वन महोत्सव 
Van Mahotsav

निबंध नंबर :- 01 

आदिकाल से मनुष्य प्रकृति की गोद में पोषित होता रहा है। प्रकृति की असीम संपदा मानव जीवन के लिए नितांत आवश्यक है। पाषाण काल से। मानव हिंसक पशुओं से बचाव के लिए वृक्षों का आश्रय लेता रहा है। वृक्षों। की छाल से तब वह तन ढकता तथा कंदमूल-फल खाता था। इन्हीं वनों। में असंख्य वृक्षों पर पशु-पक्षियों की विभिन्न प्रजातियाँ सुरक्षित रहती थीं।

सभ्यता के विकास के साथ-साथ वनों की अंधाधुंध कटाई होती गई। तथा भारत ही नहीं, पूरे विश्वभर में मानव ने प्रकृति को भरपूर क्षति पहुँचाई। अत्यधिक सघन वनों का सफाया कर दिया गया। जनसंख्या की उत्तरोत्तर वृद्धि भी वनों के ह्रास का कारण बनी।

यह कटाई जारी रहने से धीरे-धीरे उपजाऊ भूमि बंजर होती गई। मौसम चक्र में बदलाव आने लगा तथा देश में कभी अतिवृष्टि तथा कभी। सूखा पड़ने लगा। पर्वतों के हरे-भरे वृक्ष भी धीरे-धीरे कटते गए। एक ओर वर्षा के बहाव से रेत मैदानों में आई, वहीं दूसरी ओर पर्वतस्खलन होने लगे। औद्योगिक विकास के अंतर्गत कारखानों की स्थापना के लिए। वनों को काटा गया। इस प्रकार न केवल प्राकृतिक सौंदर्य नष्ट हुआ अपितु वृक्षों की अनेक प्रजातियाँ ही लुप्त हो गई। विभिन्न पश-पक्षियों की प्रजातियाँ प्राकृतिक वातावरण व आश्रयस्थल के अभाव में धीरे-धीरे समाप्त होती गईं।

धीरे-धीरे बढ़ते संकट पर मानव ने विचार करना आरंभ किया। इस विकट स्थिति ने मानव के अस्तित्व पर ही प्रश्न लगा दिया। मानव का जीवन आज भी वनों पर आश्रित है। मानव को वनों से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के लाभ हैं। वन हमारी आर्थिक संपदा के स्रोत हैं। वनों से हमें कच्चा माल उपलब्ध होता है तथा देश की अर्थव्यवस्था में इसकी विशेष भूमिका है। वनों से प्रचुर मात्रा में इमारती लकड़ी, वार्निश, रबड़ आदि मिलता है। देश में प्रयुक्त अस्सी प्रतिशत ईंधन और फर्नीचर के लिए लकड़ी हमें वनों से ही प्राप्त होती है। विभिन्न जड़ी-बूटियाँ, सुगंधित पदार्थ बनाने के साधन और कागज़ का सामान सभी वनों से मिलता है।

प्राकृतिक सौंदर्य तथा पर्यावरण का आधार वन ही हैं। वन वर्षा में सहायक होते हैं तथा वायु को शुद्ध करते हैं। भूमि कटाव को रोकने, भूमि को उर्वरक बनाने में भी इनका महत्त्वपूर्ण योगदान है।

वनों के इस महत्त्व को आज विश्वभर में समझा जा रहा है परंत भारतीय संस्कृति में युगों पहले ही वृक्षों के महत्त्व को समझ लिया गया था। वेदों में प्रकृति की आराधना की गई है। आज तक देश में आँवला. नीम केला, तुलसी, वट, पीपल की पूजा की जाती है। संस्कृत साहित्य प्रकृति तथा वनों की सुंदरता के वर्णन से भरपूर है। पृथ्वी को हरा-भरा, सुंदर तथा आकर्षक बनाने में वृक्षों का बहुत बड़ा हाथ है।

भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए वर्षा का बहुत महत्त्व है। यहाँ बदलते मौसम चक्र की ओर वैज्ञानिकों व चिंतकों का ध्यान गया। सबने वृक्षों के महत्त्व को समझा तथा अपने सुनहरे भविष्य की कामना से प्रदूषण को नियंत्रण में करने व पर्याप्त वर्षा हेतु अधिकाधिक वन लगाने का निर्णय लिया गया। भारत में वनों का क्षेत्रफल 749 लाख हेक्टेयर है। यह भारत क कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 22.7 प्रतिशत है। वैज्ञानिकों का मानना है कि भारत के कुल भू-भाग का एक तिहाई क्षेत्र वन होना चाहिए। इसे ध्यान में रखकर राष्ट्रीय स्तर पर वृक्षारोपण के कार्यक्रम बनाए गए।

