साईं सबका एक है 



अरब के एलेप्पो नगर में यहूदी संत सिम्शा बुनेम रहते थे। वे बड़े ही धनी और संयमी थे। एक दिन बादशाह ने उन्हें बुलाकर प्रश्न किया, “संसार में तीन पैगंबर हो गए हैं-एक मूसा, जिन्होंने यहूदी धर्म चलाया, दूसरे ईसा, जिन्होंने ईसाई धर्म चलाया और तीसरे मोहम्मद, जिन्होंने इस्लाम धर्म चलाया। इन तीनों में सबसे श्रेष्ठ और सच्चा धर्म कौन-सा है? बादशाह ने सोचा था कि यदि संत सिम्शा किसी भी धर्म को सर्वश्रेष्ठ बताते हैं तो दूसरे धर्मों का अपमान करने का इलजाम लगाकर उनकी सारी संपत्ति हड़पी जा सकती है।"

बादशाह की चालाकी संत के ध्यान में आ गई। उन्होंने कहा, “पहले एक कहानी सुनिए। एक व्यापारी के पास एक हीरा था, जिसे उसके तीनों लड़के हड़पना चाहते थे। व्यापारी पशोपेश में था कि हीरा किसे दिया जाए। उसने हीरे के समान हूबहू दो नकली हीरे बनवाए और एक दिन तीनों को अलग-अलग बुलाकर एक-एक हीरा उन्हें दे दिया, मगर उन्हें यह पता न चलने दिया कि दूसरे बेटों को भी उसने हीरा दिया है। इस बात से बेखबर हर लड़का यही सोचता था कि बाप ने खुश होकर हीरा उसे ही दिया है। असली हीरा किसके पास है, यह बात व्यापारी के अलावा और कोई नहीं जानता था।"

कहानी को सुनाकर संत ने आगे कहा, “यही बात तीनों धर्मों के बारे में है। हजरत मूसा, ईसा और पैगंबर ये तीनों भगवान् का पैगाम लेकर आए हैं और उन्होंने अपने-अपने धर्म के रूप में लोगों में प्रचार किया। इन धर्मों के अनुयायी अपने ही धर्म को सच्चा और श्रेष्ठ समझते हैं। लेकिन इन तीनों का कर्ता एक ईश्वर होने के कारण वही जानता है कि सच्चा धर्म कौन-सा है। इसलिए हमें तो यही मानना पड़ेगा कि हर धर्म श्रेष्ठ है और उसकी दूसरे धर्म से तुलना नहीं की जा सकती।”