मेले का दृष्य 
Mele Ka Drishya 

भारतीय जनजीवन में मेलों का विशेष महत्व है। यहाँ देशभर में भिन्नभिन्न अवसरों पर मेलों का आयोजन किया जाता है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक फैली पुण्य भारत भूमि में अलग-अलग तरह के मेले लगते। हैं। कभी सांस्कृतिक मेले कभी त्योहारों के मेले, तो कभी पशु मेले भी यहाँ देखे जा सकते हैं। 

मेला जन साधारण के मनोरंजन का अत्युत्तम साधन है। प्रत्येक मेला। देश की धार्मिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक परंपरा से जुड़ा है। वर्तमान युग में मेलों की उपयोगिता को फिर से पहचाना जाने लगा है, यही कारण है कि भारत की राजधानी दिल्ली में वर्षभर तरह-तरह के मेले. राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित किए जाते हैं। किसी कवि ने ठीक ही कहा है-

जीवन का यह अंग है मेला, 
बिना इनके हर व्यक्ति अकेला।

सामाजिक जीवन में परस्पर सौहार्द और मित्रता बनाने की दृष्टि से मेले अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। मेलों से भारतीय संस्कृति का व्यापक प्रचार व प्रसार होता है तथा हमारा देश भावनात्मक रूप से अत्यंत समृद्ध व संगठित होता है। वर्तमान युग में आर्थिक व औद्योगिक दृष्टि से भी इनके महत्त्व को माना जाने लगा है।

दीपावली के अवसर पर दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित मेला अत्यंत महत्त्वपूर्ण व मनोरंजक मेला होता है। प्रतिवर्ष लगने वाले इस मेले का आयोजन व्यापक स्तर पर किया जाता है तथा लगभग दस दिनों तक चलने वाले इस मेले में हजारों की संख्या में लोग भाग लेते हैं। इस मेले में संपूर्ण भारत के हस्तशिल्पी, कलाकार, नाट्यकर्मी भाग लेते हैं। पूरा रामलीला मैदान विशाल भारत की विभिन्नता में एकता का प्रतिनिधित्व करने लगता है।
पास ही हर प्रांत के कारीगरों द्वारा पकाए षट्रसी भोजन व विभिन्न व्यंजन बिक रहे थे। हर प्रांत के तंबू में लोगों की भीड़ दिखाई दे रही थी। चारों तरफ कागज की प्लेट व पत्तलों का साम्राज्य दिखाई दे रहा था। सब लोग भाँति-भाँति के व्यंजनों का आनंद ले रहे थे। सब प्रांतों के। भोजन एक ही स्थान पर उपलब्ध हों, तो भला कौन स्वाद न चखेगा। 

मेले में लोगों के मुख पर खिली प्रसन्नता को देखकर ऐसा लगता था। जैसे जीवन के सब विषाद, नैराश्य व कटुता समाप्त हो गए हों। चारों तरफ खुशी का माहौल था। तेज चमकते बल्ब, तेज आवाज़ में बजते गीतों की धुन उत्सव का दृश्य प्रस्तुत कर रही थी। कवि इस उल्लासपूर्ण नजारे को व्यक्त करता हुआ कहता है-

मेलों की मधुर वेला आई, 
कहीं तमाशे, कहीं खिलौने, 
कहीं मिठाई रँगीली छाई,
मेलों की अब वेला आई। 

इस प्रकार के मेलों की वर्तमान युग में नितांत आवश्यकता है। व्यक्ति अपने जीवन की व्यस्तता में से कुछ क्षण निकालकर विशुद्ध मनोरंजन करता है। अपने देश की कला-संस्कृति के ज्ञान का यह सरल माध्यम है। इससे न केवल हस्तशिल्पियों द्वारा निर्मित कलाकृतियों व स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार व प्रसार होता है अपितु ऐसी अद्भुत हस्तकलाएँ दीर्घायु होती है।

मेलों में लोग एक दूसरे से प्रेमपूर्वक व्यवहार करते हैं। आपस में। मेलजोल तथा भाईचारे की भावना का विस्तार होता है। इस प्रकार के मेलो का आयोजन देश में आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक तथा कलात्मक समृद्धि लाने में सहायक सिद्ध होता है।