बारिश की भयानक रात 
Barish ki Bhayanak Raat


भारत ऋतुओं का देश है। यहाँ पर हर ऋतु अपने निश्चित समय पर आती है और अपना प्रभाव दिखाकर चली जाती है। गर्मी के बाद वर्षा आती है। इस ऋतु में प्रकृति खिल जाती है।नदी-नाले सभी भर जाते है। लेकिन कभी-कभी यह पावस ऋतु संहारक भी बन जाती है। पिछले वर्ष मैंले वर्षा ऋतु के इसी विनाशकारी रूप को देखा था।


डस भयानक रात्रि को मैं चाहकर भी नहीं भूल सकता हूँं। तीन दिन पहले ही मैं अपने गाँव आया था। वर्षा की ऐसी भयंकरता मैंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखी थी। उस दिन दोपहर से ही मूसलाधार वर्षा हो रही थी। वर्षा की वजह से दिन में ही अँधेरा सा हो गया था। बिजली रह-रह कर चमक रही थी। सारे कच्चे रास्ते पानी से भर गये थे। बिजली की कड़क से कच्चे घरों में बैठे लोग डर रहे थे। गलियों में पानी भर चुका था। ऐसी भयंकर वर्षा में बाहर निकलने के बारे में तो कोई सोच भी नही सकता था। छप्परों में से पानी टपक रहा था। घरों का सामान भीग गया था। कच्चे घर बैठ रहे थे। हमारे गाँव के पडिंत जी का घर कच्चा था। उनके घर की दशा देखी नही जा रही थी ।


आधी रात बीत चुकी थी लेकिन बारिश रुकने का नाम ही नही ले रही थी। मेरे कानों में किसी के मकान के गिरने की आवाज आई। चीखने की आवाज पास से ही आ रही थी। बरसाती पहनकर हम घर से बाहर निकले तो हमने देखा कि पंडित जी के घर की छत बैठ गयी थी। कमरे में एक बछड़ा और पंडित जी का एक लड़का दब गये थें । आस-पास के सभी लोग मदद के लिए आ चुके थे। बड़ी कठिनाई से उन दोनों को बाहर निकाला लेकिन दोनों ही दम तोड़ चुके थे। यह दृश्य देखकर सभी लोगो की आँखे भर आई थी। पंडित-पंडिताइन अपने इकलौते पुत्र के लिए विलाप कर रहे थे। लेकिन कोई कुछ नही कर सकता था।


कुछ देर बाद ही बिजली की कड़क वापस सुनाई पड़ी और कुछ और घरों की दीवारें भी बैठ चुकी थी। इस भयंकर रात में जन-धन की बहुत हानि हुई थी। डर के कारण सभी लोग घरों में से बाहर आ चुके थे। गाँव के लोगों के लिए तो यह एक प्रलय की रात थी जिसने उनका सबकुछ तबाह कर दिया था। विहान बेला में जाकर कहीं वर्षा थमीं।


वर्षा की इस रात में गाँव के लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था। अधिकतर गाँव वाले बेघर हो गए थे। कितने ही पशु मर चुके थे। तीन बच्चे की भी मौत हो चुकी थी। समस्त फसल नष्ट हो चुकी थी। अगले दिन मैं शहर लौट आया। यहाँ आकर भी मैं उस विनाशकारी रात को भूल नहीं पाया हूँ।