विद्यालय में मेरा पहला दिन 
School me Mera Pehla Din

जब मैं चार वर्ष का था तब माता-पिता मुझे एक स्कूल में लेकर पहुंच गए। मैंने उस समय स्कूल की शक्ल पहली बार ही देखी थी। स्कूल की ड्रेस में विद्यार्थी बहुत अच्छे लग रहे थे। मेरी दादी ने मुझे स्कूल के बारे में जो कुछ बताया था यह उससे बहुत अलग था। यहां मुझे डंडे से पिटता हुआ कोई लड़का दिखाई दिया। मैंने जिस भी लड़के की ओर देखा उसके चेहरे पर मुस्कान थी। इसलिए मुझे बिल्कुल डर नहीं लगा। चपरासी बार-बार साक्षतकार के लिए बुला रहा था। 12 बजे के आस-पास मुझे भी बुलाया गया प्राचार्य के कक्ष में प्रवेश करते ही थोडी घबराहट तो जरूर हुई। लेकिन मम्मी ने मेरी हिम्मत बांध दी। मैने कक्ष में प्रवेश करते ही प्राचार्य जी को नमस्कार किया। मुझसे जितने भी प्रश्न पूछे गए मैने उनका उत्तर बिना किसी संकोच के दिए। प्राचार्य ने मुझें शाबासी दी और प्रवेश पत्र भी दे दिया गया। मम्मी-पापा मुझे कक्षा में बैठाकर वापिस लौट आए। उनके जाने के कुछ देर बाद तक मैं उदास रहा।

मेरे किशोरावस्था में प्रवेश करते ही अपने मित्रों से अलग होना पड़ा। इस विद्यालय में शिक्षकों से जो प्यार मुझे मिला था उसे विवशता के कारण मुझे छोड़ना पड़ा। पिताजी का स्थानांतरण जयपुर हो गया था। दिल्ली से रोजाना आने-जाने में उन्हें परेशानी हो रही थीं इसलिए मुझे भी परिवार के साथ जयपुर आना पड़ा यहां पर मेरे लिए जो विद्यालय चुना गया वह मेरे घर से 1किमी. की दूरी पर था। इसलिए मुझे साईकिल से विद्य़ालय जाना पड़ता था। इसलिए मुझे एक साईकिल दिला दी गई। जब मैं पहली बार साईकिल से स्कूल पहुंचा तो मेरा मन आशंकित था। कि नई साथियों से मेरी दोस्ती हो पाएगी या नहीं तभी ‘वेलकम माई चाइल्ड’ शिक्षक ने कहा पापा के साथ वह खड़े हुए थे। पिछले वर्ष में बड़े दिन पर अपने मित्र सोहन के साथ मंदिर गया था। विद्यालय में मेरे सभी अध्यापक बहुत अच्छे थे उन्होंने सहपाठियों से मेरा परिचय करवाया। कुछ ही देर में मैं नए विद्यालय में साथियों के साथ घुल-मिल गया था। पहले ही दिन ऐसा प्यार भरा व्यवहार मिला कि मेरे मन की उथल-पुथल शांत हो गई। यहां मेरे तीन वर्ष अच्छे से गुजरे।

पहले दिन ही काॅलेज के परिसर में पैर रखते हुए मेरा दिल कांप रहा था। रैगिंग के बारे में सुना हुआ था। इसलिए डर भी बहुत लग रहा था। सीनियर छात्र-छात्राओं के लिए तो ये खुशी के पल होते है। लेकिन जूनियर छात्रों के लिए यह मुसिबत के पल होते हैं। शरूआत में तो मुझे भी इन मुसिबत के पलों का सामना करना पड़ा लेकिन बाद में सब कुछ ठीक हो गया। काॅलेज का पहला दिन सभी विद्यार्थियों को हमेशा याद रहता है। जो विद्यार्थी रैगिंग के शिकार बन जाते हैं उनके लिए तो काॅलेज जाना एक हौवा-सा लगता है। और आत्मविश्वासियों के लिए आनन्द की बगियां मैंने भी इस बगियां में किशोरावस्था के बंसत बिताए है। तथा इसके रसभरे फलों को भी चखा है।