नैतिक कहानी "बुभुक्षितः किं न करोति पापम्"



एक बार हजरत उमर जब मस्जिद में तशरीफ लाए, तो देखा कि एक आदमी लोगों को जिहाद के लिए उकसा रहा है। हजरत ने जान लिया कि निश्चय इस आदमी की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होगी, इसलिए वह जिहाद के लिए मजबूर हो गया है, क्योंकि गरीबी ही मनुष्य को विद्रोह और पाप करने को विवश करती है। यदि देश में अर्थसंकट है, और भूख की ज्वाला को बुझाया न जाए, और वैसे ही सुलगने दिया जाए, तो एक दिन वह समूचे देश को भस्मसात् कर सकती है।

हजरत उसके पास गए और उन्होंने उसे शांत होने के लिए कहा। फिर उपस्थित लोगों से उन्होंने पूछा, “क्या आपमें से कोई इसे नौकरी दे सकता है?” एक व्यक्ति द्वारा हामी भरने पर उन्होंने उसे उस व्यक्ति के हवाले कर दिया।

कुछ दिनों बाद उन्होंने उस व्यक्ति के बारे में पूछताछ की तो पता चला कि उसकी आर्थिक स्थिति अब अच्छी है। वे उसके पास गए और उससे बोले, “उस दिन भूखे थे, इसीलिए मैंने तुम्हें लोगों को जिहाद के लिए उकसाने से रोका था। आज तुम्हारी हालत अच्छी है। अब तुम जिहाद कर सकते हो या इनसानी फराइज अदा कर सकते हो या अपने बच्चों की परवरिश कर सकते हो। इसके अब तुम्हीं खुद मुख्तार हो ।” उस व्यक्ति ने उनसे क्षमा माँगी।