चिड़ियाघर की सैर 
Chidiyaghar ki Sair 

कहा जाता है कि मन चचंल घोड़े के समान होता है। मन की गति वायु से भी तेज होती है। मन कभी भी स्थिर नहीं रहता है। अस्थिरता ही इसका सबसे महत्वपूर्ण गुण है। इस तरह यह निरन्तर गतिमान रहते हुए तरह-तरह की उड़ानें भरता रहता है लेकिन बिल्कुल भी नही थकता है। इस प्रकिया में यह कभी प्रसन्नता से खिल उठता है तो कभी निराशा में डूब जाता है। अपनी निराशा को दूर करने के लिए यह अपनी पूर्व स्थिति में बदलाव लाता है। इसके लिए इसे अपेक्षित क्रियाओं से गुजरना पड़ता हैै।

जून का महीना था । गर्मी की छुट्टी चल रही थी। हम अपने मित्रों के साथ गपशप कर रहे थे। उस गपशप का विषय था।,गर्मी की छुट्टी में सैर-सपाटे के लिए कहा जाना चाहिए। कहँा चला जाए इस प्रश्न को सुनते ही मैने चिड़ियाघर चलने का दे दिया। मेरे इस प्रस्ताव को सभी ने पसन्द किया और हम सभी इस पर सहमत हो गये। फिर क्या था हम चारों मित्र अपने निश्चय के अनुसार अगले दिन ही चिड़ियाघर की सैर के लिये रवाना हो गये ।हम लोग दिल्ली का चिड़ियाघर देखने के लिए एक साथ बस में बैठकर चिड़ियाघर पहुँच गये।

दिल्ली का चिड़ियाघर दिल्ली के पुराने किले के पास ही हैं। दिल्ली के किले के साथ ही दिल्ली का चिड़ियाघर भी नजर लगता है यह गोलाकार रूप् में दिखाई देता है। यह चिड़ियाघर कई किलोमीटर तक फैला हुआ है। यह चारदीवारी से घिरा है जिससे कि कोई जानवर इससे बाहर न जा सके। जानवरों की सुरक्षा , देखभाल और उनसे होने वाले खतरों से बचाने की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी और महत्वपूर्ण हैं।

चिड़ियाघर के मुख्य द्वार पर ही हमने टिकिट खरीद लिए।इसके पश्चात् अन्दर प्रवेश किया।सभी लोगों के तरह हमने भी परम्परागत तरीके से , एक ओर से चिड़ियाघर के जानवरों को देखना शुरू किया। सबसे पहले हमने जल-जीव देखे।हमनें देखा कि , तालाब में तैरती हुई बत्तखें सबके आकर्षण का मुख्य कारण रही। उसी तरह हमने देखा कि , रंग-बिरंगी मछलियाँ सबके मन को लुभा रही थी। हमने और भी बहुत स ेजल जीवों को भी देखा । हमरे मगरमच्छ को भी बहुत करीब से देखा । हमने देखा कि, यह जल व जमीन दोनों पर बडी़ खुशी के साथ रहता हैं।कुुछ आगे बढ़ने पर हमने देखा कि, हरी भरी जमीन पर शाकाहारी जानवर विचरण कर रहे है। उनमें गाय , घोड़ा , ऊँट , नील गायें,हाथी हिरण आदि प्रमुख थे। इस प्रकार के जानवरों में गैंडा बड़ा ही अद्भुत और आकर्षक जानवर था। इस जानवर की विशेषता होती कि यह हमेशा पानी के गढ्ढे में ही रहता हैं।

सबसे अंत में हमने वनमानुष को देखा। इसे देखकर हमने अनुभव किया कि किस तरह मनुष्य प्राचीनकाल में अज्ञानता से ढका हुआ था। शाम होते-होते हम चिड़ियाघर की पूरी सैेेर कर चुके थे। घर आतेे-आते रात हो गयी। हमने केवल सैर ही नहीं की बल्कि ज्ञान भी अर्जित किया। हम आज तक उस सैर को नहीं भूल पाये है।