शीतलाष्टमी(चैत्र कृष्ण अष्टमी)
Sheetala Ashtami Vrat ki vidhi and Katha
शीतलाष्टमी (बासोडा) का व्रत केवल चैत्र
अष्टमी को होता है। होली के 7-8 दिन बाद अर्थात चैत्र कृष्ण पक्ष में
शीतला माता की पूजा की जाती है। यह माना जाता है कि यह पूजा करने से बच्चों को
चेचक नहीं निकलती।
कुछ परिवारों में तो यह पूजा होली के आठ
दिन बाद अष्टमी को की जाती है, तो कुछ परिवार होली के 3-4 दिन बाद पड़ने वाले सोमवार, बुधवार या शुक्रवार को यह पूजा करते हैं।
धार्मिक पर्व होते हुए भी इस पूजा में अधिक बंधन नहीं हैं।
बासोडा के एक दिन पूर्व गुड़, चीनी का मीठा भात आदि बनाना चाहिए। मोठ, बाजरा भिगोकर तथा
रसोई की दीवार धोकर हाथ सहित पांचों उंगलियां घी में डुबोकर एक छापा लगाना चाहिए
तथा रोली चावल चढ़ाकर शीतला माता के गीत गाने चाहिए।
व्रती को इस दिन स्नानादि नित्यकर्मों से
निवृत्त होना चाहिए। इसके बाद एक थाली में एक दिन पहले बनाए गए भात, रोटी, दही, चीनी,
रोली, चावल, मूंग की दाल (भीगी हुई), हल्दी, धूपबत्ती,
एक गूलरी की माला, मोठ, बाजरा आदि सब सामान रखकर एक लोटे में जल भर लेना
चाहिए। इस सामान को घर के सभी प्राणियों को छुआ लेना चाहिए।
यदि किसी के यहां कंडारा भरता हो तो एक
बड़ा कंडारा और 10 छोट कुंडारे मंगा लें। फिर एक कुंडारा में रबडी, एक में भात, एक में रसगुल्ला, एक में बाजरा, एक में हल्दी पीसकर रख दें तथा एक में
इच्छानुसार पैस रख फिर ये सब कुंडारे, बड़े कुंडारे में रख लें व हल्दी से उनकी
पूजा कर ले।
इसके बाद सब कुंडारे और समस्त पूजा
सामग्री शीतला माता पर चढ़ाकर पूजन करना चाहिए। कुंडारा का पूजन करने के बाद कथा
सुनें। यदि किसा लड़का हुआ हो या लड़के का विवाह हआ हो तो वह पूजा समाप्ति का
उत्सव कर। पूजा समाप्ति के उत्सव में जितने कुंडारे हमेशा पूजे हों उतने हा
कुंडारे पूज लें।
शीतला माता का व्रत करने से व्रती के कल
में दाह ज्वर, पीत ज्वर,
दुर्गन्धयुक्त फोड़े, नेत्ररोग, चेचक के निशान और शीतला जनित सब रोग दूर
होते हैं तथा शीतला माता सदैव संतुष्ट रहती हैं।
शीतला के रोगी की देह में दाहयुक्त फोड़े
हो जाते हैं, जिसके कारण उसे नग्न रहना पड़ता है। गधे की लीद
की गंध से फोड़े की पीड़ा में आराम मिलता है। इस रोग का प्रकोप जिस घर में होता है
वहां अन्नादि की सफाई व झाड लगाना वर्जित है। अत: इन कामों को बंद रखने के लिए
झाडू व सूप रोगी के सिरहाने रखते हैं। नीम के पत्ते रखने से रोगी के फोड़े में
सड़न पैदा नहीं होती।
कथा-1
किसी समय एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी।
वह बासोडे के दिन शीतला माता की पूजा करती और बासी खाना खाती थी। उसके गांव में और
कोई शीतला माता को नहीं पूजता था।
एक दिन उस गांव में आग लग गई। जिसमें केवल
बुढ़िया की झोपड़ी को छोड़कर सबके घर जल गए। इससे सभी गांव वालों को बहुत आश्चर्य
हुआ। तब वे सब लोग बुढ़िया के पास आए और इसका कारण पूछने लगे।
तब बुढ़िया ने कहा-'मैं तो बासोडे के दिन ठण्डा खाना खाती थी और शीतला माता की पूजा करती
थी। परन्तु तुम लोग यह सब नहीं करते थे। इसलिए तुम्हारे घर तो जल गए और मेरी
झोपड़ी बच गई।'
तभी से पूरे गांव में बासोड़े के दिन
शीतला माता की पूजा होने लगी और सब लोग उस दिन ठण्डा खाना खाने लगे। हे शीतला
