श्रम का महत्व 
Shram ka Mahatva 

मनुष्य के पास श्रम के अलावा कोई वास्तविक सम्पत्ति नहीं है अतः यह कहा जा सकता है कि श्रम ही जीवन है। जीवन में श्रम आवश्यक है। गीता में श्रीकृष्ण ने कर्म करने पर बल दिया है। मानव देह मिली है। तो कर्म करना ही पड़ेगा। जो पुरूषार्थ करता है वह पुरूष है। यह सारा संसार बड़े-बड़े नगर, गगन-चुम्बी इमारतें, हवाई जहाज रेलगाड़ियां स्कूटर और अन्य कई तरह के वाहन, विशाल कारखाने, टीवी आदि सभी मानव के पुरूषार्थ की कहानी कहते है।

कर्म का करना जीवन है। तो कर्म न करना मृत्यु। श्रम न करने से ही जीवन नरक बनता है। और करने से स्वर्ग। ईमानदारी से श्रम करने से मानव फरीश्ता बन जाता है और न करने से शैतान। जैसा कि कहा भी जाता है कि-खाली दिमाग शैतान का घर होता है। श्रम दो प्रकार का होता है। शारिरीक तथा मानसिक। किसी वस्तु अथवा उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया गया प्रयास ही श्रम कहलाता है। श्रम अपने आप में ही एक लक्ष्य है। श्रम करने से मन प्रसन्न होता है और देह तन्दुरूस्त रहती है। व्यक्ति उन्नति करे या न करें। परिवार अथवा समाज में सम्मान मिलता है।लेकिन ऐसा होता नहीं कि व्यक्ति श्रम करे और वह उन्नति न करे। श्रम करने वाला व्यक्ति हमेशा उन्नति को प्राप्त करता है। बड़े से बड़े व्यक्ति तनिक आलस्य से जीवन की दौड़ में पीछे रह जाते है। लेकिन श्रम करने वाला व्यक्ति तनिक दुर्बल भी दौड़ में आगे निकल जाते है।इस संदर्भ में कछुए और खरगोश की कहानी को याद किया जा सकता है। खरगोश बहुत तेज चलता है। इसलिए वह अपनी तेज गति पर घमण्ड करता हैं। सब जानते है कि कछुआ धीमी गति से चलता है।दोनो की दौड़ होती हैै। कछुआ लगातार चलता रहता है। अतः परिणामस्वरूप अपने गंतव्य पर पहले पहुंच जाता है। लेकिन खरगोश आलस्य करता है और पीछे रह जाता है। श्रम करने वाला व्यक्ति कभी नहीं हारता है। मेहनत के बलबूते पर साधारण छात्र भी चकित करने वाले परिणाम दे जाते है। दूसरी ओर होनहार और मेधावी छात्र आलस्य के कारण कुछ नहीं कर पाता। किसी ने कहा है कि - जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता पूरे जन्म के श्रम द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है। इससे कम मूल्य पर इसको खरीदा ही नहीं जा सकता है।

श्रम प्रत्येक मनुष्य, जाति, और राष्ट्र की उन्नति के लिए अनिवार्य है। मनुष्य जितना श्रम करता है उतनी ही उन्नति करता है। हमारे देश कई उद्योग-घराने है। बिड़ला और टाटा के नाम को सब जानते हैं। उन्हांेने साम्राज्य स्थापित कर रखे है। यह सब उनके श्रम का ही फल है। बिड़ला मंदिर देश के बड़े शहरों में देखने को मिल जाते है। उन्होंने धन भी कमाया हैं। और दान भी किया है। पंडित जवाहर लाल नेहरू तथा श्री लाल बहादुर शास्त्री अपने श्रम के कारण ही प्रधानमंत्री बन सके। आइंसटीन भी अपने श्रम के परिणामस्वरूप ही विश्व के सबसे महान वैज्ञानिक बने। अमेरिका, रूस, जापान तथा इंग्लैण्ड ने श्रम के माध्यम से ही उन्नति की और आज विश्व के सबसे समृद्ध देश बने हुए है। श्रम से ही व्यक्ति का निर्माण होता है। श्रम से ही वह नेता बनता है। श्रम से ही अभिनेता बनता है। फिल्मी अभिनेताओं का जीवन बहुत सुन्दर व आकर्षक लगता है। लेकिन अभिनेता बनना आसान नहंी है। एक अभिनेता का जीवन घोर तपस्या का जीवन होता है। कठिन श्रम से ही धर्मेंद्र, राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन सूपरस्टार बन सके। यहां तक कि साधु-सन्यासी भी श्रम एवं तपस्या करके ही ईश्वर के दर्शन पाते है। महात्मा बुद्ध, स्वामी दयानन्द सरस्वती और ईसा मसीह का जीवन श्रम से परिपूर्ण था। अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि श्रम के बिना कुछ भी कर पाना संभव नहीं है। किन्तु एक बात जो ध्यान देने योग्य है कि श्रम चाहे मानसिक हो या शारीरिक। श्रम श्रम है।