नैतिक कहानी "लोभ पाप का मूल है"
सम्राट् पाइरस के हृदय में पराक्रम का समुद्र हिलारें ले रहा था। दिग्विजय की महत्त्वाकांक्षा लिये, सैन्य सजाकर वह इटली के अभियान हेतु चला, तभी उसके विद्वान् मित्र साइनेस ने पूछा, “सम्राट्, यह यात्रा आप किसलिए कर रहे हैं?"
"रोम विजय के लिए, “पाइरस की भुजाएँ फड़क उठीं, “मैं शूरों की इस नगरी को पददलित करूँगा।” साइनेस के चेहरे पर मंद हँसी बिखर गई। "इस विजय के बाद आप क्या करेंगे?"
“उसके बाद मैं समस्त इटली को अपने अश्वारोहियों के बल रौंद डालूँगा।” पाइरस ने हाथ का खड्ग हवा में हिलाया । “और उसके बाद?"
"फिर मैं सीडोमिया, अफ्रीका, ग्रीस और सीरिया को जीतूंगा !” “अपनी इच्छानुसार समस्त देशों को जीतने के बाद आप क्या करेंगे, सम्राट् ?”
“तब ... तब मैं शांतिपूर्वक प्रजापालन करूँगा। जनता सुख-समृद्धि से रहेगी।” पाइरस ने उत्तर दिया।
“सुख-शांतिपूर्वक तो आप आज भी रह सकते हैं," साइनेस गंभीर स्वर में बोला, “यदि आपका अंतिम ध्येय यही है, तो व्यर्थ ही रक्तपात क्यों करते हैं, आप ? यदि लोभ का त्याग करेंगे, तो निश्चय ही सुख का अनुभव करेंगे और तब आपको किसी देश को जीतने की लालसा नहीं रहेगी।"
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