नक्षत्र-युद्ध | Nakshatra Yudh



द्वितीय विश्वयुद्ध में जिस दिन अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा पर साढ़े बारह किलो टन के अणु बम का विस्फोट कर दिया, उसी दिन से हमारी इस दुनिया में आण्विक युग का सूत्रपात हो गया। इसके बाद संसार के शक्तिशाली देशों में आण्विक अस्त्रों के संग्रह की प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई। एक से बढ़कर एक घातक आण्विक अस्त्रों का निर्माण शुरू हो गया। अणु बम से हजार गुना अधिक शक्ति वाले हाइड्रोजन बम का भी आविष्कार हुआ। आण्विक प्रक्षेपास्त्रों से युक्त पनडुब्बियों बनने लगी। मत्रिपस वारहेड बने। सोवियत संघ ने ए.बी.एम. प्रक्षेपास्त्रों का निर्माण किया। क्रूज मिसाइल और न्यूट्रॉन बम भी बने। सोवियत संघ ने 1957 में अंतरिक्ष प्रतिस्पर्धा का आरंभ स्यूतनिक 7 भेजकर किया। इसके बाद सामरिक उद्देश्य से अंतरिक्ष में एक के बाद एक उपग्रह भेजे जाने लगे। उपग्रहों को नष्ट करने के लिए 'लेसर’ रश्मि का भी प्रयोग होने लगा। इसके अलावा रासायनिक और जीवाणु युद्ध भी वर्तमान युग की विभीषिकाएं हैं।


23 मई, 1983 को प्रेसीडेंट रेगन ने अमेरिका की जनता को संबोधित करके जो भाषण दिया, उसे ही नक्षत्र-युद्ध संबंधी भाषण कहा जाता है। इसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से घोषणा की कि भविष्य में कोई आण्विक अस्त्रों द्वारा आक्रमण होने पर उसे प्रतिहत करने के लिए नये वैज्ञानिक उपाय करने पड़ेंगे। उन्हें अंतरिक्ष में ही समाप्त कर दिया जाएगा। 'स्टार्स वॉर' नाम का एक लोकप्रिय अमेरिकी चलचित्र भी है। रेगन के अंतरिक्ष-युद्ध विषयक घोषणा तभी इस चलचित्र के नाम से जुड़ गई है। सन् 1984 में रेगन के निर्देशानुसार वैज्ञानिकों ने अपनी गवेषणा की एक नयी रूपरेखा तैयार की। इसका नामकरण हुआ एस.डी.आई.। गंवेषणा का विषय हुआ अत्यंत शक्तिशाली लेसर रश्मि द्वारा किसी आण्विक प्रक्षेपास्त्र को अंतरिक्ष में या किसी अन्य इच्छित स्थान पर नष्ट कर देना। इसके अतिरिक्त इस लेसर रश्मि के नियंत्रण के लिए प्रयोजनीय उन्नत प्रकार के अचूक संयंत्र भी बनाए गए।


अमेरिकी धारणा थी कि उसकी नक्षत्र-युद्ध संबंधी योजना सोवियत संघ का भयभीत कर देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। विश्व में शक्ति का संतुलन बनाए रखने के लिए सोवियत संघ अंतरिक्ष-युद्ध का मुकाबला करने के लिए तैयारी करने लगा। इसी बीच रूस ने अमेरिका के प्रक्षेपास्त्र उपग्रहों को नष्ट करने वाला एक अत्य आधुनिक अस्त्र बना लिया। इस अस्त्र का आवरण इस प्रकार बनाया गया है कि लेसर रश्मि के प्रयोग से भी इसे नष्ट नहीं किया जा सकता है।


लेकिन दुनिया का सौभाग्य यह है कि अमेरिका के ही लगभग साढ़े छह हजार वैज्ञानिकों ने रेगन के नक्षत्र-युद्ध संबंधी योजना का विरोध कर दिया। उन वैज्ञानिकों ने मानव-जाति को ध्वंस से बचाने के लिए शपथ ली। इन सबमें 15 वैज्ञानिकों और प्राध्यापकों ने कहा कि उनका कार्यक्रम आण्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ाएगा। इन वैज्ञानिकों का कदम अमेरिका की युद्ध नीति के खिलाफ एक जेहाद था। अंतरिक्षयुद्ध कार्यक्रम के सबसे प्रबल विरोधी थे। इलिनोय विश्वविद्यालय भौतिक विज्ञान के अध्यापक जॉन कोगार। उन्होंने सूचित किया कि इलिनोय व विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान तथा इंजीनियरिंग संकाम के अधिकांश अध्यापक रेगन के अंतरिक्ष कार्यक्रम में भाग नहीं लेंगे।


द्वितीय विश्वयुद्ध में मानव से एक महाविभीषिका के दर्शन किए। लेकिन इसके बाद भी युद्ध नहीं रुक सका। भूखंड पर आज भी युद्ध की आग जल रही थी। जिसमें मनुष्य और संपदा राख हो गए हैं। आज विश्व में जल, स्थल और अंतरिक्ष में आण्विक युद्ध की तैयारी हो रही हैं। इस व्यापक भावी युद्ध का परिणाम संसार के असंख्य लोगों की मृत्यु के रूप में दिखाई पड़ेगा। आज सर्वत्र लोग युद्ध से विमुख होकर शांति की कामना कर रहे हैं। संसार में करोड़ों शांतिकामी मनुष्यों की आंतरिक इच्छा कदापि व्यर्थ नहीं होगी। किंतु निश्चित रूप से रेगन जैसे युद्ध कामी व्यक्तियों की इच्छा व्यर्थ होगी, इसमें संदेह नहीं है।