समुद्रों में ज्वार क्यों आते हैं 
Samudro me jwar kyo aate hai 



समुद्रों में पानी में उठती और गिरती विशाल लहरों को ज्वार-भाटा कहते हैं। कभी-कभी तो इन लहरों की उंचाई इतनी अधिक होती है कि देखने में ऐसा लगता है जैसे कोई बहुत ऊंची दीवार पानी की सतह पर चल रही हो।

समुद्रों में ज्वार आने का मुख्य कारण चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल है। हम जानते हैं कि चंद्रमा हमारी धरती का एक मान उपग्रह है। हम यह भी जानते हैं कि ब्रह्ममांड की हर वस्तु दूसरी वस्तु को एक आकर्षण बल से खींचती है जिसे गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं। चंद्रमा और पृथ्वी के बीच का गुरुत्वाकर्षण बल इतना अधिक है कि यह 400 किमी. व्यास की स्टील की छड़ को तोड़ सकता है। इस बल से पृथ्वी के ठोस भाग में तो कोई परिवर्तन नहीं हो पाता परंतु उसकी सतह पर स्थित समुद्रों के पानी में चढ़ाव और उतार पैदा होते रहते हैं। समुद्र में किसी स्थान पर प्रतिदिन लगभग छः घंटे तक पानी ऊपर पठता है और अगले छः घंटे तक नीचे गिरता है। यही पानी का चढ़ाव और उतार ज्वार-भाटा कहलाता है। पानी हर 12 घंटों 25 मिनट के बाद ऊपर उठता है। इस प्रकार एक दिन व रात में अर्थात 24 घंटे 50 मिनट में एक स्थान पर दो बार ज्वार आता है। चंद्रमा पृथ्वी की सतह के जिस ओर होता है ज्वार भी उस तरह आता है और विपरीत दिशा में भी। 12 घंटे और 25 मिनट बाद चंद्रमा की स्थिति पृथ्वी की विपरीत दिशा में पहुंच जाती है, इसलिए ज्वार फिर 12 घंटे 25 मिनट बाद उन्हीं दोनों स्थानों पर आ जाता है। इस प्रकार एक दिन और रात में किसी एक स्थान पर दो बार ज्वार आते हैं।

समुद्रों में आने वाले ज्वारों पर सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल का भी प्रभाव पड़ता है, लेकिन चंद्रमा की अपेक्षा कम। जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक ही रेखा में होते हैं, तब पृथ्वी पर खिंचाव बल बहुत अधिक होता है। इस स्थिति में आने वाले ज्वार बहुत विशाल होते हैं। इनको ‘स्प्रिंग टाइड' कहते हैं। ऐसे ज्वार पूर्णिमा और अमावस्या के दिन आते हैं। सूर्य और चंद्रमा जब एक दूसरे के लंबवत दिशा में होते हैं तब आकर्षण बल बहुत कम होता है। उस समय आने वाले ज्वार छोटे-मोट हाते हैं। इनको ‘नीव टाइड' कहते हैं। ऐसा पूर्णिमा और अमावस्या के बीच में होता हैं। ज्वारों की ऊचाई 15 मीटर तक हो सकती है। ज्वार आने से कई फायदे भी है। पानी की लहरों के साथ समुद्रों में मिलने वाली बहुत सी कीमत वस्तुएं किनारों तक आ जाती हैं।