में अन्तर करता है। मनुष्य सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि वह शिष्टाचार से परिचित है। शिष्टाचार के हर समाज तथा सभ्यता में अलग-अलग मानक हैं। 


मनुष्य अपने घर से ही शिष्टाचार सीखता है। हर विद्यालय में छात्रों को सामान्य रूप से शिष्टाचार तथा सही व्यवहार करना सिखाया जाता है। फिर हम अपने पूरे जीवन में विभिन्न अच्छी आदतों तथा शिष्टाचारों को सीखते हैं तथा उनका प्रयोग करते हैं। किसी के आने पर उसका अभिवादन, खाना खाने का ढंग, किसी से मिलने पर प्रतिक्रिया का ढंग, बड़ों तथा छोटों से बातचीत का तरीका ये सब शिष्टाचार में आता है। जैसे हिन्द समाज में किसी बड़े से मिलने पर उसके पैर छूकर आशीर्वाद लिया जाता है, नमस्कार किया जाता है। मुस्लिम लोग एक दूसरे को सलाम करके अभिवादन करते हैं। इस प्रकार हर समाज में शिष्टाचार के तरीके भी अलग-अलग हो सकते हैं। हमें दूसरे से बात करते समय अत्यंत मित्रवत् तरीके से बोलना चाहिये। उचित समय पर 'कृपया' तथा 'धन्यवाद' शब्दों का प्रयोग शिष्टाचार की परिधि में ही आता है। शिष्टाचार कभी हानिकर नहीं हो सकता। बल्कि कभी कभी हमारा सभ्य व्यवहार तथा अच्छा बर्ताव दूसरे व्यक्ति को इतना प्रभावित कर देता है कि हमारे बिगड़े कार्य बन जाते हैं। किसी के प्रति अच्छा व्यवहार करके हम उसके प्रति सम्मान प्रकट करते हैं तो अन्य व्यक्ति भी हमें आदर की दृष्टि से देखता है। शिष्टाचार तथा नम्र व्यवहार के बिना तो सभ्य समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आदर्श विद्यार्थी बनने के लिये शिक्षा, खेलकूद ही नहीं बल्कि शिष्टाचार भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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