छत्रपति शिवाजी 
Chhatrapati Shivaji Maharaj 


छत्रपति शिवाजी भारत माँ के उन सपूतों में से एक हैं जिन पर इतिहास सदा गर्व करता रहेगा। उन्होंने अपने त्याग, पौरुष, वीरता, दृढता, ओज व बल से राष्ट्रकुल के समक्ष अद्भुत मिसाल स्थापित की। उन्होंने अपने अद्भुत संगठन कौशल से महाराष्ट्र की जनता में सराहनीय जोश का संचार किया। उन्हीं के बल पर परवर्ती मराठा शासकों ने राष्ट्र शक्ति का विस्तार किया।

शिवा जी का जन्म सन 1627 में शिवनेरी नामक दुर्ग में हुआ। इनके पिता शाह जी भोंसले एक जागीरदार थे। शिवा जी की माता जीजाबाई अत्यंत उत्तम विचारों की साध्वी महिला थीं। शिवा जी के पिता शाह जी. ने अनेक प्रदेश बलपूर्वक बीजापुर के बादशाह के राज्य में मिलाए। जीजाबाई को उनकी नीतियाँ पसंद न आई तथा वे अलग हो गई। शिवा जी की शिक्षा-दीक्षा के लिए दादा जी कोण्डदेव को रखा गया।

जीजाबाई ने शिवा जी को हिंदू संस्कार दिए। वे शिवा जी को पौराणिक गाथाएँ सुनाती तथा राम, कृष्ण, अर्जुन जैसे आदर्श वीरों के चरित्र वर्णन करतीं। कोण्डदेव जी शिवा जी को अस्त्र-शस्त्र चलाने, घुड़सवारी आदि के निरंतर अभ्यास कराते तथा राजनैतिक मसलों पर विचार-विमर्श करते। बचपन से ही शिवा जी साहसी, वीर और वाकपटु थे और हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा की भावना उनके रक्त में समा गई थी। उन्होंने अपनी जाति को यवनों से मुक्त कराने का बीड़ा उठाया।

शिवा जी ने महाराष्ट्र के वन्य प्रांतों में रहने वाले मावली तथा अन्य जन-जाति के वीर और साहसी युवकों को संगठित करना प्रारंभ किया।

धीरे-धीरे शिवाजी की शक्ति बढ़ती गई। उनकी उस सेना में साहस, जोश व उमंग तो थी परंतु वे साधनहीन थे। उन्होंने बीजापुर के खजाने को मार्ग से ही लट लिया तथा एक पुराने दुर्ग पर भी अधिकार कर लिया।

यह शिवाजी की प्रथम विजय थी। उनकी शक्ति व विजय दोनों दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती गई। यहाँ-वहाँ छापे मारकर उन्होंने अपनी आर्थिक शक्ति बढ़ाई। बादशाह ने क्रोधित होकर उनके पिता को कैद कर लिया, परंतु मुगल सम्राट शाहजहाँ के दबाव के कारण शाह जी शोध ही मुक्त हो गए। बीजापुर नरेश ने शिवाजी को भेंट के बहाने मारने का पड्यंत्र रचा। शिवाजी को गुप्तचरों से अफजल खाँ तथा याकूत खाँ की नीयत का पता चल चुका था। भेंट का स्थान जंगल में था। अफजल खां अपनी बड़ी सेना के साथ आया था। उसने छल से गले मिलने के बहाने शिवाजी पर तलवार से वार करना चाहा, परंतु शिवा जी ने कटार से उसका पेट फाड़ डाला। उनकी सेना ने छिपे यवन सैनिकों का काम तमाम कर दिया।

जब औरंगजेब मुगल सम्राट बना तो शिवाजी ने शाही खजाने लूटना तथा मुगल दुर्गों पर अधिकार करना आरंभ कर दिया। शिवा जी को कैद करने के लिए शाइस्ता खाँ को दल-बल समेत भेजा गया। शिवा जी के सैनिकों ने वेश बदलकर शाइस्ता खाँ के सैनिकों पर धावा बोला और तब मजबूर होकर उसे भागना पड़ा। औरंगजेब को अपनी इस हार पर बहस गुस्सा आया।

अंत में औरंगजेब ने हिंदुओं से संधि का प्रस्ताव भेजा। उसके दरबार में महाराज जयसिंह तथा शिवा जी उपस्थित हुए। वहाँ शिवाजी को अनादर सहना पड़ा। इससे नाराज होकर उन्होंने भरे दरबार में अपशब्द कह दिए। मुगल सम्राट यह सब कहाँ सहते। औरंगजेब ने शिवाजी को कैद कर लिया।
शिवाजी औरंगजेब की कैद से रिहा होने तथा पुनः मुगलों पर आक्रमण की योजना बनाने लगे। एक दिन उन्होंने बीमारी के बहाने मिठाई बँटवाना आरंभ किया। वे मिठाई के टोकरे में छिपकर कैदखाने से भागे छिपते-छिपाते रामगढ़ पहुंचे। वहाँ उनका राज्याभिषेक किया गया तथा छत्रपति की उपाधि से सम्मानित किया गया।

आजीवन हिंदू जाति के संगठन तथा उन्हें शक्ति संपन्न बनाने के लिए जा वीर सैनिक ने संघर्ष किया। 53 वर्ष की आयु में उनका स्वर्गवास हो गया। शिवा जी ने सदा गौ-रक्षा और महिलाओं के सम्मान की रक्षा की। वे कशल राजनीतिज्ञ, कर्तव्यपरायण देशभक्त थे जिन्होंने आजीवन मातृभूमि की सेवा में सर्वस्व त्याग किया।