माता! जैसे तूने उस बुढ़िया की रक्षा की, वैसे सब की रक्षा करना।
कथा-2
प्राचीन समय में एक बार एक राजा के इकलौते
पुत्र को चेचक निकली। उसी राज्य में एक काछी के पुत्र को भी चेचक (शीतला) निकली
हुई थी।
वह काछी परिवार बहुत निर्धन था, परन्तु भगवती का उपासक था। वह धार्मिक दृष्टि से जरूरी समझे जाने वाले
सभी नियमों को बीमारी के दौरान भलीभांति निभाता रहा। घर में साफ-सफाई का विशेष
ख्याल रखा जाता था।
नियम से भगवती की पूजा होती थी। घर में
नमक खाने पर पाबंदी थी। यहां तक कि सब्जी में न तो छौंक लगता था और न कोई वस्तु
भूनी-तली जाती थी। गरम वस्तु न वह स्वयं खाता न शीतला निकले पुत्र को खिलाता। यह
सब करने से उसका पुत्र जल्दी अच्छा हो गया।
उधर जब से राजा के लड़के को शीतला का
प्रकोप हुआ, तब से उसने भगवती के मंदिर में शतचण्डी का पाठ शुरू
करवा रखा था। उस मंदिर में रोज हवन और बलिदान होते थे।
राजपरोहित भी सदा भगवती की पूजा में मग्न
रहते। राजमहल में प्रतिदिन कडाही चढती और विविध प्रकार के गर्म स्वादिष्ट भोजन
बनते। साथ दी। प्रकार के मांस पकते थे।
इसका परिणाम यह होता कि उन स्वादिष्ट
भोजनों की गंध से राजकुमार का मन मचल उठता और वह भी उस भोजन
को खाने की जिद करता। एक
तो राजकुमार और वह भी इकलौता, इसलिए उसकी सभी मांगें पूरी कर दी जातीं।
इस पर राजकुमार पर शीतला का कोप घटने की
बजाय बढने लगा। शीतला के साथ-साथ उसके शरीर में बड़े-बड़े फोड़े निकलने लगे, जिनमें खुजली व जलन अधिक होती थी। शीतला की शांति के लिए राजा जितने
उपाय करता, प्रकोप उतना ही बढ़ जाता। क्योंकि अज्ञानतावश
राजा के यहां सभी कार्य उल्टे हो रहे थे।
इससे राजा और अधिक परेशान हो गया। उसकी
समझ में नहीं आ रहा था कि इतना सब करने के बाद भी शीतला का प्रकोप शांत क्यों नहीं
हो रहा।
एक दिन राजा के गुप्तचरों ने उसे बताया कि
काछी पुत्र को भी शीतला निकली थी, परन्तु अब वह बिल्कुल ठीक हो गया है। यह
सुनकर राजा सोच में पड़ गया कि मैं शीतला की इतनी सेवा कर रहा हूं, पूजा व अनुष्ठान में कोई कमी नहीं,
फिर भी मेरा पुत्र
अधिक रोगी होता जा रहा है जबकि काछी पुत्र बिना सेवा-पूजा के ही ठीक हो गया।
इसी सोच में उसे नींद आ गई। रात में
स्वप्न में श्वेत वस्त्र धारिणी भगवती ने दर्शन देकर कहा-'हे राजन! मैं तुम्हारी सेवा-पूजा से प्रसन्न हूं। इसीलिए। आज भी
तुम्हारा पुत्र जीवित है। इसके ठीक न होने का कारण यह है कि तुमने शीतला के समय
पालन करने योग्य नियमों का उल्लंघन किया। तुम्हें ऐसा हालत में नमक का प्रयोग बंद
करना चाहिए। नमक से रोगी के फोड़ों में खुजली होती है। घर में सब्जियों में छौंक नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि उसका गंध से रोगी का मन उन वस्तओं को खाने के लिए ललचाता है।
रोगी के पास किसी का आना-जाना भी मना है क्योंकि यह रोग औरों को भी लगने का भय
रहता है। अत: इन नियमों का पालन कर, तेरा पुत्र अवश्य ही ठीक हो जाएगा।
यह सब समझाकर देवी अंतर्धान हो गई। प्रात:
होते ही राजा ने देवी की आज्ञानुसार सभी कार्यों की व्यवस्था कर दी। इससे राजकुमार
की सेहत पर प्रभाव पड़ा और वह शीघ्र ठीक हो गया। राजा ने आदेश निकलवा दिया और सभी
घरों में शीतला माता का पूजन विधिपूर्वक किया जाने लगा।
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