बिना विचारे जो करे 
Bina Vichare Jo Kare

निबंध # 01 


बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताए
काम बिगारे आपनो, जग में होत हँसाय। 

मनुष्य यदि अविवेकी होकर कोई काम करता है तो वह स्वयं के लिए सहस्रों आपदाओं को आमंत्रण दे देता है। संसार के प्रत्येक कार्य का एक फल होता है। व्यक्ति जो बोता है, उसे वही काटना पड़ता है। यदि बबूल बोएगा तो आम नहीं मिल सकते। 

ईश्वर ने मनुष्य को मस्तिष्क प्रदान किया है। व्यक्ति सोच-विचार कर। कार्य करता है तो परिणाम आहलादकारी ही होते हैं, परंतु यदि अपने विवेक का प्रयोग न कर कर्मक्षेत्र में प्रवेश किया जाए तो परिणाम नकारात्मक ही होंगे। आज का युग वैज्ञानिक युग है। मनुष्य का अधिकांश कार्य मशीनों से होता है। केवल अपने विवेक व बुद्धि से उसे इन मशीनों पर नियंत्रण करता होता है। ऐसे में यदि वह परिणाम की चिंता किए बिना काम करेगा तो परिणाम विध्वंसकारी ही होंगे। परमाणु युग के आज के मानव का बिना सोये एक बटन दबाना सृष्टि का विनाश कर सकता है। जब पशु-पक्षी भी बिना सोचे-विचारे कार्य नहीं करते तो मनुष्य की तो बात ही भिन्न है। किसी भी कार्य से पूर्व योजनाबद्ध तरीके से विचार व क्रियान्वयन ही उद्देश्य को सफल बनाता है तथा लक्ष्य-प्राप्ति का कारण बनता है।

बिना विचार किए कार्य करने का फल पश्चाताप ही होता है। कहा भी गया है कि-

अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत ।

अर्थात समय के साथ-साथ परिस्थितियों में भी बदलाव लाया जा सकता है। किसी भी कार्य-अकार्य की सार्थकता-निरर्थकता पर विचार करने के बाद ही कदम उठाना चाहिए। बाद में पश्चाताप करने से काम को सँवारा नहीं जा सकता। 

रहीम ने ठीक ही कहा कि-रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन। होय, अर्थात जिस प्रकार अथाह परिश्रम के बाद भी फटे हुए दूध में से मक्खन नहीं निकाला जा सकता उसी प्रकार यदि समय रहते सही काम न किया जाए तो बाद में पश्चाताप भी हमारा कल्याण नहीं कर सकता।

विवेकी व्यक्ति अपनी विचार शक्ति का प्रयोग करके अपने जीवन को सरल बना लेते हैं। वे भविष्य में आनेवाली परिस्थितियों का सही आकलन करते हैं। वे अपनी विवेकशक्ति द्वारा अपनी कार्यक्षमता से अधिक सफलता के अधिकारी बनते हैं। बिना सोचे किए गए कार्य दख तथा। विपत्ति का कारण बनते हैं। ऐसे कार्य न केवल व्यक्ति अपित परिवार व समस्त समाज को क्षति पहुँचाते हैं।

बिना सोचे-विचारे कार्य करने से कैकेयी ने राम जैसे पत्र को वनवास। दिया। दशरथ जैसे पति से हाथ धोए तथा समस्त अयोध्या में निंदा की। पात्र बनी। बिना सोचे-विचारे सीता का हरण करनेवाले रावण के वंश का विनाश हुआ। बिना सोचे-विचारे गौतम मुनि ने अपनी पत्नी अहिल्या का। शाप दिया तथा मानसिक क्लेश को प्राप्त हुए।

इतिहास भी साक्षी है कि अविवेकी राजाओं के कार्यों ने समाज को नकसान पहुंचाया है। नंद ने अपने अविवेक से ही चाणक्य जैसे राजनीतिककुशल व्यक्ति का तिरस्कार किया और अपने वंश का नाश करवाया। पृथ्वीराज चौहान ने सत्रह बार मुहम्मद गौरी को परास्त किया पर उसका समूल नाश नहीं किया जिसके कारण बार-बार देश पर यवनों के आक्रमण होते रहे.

भारतीय सामंतों ने विदेशी मुसलमान राजाओं को यदि विवेकपूर्ण नीति से निबटा होता तो देश की आज यह दुर्दशा न होती। भारतीय राजाओं के अविवेक के कारण ही उन्हें अंग्रेजों का गुलाम बनना पड़ा।

सोच-विचार कर किए गए कार्य व्यक्ति को सम्मान का पात्र बनाते हैं। व्यक्ति अपने बुद्धि कौशल से सही निर्णय लेकर जीवन संग्राम में उतरता है तो सफलता उसके कदम चूमती है। आज वैज्ञानिक उन्नति मनुष्य की गहरी सूझबूझ का ही परिणाम है। अपनी गहन सूझबूझ के बल पर ही चाणक्य जैसे ब्राह्मण ने नंद जैसे समृद्धिशाली राजा का समूल नाश कर दिया था। पशु-पक्षी भी सूझबूझ का प्रयोग करते हैं। पक्षी सोच-विचार कर सुरक्षित स्थान पर अपने घोंसले बनाते हैं। वे पास से गुजरने वाले व्यक्तियों के हाव-भाव को पहुंचान लेते हैं। ।

व्यक्ति अपनी सूझबूझ के बल पर ही इस विश्व में अपना अस्तित्व बना सकता है। सोच-विचार कर लिया गया सही निर्णय व्यक्ति को कहाँ का कहाँ पहुँचा सकता है। रंक को राजा बना सकता है। एक अविवेकपूर्ण कार्य समस्त जीवन के संचित धन, मान, यश और सुख को क्षणभर में गँवा देता है।
ऋग्वेद में भी कहा गया है कि अविवेकी व्यक्ति को दुख प्राप्त होते हैं। कवि कबीरदास ने भी कहा है कि-

समझा समझा एक है, अनसमझा सब एक, 
समझा सोई जानिए, जाके हृदय विवेक। 
कहा जा सकता है कि सोच-विचार कर कार्य करने पर ही व्यक्ति सामाजिक सुख-संपदा, लाभ, उन्नति व प्रगति को प्राप्त करता है।

 


निबंध # 02


बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय
Bina Vichare Jo Kare So Pache Pachtaye 

संकेत बिन्दु-मानव मन चंचल -विवेकपूर्ण कर्म से सफलता -परा से भिन्न - पछताया 

मानव मन बाद चंचल होता है। यह इधर-उधर भागता रहता है। मन चलायमान रहता है। कई बार यह बिना सोचे विचारे काम करता है। मन की चंचलता कई बार जीवन में असफलता दिलाती है। हमें यह स्परण रखना चाहिए कि विवेकपूर्ण कर्म से ही सफलता प्राप्त होती है। विवेकपूर्ण कर्म सोच-समझकर किया जाता है। पशु में विवेक नहीं होता। वह केवल अपना स्वार्थ देखता है। मनुष्य पशु से सर्वथा भिन्न है। यह अच्छे-बुरे का ज्ञान रखता है। वह अपने विवेक का प्रयोग करना जानता है। जब कभी मनुष्य बिना विचारे को काम करता है, तब उसे पछताना पड़ता है। यह पछतावा कई बार उसे महंगा पड़ जाता है। अतः आवश्यकता इस बात की। कि मनुष्य प्रत्येक काम सोच-समझकर करे। बिना विचारे कोई काम नहीं करना चाहिए।