राम जन्म-भूमि का विवाद 
Ram Janam Bhumi ka Vivad



भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था। वे अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र थे। उन्होंने अपने पिता और सौतेली माता के कैकेयी की आज्ञा से अपना राज्य छोड़ दिया। वनों में रहते हुए राक्षस जाति का विनाश कर धर्म की स्थापना की। चूंकि राम एक आदर्श पुरुष थे, अतः राम को पूजा जाता है। उनके पुत्र कुश ने उनकी जन्म-भूमि पर एक मंदिर का निर्माण किया था।

राम जन्म-भूमि अयोध्या में निर्मित वह मंदिर सबसे पहले यूनानी मिनेंडर द्वारा 150 ई. पू. में ध्वस्त किया गया था। शंगराजा धुमत्सेन में तीन माह में पुनः मंदिर को निर्मित करा दिया गया था। बौद्धकाल में मंदिर की उपेक्षा होती रही। उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने पुराने दस्तावेजों के आधार पर राम जन्म-भूमि का निर्धारण किया और पुनः मंदिर का निर्माण कराया। वह एक भव्य कलात्मक मंदिर था, जिसमें 84 काले कसौटी के स्तंभ थे। इस मंदिर पर सन् 1033 ई. में सालार मसदू ने दो बार आक्रमण किया। राजा सहलदेव ने उसे बहराइच के युद्ध में मार डाला।

मुगल बादशाह बाबर ने सन् 1526 से 1530 के मध्य इस पर चार बार आक्रमण किए। उसके सेनापति मीरबांकी ने मंदिर को ध्वस्त कर डस मलवे पर मस्जिद का निर्माण कराया। भीटी के राजा मेहताबसिंह, हंसवार के राजमुख पंडित देवी दीनपांडे, राजा रणविजय सिंह और रानीजय कुमारी ने मुगलों का सामना किया। हुमायूं के राज्य काल में मंदिर पांच बार आक्रमण हुए। रानी जयकुमारी ने महिलाओं की सेना तैयार कर लड़ाई लड़ी। स्वामी में हशानंद साधुओं को लेकर लड़े। अकबर के युग में 20 बार आक्रमण हुए। राजा टोडरमल और बीरबल की सलाह मानकर अकबर ने पास में एक चबूतरे पर मंदिर निर्माण की आज्ञा दी। इसके बाद औरंगजेब के समय में भी कई बार आक्रमण हुए। जिसमें हिंदुओं को हार का सामना करना पड़ा।

आज तक राम मंदिर के लिए 76 बार हमले हुए और 3 लाख हिंदुओं ने अपने प्राण गवाएं।

सन् 1851 में बाबा रामचंद्र दास और फकीर अमीर अली में समझौता हो गया था। तद्नुसार मंदिर हिंदुओं को लौटा दिया गया। परंतु यह अंग्रेजों को नहीं भाया, बाबा अमीर अली और रामचंद्र दास को फांसी पर लटका दिया ताकि विवाद बना रहे।

स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद 22 अक्टबर, 1949 को फैजाबाद के तत्कालीन कलेक्टर श्री के.के. नायर ने उस कथित बाबरी मस्जिद में रामलला की मूर्ति स्थापित करवा दी। परंतु बाद में मुस्लिम वोटों की खातिर मंदिर के सींखचों वाले द्वार पर ताले लगा दिए गए। परंतु पूजा-आराधना चलती रही। रामजन्म भूमि संघर्ष समिति के लगातार सत्याग्रह से 1 फरवरी, 1986 को मंदिर के द्वार खोल दिए गए।

प्रयाग के कुंभ मेला में 1 फरवरी, 1983 को एक विशाल संत-सम्मेलन में यह निश्चय किया गया कि अयोध्या में भगवान राम की जन्म-भूमि पर एक विशाल मंदिर निर्माण किया जाए, जिसकी लागूत 25 करोड़ रुपया हो। यह कार्य विश्व हिंदू परिषद को सौंपा गया। उसका शिलान्यास प्रबोधिनी एकादशी पर 9 नवंबर, 1985 को किया जाए। शिलान्यास को रोकने के लिए राज्य और केंद्रीय सरकार ने कई रोड़े अटकाए। भारत के विभिन्न प्रदेशों से मंदिर निर्माण के लिए राम-शिला एकत्रित करने की मुहीम चलाई गई।

राम की मूर्ति से 132 फीट पूर्व तथा वहां से साढ़े सत्रह फीट दक्षिण में सिंह द्वार के शिलान्यास का स्थान निर्धारित किया गया। मंदिर निर्माण का कार्य प्रधान वस्तुविद् श्री चंद्रकाल सोमपुरा के अधीन है। निर्धारित स्थान पर 9 नवंबर, 1989 को भूमि खनन का कार्य किया गया। 10 नवंबर, 1989 को श्री कामेश्वर चौपाल के हाथ से शिलान्यास हुआ। लगभग 7000 व्यक्ति मंदिर निर्माण के लिए कार सेवा स्थल पर गए, परंतु जिलाधीश के आदेश से कार सेवा रोक दी गई।

बहुत विवाद हुए। 8 फरवरी, 1990 को तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने चार माह में समस्या का समाधान करने की घोषणा की, परंतु कुछ नहीं हुआ।