नैतिक कहानी "कबिरा इस संसार का झूठा माया-मोह"



प्रसिद्ध चीनी संत चांगत्से सदैव प्रसन्नचित रहते थे। उनके चेहरे पर कभी भी खिन्नता नहीं दीख पड़ती थी। एक दिन जब लोगों ने उनके मुख पर उदासी देखी, तो पूछा, “महाराज! आप पर भले ही कितनी भी विपदाएँ आएँ, पर आपके मुखमंडल पर हमें हमेशा ताजगी और प्रसन्नता की झलक दिखाई देती है। लेकिन आज क्या कारण है कि आप उदास और खिन्न दिखाई दे रहे हैं?"

चांगत्से ने कहा, “भाइयो, आपका कथन सही है। आज मैं सचमुच ही एक उलझन में पड़ गया हूँ, जिसे सुलझाने में असमर्थ हूँ।” लोगों ने कहा, "यह तो बड़े आश्चर्य की बात है कि हम अपनी समस्याएँ लेकर आपके पास आते हैं और आप उनका निराकरण व समाधान कर देते हैं, लेकिन आज तो आपको ही समस्या ने घेर लिया है। क्या आप हमें बताएँगे कि आपको सामने ऐसी कौन-सी विकट समस्या आ गई है?"

संत ने कहा, “सुनो! कल रात मैंने एक स्वप्न देखा, जिसमें मैं एक तितली बनकर इस फूल से उस फूल पर मँडरा रहा था।" लोगों ने कहा, "इसमें कौन-सी समस्या आ गई?" संत ने कहा, "जब मैंने स्वप्न में अपने को तितली बना देख तो क्या किसी तितली ने स्वप्न में अपने को आदमी बना हुआ नहीं देखा होगा ! लेकिन इसे सत्य कौन मानेगा?" लोगों के कुछ समझ में नहीं आया और वे आगे बढ़ गये। मगर एक व्यक्ति रुक गया और उसने उन्हें बात को स्पष्ट करने का आग्रह किया। तब संत ने कहा, “हम बाहर जो कुछ देखते हैं, वह खुली आँख का स्वप्न ही है । आँखें बंद करते ही वह सब मिट जाता है, अदृश्य हो जाता है, क्योंकि आँखें बंद होने पर हम दूसरी दुनिया में पहुँच जाते हैं। आँखें खोलने पर हमें जो दिखाई देता है, वह हमें सत्य मालूम पड़ता है, जबकि वह स्वप्नवत् होता है। यह संसार बड़ा मायावी है। यहाँ सत्य कुछ भी नहीं है, सब स्वप्न है-असत्य है। हम झूठे माया-मोह में फँसकर अपना सर्वस्व गँवाते रहते हैं और उसी को सत्य मानकर उलझते रहते हैं, यह हमारे ध्यान में ही नहीं आता। इसलिए हमें सब कुछ असत्य मानकर सत्कर्म करते रहना चाहिए।