घट-घट में वह साईं रमता
एक बार संत उमर को रास्ते में एक गुलाम बकरियाँ चराते हुए दिखाई दिया। वे उसके पास गए और उन्होंने उससे पूछा, “क्या इनमें से एक बकरी मुझे बेचेगा?" गुलाम ने जवाब दिया, “माफ करें, ये बकरियाँ मेरी नहीं हैं। इनका मालिक दूसरा है, मैं तो इन्हें केवल चराता हूँ।” तब उमर ने कहा, “अभी तो यहाँ मालिक नहीं है, तू चुपचाप मुझे एक बेच दे। बाद में जब मालिक पूछे, तो कह देना कि बकरी को भेड़िया चुरा ले गया।" चरवाहे ने उत्तर दिया, “बकरियों का मालिक यहाँ नहीं है तो क्या हुआ? घट-घट व्यापी मालिक तो देख रहा है, उससे भला वह बात कैसे छिपी रह सकती है? मैं आपसे फिर माफी माँगता हूँ कि आप मुझे गलत काम करने को न कहें।"
उमर ने सुना तो बोले, “तू सचमुच नेकदिल और बड़ा आदमी है। खुदा तुझ-जैसे आदमियों को ही पसंद करता है।” उन्होंने उस गुलाम के मालिक को मुँहमाँगा दाम देकर उसे मुक्त कराया। फिर यह कहकर विदा किया, “जैसा मैंने तुझे गुलामी से छुड़ाया है, वैसा ही खुदा भी तुझे दोजख के दुख-दर्द से छुटकारा देकर जन्नत में जगह देगा।"
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