गंध को नाक कैसे बताती है
Gandh ko naak kaise batati hai



नाक हमारे शरीर का एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है। यदि हमारी नाक टीक नहीं है तो दुर्गध और सुगंध का कोई अर्थ ही नहीं है। अगर हमें जुकाम हो जाए तो फूल की सुगंध को हम अनुभव नहीं कर पाते।

हमारी नाक, होंठों के ऊपर और माथे के नीचे दोनों आंखों के बीच में दो हड़ियों से बनी हुई हैं। ये दो हड्डियां एक प्रकार का पुल बनाती है। इनके बीच कार्टीजेज की बनी नरम दीवार होती है जो नाक को दो भागों में बांटती है। इन्हें नासिका नलियां कहते हैं। नासिका नलियों के अंत में एक पतली झिल्ली होती है जिसे म्यूकस मेम्बरेन कहते हैं। इससे एक प्रकार का तरल पदार्थ निकलता रहता है जो नाक को गीला रखता है। नासिका में बाल होते हैं जो अंदर जाने वाली वायु को गर्म करते हैं और धूल कणों को फेफड़ों में जाने से रोकते हैं। नासिका से छनी हुई वायु ट्रेकिया से होती हुई फेफड़ों में जाती है।

गंध का ज्ञान नासिका के अंत में स्थित दो आलफेक्टरी नाड़ियों में उपस्थित कुछ विशेष कोशिकाओं द्वारा किया जाता है। इन्हें रिसेप्टर कहते हैं। ये कोशिकाएं लगभग 250 वर्ग मिलीमीटर के क्षेत्रफल में फैली हुई हैं। जब हम किसी वस्तु को संघते हैं तो उससे निकलने वाले कण नासिका द्वारा इस संवेदनशील क्षेत्र तक पहंचते हैं। वहां जाकर ये नाड़ियों में विद्युतधारा पैदा करते हैं। विद्युतधारा के रूप में यह सूचना मस्तिष्क के गंध केंद्र तक पहुंचती है और हमें गंध का अनुभव हो जाता है।

एक सिद्धांत के अनुसार हमारी नाक में सात प्रकार के बंध रिसेप्टर हैं जो सात प्रकार की गंधों का भेद का पता करते हैं। सात प्रकार की गंध इस प्रकार है-फलों से आने वाली गंध, तीखी गंध, चीजों के जलने से पैदा हुई गंध, एल्कोहल जैसी गंध, फलों से आने वाली गंध, कस्तूरी जैसी गंध और पिपरमेंट जैसी गंध। इन गंधों के कण नाक के अंदर आकर आलफेक्टरी नर्व की कोशिकाओं में घुलकर विद्युतधारा के रूप में गंध का संदेश मस्तिष्क तक पहुंचाते हैं और हमें गंध का पता चल जाता है।

जकाम आदि में जब कोशिकाएं ढक जाती हैं तो हमें गंध का अनुभव नहीं होता। मनुष्य की सूंघने की शक्ति जानवरों से कम होती है। कुत्ते की सूंघने की शक्ति बहुत तेज होती है।