पापमोचनी एकादशी 
Papmochni Ekadashi
(चैत्र कृष्ण एकादशी) 
Chait Krishna Ekadashi

यह एकादशी पापमोचनी एकादशी कहलाती है। इस दिन भगवान विष्णु को अर्घ्य दान देकर षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए। तत्पश्चात धूप, दीप, चंदन आदि से नीराजन करना चाहिए।


इस दिन निदित कर्म तथा मिथ्या भाषण नहीं करना चाहिए। एकादशी के दिन भिक्षुक, बंधु-बांधव तथा ब्राह्मणों को भोजन दान देना फलदायी होता है। इस व्रत के करने से समस्त पापों का नाश होता है और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है इस व्रत को करने से ब्रह्महत्या, स्वर्णचोरी, मद्यपान, अहिंसा, अगम्यागमन, भ्रूणघात आदि अनेकानेक घोर पापों के दोषों से मुक्ति मिल जाती है।

कथा

प्राचीन काल में चैत्ररथ नामक अति रमणीक वन था। इस वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी नामक ऋषि तपस्या करते थे। इसी वन में देवराज इंद्र गंधर्व कन्याओं, अप्सराओं तथा देवताओं सहित स्वच्छन्द विहार करते थे। ऋषि शिव भक्त तथा अप्सराएं शिवद्रोही कामदेव की अनुचरी थी।

एक समय की बात है कामदेव ने मेधावी मुनि की तपस्या को भंग करने के लिए मंजुघोषा नामक अप्सरा को भेजा। उसने अपने नृत्य-गान और हाव-भाव से ऋषि का ध्यान भंग किया। अप्सरा के हाव-भाव और नृत्य गान से ऋषि उस पर मोहित हो गए।

दोनों ने अनेक वर्ष साथ-साथ गुजारे। एक दिन जब मंजुघोषा ने जाने के लिए आज्ञा मांगी तो ऋषि को आत्मज्ञान हुआ। उन्होंने समय की गणना की तो 57 वर्ष व्यतीत हो चुके थे। ऋषि को अपनी तपस्या भंग होने का भान हुआ।

उन्होंने अपने को रसातल में पहुंचाने का एकमात्र कारण मंजुघोषा को समझकर, क्रोधित होकर उसे पिशाचनी होने का शाप दिया। शाप सुनकर मंजुघोषा कांपने लगी और ऋषि के चरणों में गिर पडी। कांपते या मुक्ति का उपाय पूछा।

बहुत अनुनय-विनय करने पर ऋषि का हृदय पसीज गया। उन्होंने कहा-'यदि तुम चैत्र कृष्ण पापमोचनी एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो तो इसके करने से तुम्हारे पाप और शाप समाप्त हो जाएंगे और तुम पुन: अपने पर्व रूप को प्राप्त करोगी।' मंजुघोषा को मुक्ति का विधान बताकर मेधावी ऋषि अपने पिता महर्षि च्यवन के पास पहुंचे।

शाप की बात सुनकर च्यवन ऋषि ने कहा-'पुत्र यह तुमने अच्छा नहीं किया। शाप देकर स्वयं भी पाप कमाया है। अत: तुम भी पापमोचनी एकादशी का व्रत करो। इस प्रकार पापमोचनी एकादशी का व्रत करके मंजुघोषा ने शाप से तथा ऋषि मेधावी ने पाप से मुक्ति पाई।