सन 1950 में केंद्रीय वन मंडल की स्थापना की गई। सन 1952 स्पष्ट वन नीति घोषित की गई। इसमें वर्तमान वनों की रक्षा तथा समतल व पर्वतीय प्रदेशों में वृक्षारोपण करने का निश्चय किया गया। सरकार ने वनों की कटाई पर भी रोक लगा दी तथा प्रतिवर्ष वन महोत्सव मनाए जाने लगे। प्रतिवर्ष जुलाई के प्रथम सप्ताह में वृक्षारोपण के वृहत् कार्यक्रम बनाए गए। प्रत्येक वर्ष देश के विभिन्न भागों में हजारों की संख्या में वृक्ष लगाए जाने लगे। इस दिशा में श्री सुंदरलाल बहुगुणा के प्रयास तथा उनका 'चिपको आंदोलन' अत्यंत प्रशंसनीय रहा। पर्वतीय प्रदेश के निवासी इस आंदोलन के माध्यम से न केवल देश अपित विश्वभर का ध्यान वनों के विनाश को रोकने की ओर आकर्षित करना चाहते थे।

वन महोत्सव का विशिष्ट योगदान यह रहा कि धीरे-धीरे वक्षों और जंगली जानवरों की संख्या में वृद्धि होने लगी। वन उगाने तथा उनके संरक्षण के महत्त्व का ज्ञान जन-जन तक पहुँचाकर जागति लाई गई। 'वन महोत्सव माह' तथा 'वन महोत्सव सप्ताह' नाम से देशभर में व्यापक स्तर पर वक्षों का रोपण किया गया ताकि प्रदूषण, बाढ़, भू-कटाव, पर्वतस्खलन जैसी आपदाओं से बचाकर पृथ्वी को हरा-भरा, सुरम्य व मानव जीवन को खुशहाल बनाया जा सके।

इस दिशा में राष्ट्रीय प्राणी उद्यान व अभयारण्यों की स्थापना भी सराहनीय कदम है। इन अभयारण्यों तथा राष्ट्रीय प्राणी उदयानों में विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु व वृक्ष विकसित हो रहे हैं। देश की समस्त पंचवर्षीय योजनाओं में वनों के उत्थान के लिए पर्याप्त धनराशि रखी गई। आज अनेक सामाजिक संस्थाएँ भी वृक्षारोपण के लिए समय-समय पर अभियान चलाती हैं। आशा की जा सकती है कि इस जन जागति से यह धरती फिर से हरी-भरी हो जाएगी तथा कवि का यह स्वप्न साकार हो जाएगा-

फूलहिं फलहिं बिटप विधि नाना, 
मंजु बलितवर बेलि बिताना।


निबंध नंबर :- 02 

वन महोत्सव 
Van Mahotsav

भारतीय संस्कृति के अंग : 'उत्सवप्रियाः मानवाः ।' मानव स्वभाव से ही उत्सव प्रिय है । उत्सव भारतीय संस्कृति के अंग हैं। हमारे सभी उत्सव प्रकति के रूप-परिवर्तन और प्रकृति की कृपा से जुड़े हैं। वसंत-पंचमी, होली, दीपावली, पोंगल, तीज, बैसाखी और न जाने कितने उत्सव हम प्रकृति के साथ मनाते हैं । प्रकृति हमें जल, वायु, अन्न, रहने के लिए स्थान सभी कुछ तो प्रदान करती है।

मनाने का समय : प्रकृति से जुड़ा है - हमारा वन महोत्सव । यह जुलाई माह में मनाया जाता है। वन महोत्सव के दिन न तो गुलाल लगाया जाता है, न ही पटाखे चलाए जाते हैं । इस दिन वृक्ष लगाए जाते हैं। पेड़-पौधे रोपे जाते हैं । जुलाई माह की सात तारीख को यह उत्सव संपूर्ण भारत में मनाया जाता है। पेड़ लगाना पुण्य का कार्य है । हमारे पूर्वज वृक्षों के महत्त्व को जानते थे । इसीलिए हरी-भरी प्रकृति के बीच रहना पंसद करते थे । नीम, पीपल, बरगद जैसे वृक्षों की पूजा करते थे किंतु आज वैसा नहीं है। लोग अपने स्वार्थ के लिए वनों को काट रहे हैं। वन नष्ट किए जा रहे हैं। यदि हमें अपनी प्रकृति को बचाना है तो वनों की रक्षा करनी होगी तथा जहाँ-जहाँ वन काटे गए हैं वहाँ फिर से वन लगाने होंगे। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर वर्षा ऋतु में यह उत्सव मनाया जाता है।

वन महोत्सव के लाभ : हमारा कर्तव्य है कि इस दिन हम एक पेड़ अवश्य लगाएँ। एक-एक इलगाने से करोडों पेड लग सकते हैं । बंजर भूमि फिर से हरे-भरे वनों में बदल सकती है। विद्वानों का कहना है कि पेड हमें बाढ़ से बचाते हैं, धरती को बंजर होने से रोकते हैं । धरती की हरियाली यानि वृक्ष  वर्षा को बुलाते हैं। वास्तव में पेड मनुष्य का बहुत उपकार करते हैं।

उपसंहार : आओ प्रतिज्ञा करें कि वन महोत्सव के दिन हम एक पेड़ अवश्य लगाएँगे । अनावश्यक जो पेड़ काटे गए हैं, उनके स्थान पर फिर से पेड़ लगाकर भूमि को बंजर होने से बचाएँगे। मैदानों  में, बस्तियों में, पंचायत घरों और विद्यालय के आस-पास, अस्पताल, खेत तथा घरों के बाहर वृक्ष लगाएँगे और धरती को स्वर्ग के समान सुंदर और सुखकर बनाएँगे।