बिजली को कैसे बनाई जाती है
Bijli ko Kaise banaya jata hai
विद्युत ऊर्जा मानव जीवन के लिए इतनी आवश्यक हो गई है
कि अब तो इसके बिना काम चलना असंभव सा लगता है। संसार के सभी उद्योगों में काम आने
वाली लगभग सभी मशीनें बिजली से ही चलती हैं। रेल, मोटर, हवाई जहाज सभी में विद्युत ऊर्जा की आवश्यकता होती हैं। प्रकाश पैदा करने के
लिए बिजली हमारे लिए एक वरदान सिद्ध हुई है।
बिजली पैदा करने वाली मशीनों को डायनमो या जेनेरेटर
कहते हैं। डायनमो में एक विशाल चुंबक होता है जिसके दोनों ध्रुवों के बीच तांबे के
तारों से बनी हुई एक आयताकार कुंडली घूमती है। इस कुंडली के दोनों सिरों का संबंध धातु
के दो छल्लों से होता है। प्रत्येक छल्ला कार्बन के ब्रश को स्पर्श करता रहता है।
कार्बन ब्रशों से विद्युतधारा से जाने वाले तार जुड़े होते हैं। जब तांबे के तारों
की आयताकार कुंडली चुंबक के ध्रुवों के बीच घूमती है तो विद्युत चंबकीय प्रेरण
द्वारा बिजली पैदा होती हैं जो धातु के छल्लों से स्पर्श करने वाले कार्बन ब्रशों
से होती हुई बिजली के तारों में चली जाती है। ये ही तारे हमारे घरों और फैक्टरियों
तक आते हैं। इस प्रकार बिजली हम तक पहुंच जाती है।
अब प्रश्न उठता कि डायनमो में तांबे के तारों की
कुंडली को कैसे घुमाया जाता है? इनको घुमाने के आमतौर पर दो तरीके
काम में लाए जाते हैं। पहले तरीके में नदियों पर बांध बनाकर पानी को बहुत उंचाई से
गिराया जाता है। यह पानी टरबाइन के ब्लेड़ों पर गिरता है जिससे इसकी धुरी घूमने
लगती है। टरबाइन की धूरी का संबंध जेनरेटर की कुंडली के
धुरे से होता है। टरबाइन के चलने से यह कुंडली भी घूमने लगती है और
बिजली पैदा होने लगती है। इस प्रकार से विद्युत पैदा करने वाले केंद्रों को जल
विद्युत केंद्र कहते हैं। भाखड़ा में विद्युत पैदा करने का ऐसा एक ही केंद्र है।
0 Comments