नैतिक कहानी "बुरा जो देखन मैं चला"
संत बिल्वमंगल एक बार श्रीकृष्ण के भजन में मग्न हो रास्ते से जा रहे थे कि एक सद्यःस्नाता सुंदरी वहाँ से गुजरी। उसका अनुपम सौंदर्य देख बिल्वमंगल का चित्त विचलित हो गया और वे भगवद्भजन भूलकर उसकी रूप-माधुरी का पान करने के लिए चंचल हो उठे। उस रमणी ने जब संत की यह दशा देखी, तो जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाकर वह घर में घुस गई। किन्तु बिल्वमंगल उसके बाहर निकलने की आशा में बाहर बैठे रहे। तब पत्नी ने पति को सारी बात बताई। पति समझदार था। उसने सोचा, यदि पत्नी को देखने मात्र से इस संत की प्यास बुझती है, तो दिखाने में कोई आपत्ति नहीं है और उसने पत्नी को बाहर आने का आदेश दिया। इसका बिल्वमंगल के मन पर बड़ा प्रभाव पड़ा। उन्हें अपने पतन के लिए पश्चात्ताप हुआ। सामने ही बिल्ववृक्ष था, उसके दो काँटे उन्होंने निकाले। इधर जब वह रमणी सामने आई, तो उन्होंने उसके मादक रूप को देख और तुरंत उन काँटों को अपनी पापी आँखों में चुभो दिया। आँखों से रक्त की धारा बहने लगी, किन्तु संत प्रसन्न थे कि पापी आँखों को उचित दंड मिल गया है। अब उनकी दृष्टि बदल गई, जीवन में दिव्यता आ गई और उन्होंने वृंदावन की ओर प्रस्थान किया ।
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