रक्षाबंधन
Rakshabandhan

रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इसी कारण इसे श्रावणी के नाम से भी पुकारा जाता है। पुराने समय के पश्चात पुरोहित यजमानों की रक्षा की कामना करते हुए जो सूत्र हाथ में बाँधते थे, वही रक्षासूत्र रक्षाबंधन के नाम से जाना जाने लगा.

श्रावणी विशेष रूप से पुरोहितों का पर्व है। शास्त्रों श्री छाला के नाम से भी पुकारा गया है। इस वैदिक पर्व के दिन प्राचीन काल यज्ञोपवीत धारण किया जाता था। भारत के कुछ राज्यों में आज भी यह परंपरा जीवित है।

इस पर्व से एक पौराणिक कथा जुड़ी है। एक बार सुर तथा का के मध्य भयंकर संग्राम आरंभ हो गया। धीरे-धीरे अमरी की जीत लिखित होने लगी। सभी देवता काफी चिंतित थे। एक दिन देवराज र आनन। बृहस्पति से विचार-विमर्श कर रहे थे। तभी इंद्राणी के मन में विचार आया। अगले दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। इंद्राणी ने शास्त्रीय विधि से एक रक्षा कवच तैयार किया और इंद्र की कलाई पर बांधा। कार माना से असुरों की हार हुई। माना जाता है कि तब से पुरोहित आपने यजमानो की सुख-समृद्धि तथा रक्षा की कामना से रक्षासूत्र बांधते हैं।

रक्षाबंधन के पर्व से एक ऐतिहासिक गाथा भी जुडी है। एक बार गुजरात के शासक बहादुरशाह ने मेवाड़ देश पर आक्रमण कर दिया बहादुरशाह की विशाल सैन्य शक्ति ने समस्त मेवाड़ को चिंतित कर दिया। मेवाड़ की रानी कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर भाई बना लिया और तब राखी की लाज रखने के लिए हुमायं तुरंत मेवाड पहुंचा। हमारे इतिहास में ऐसे अनेक प्रसंग मिलते हैं जिनसे रक्षाबंधन के धागों के महत्व व मधुर संबंध को जाना जा सकता है।

रक्षासूत्र बाँधते हुए पुरोहित यह मंत्र पढ़ते हैं-

येन बद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबलाः 

तेन त्वां प्रतिबध्नामि, रक्षे मा चल मा चल।

अर्थात रक्षा के जिस साधन से महाबली राक्षसराज को बाँधा गया था, मैं उसी से तुम्हें बाँधता हूँ। हे रक्षासूत्र, तू भी अपने धर्म से विचलित न होना तथा भली-भाँति रक्षा करना।

इस दिन घरों में खीर व सेवइयाँ बनती हैं। लोग दीवारों पर गणपति के चित्र बनाकर उन्हें राखी बाँधते हैं तथा नैवेद्य चढ़ाते हैं। यजमान राखी बँधवाकर पुरोहितों को दक्षिणा देते हैं।

रक्षाबंधन भाई-बहन के पावन प्रेम का प्रतीक है। रक्षाबंधन से पहले ही बाजारों में रंग-बिरंगी राखियाँ बिकने लगती हैं। चारों तरफ़ राखियाँ ही राखियाँ नज़र आती हैं। मिठाइयों की दुकानों पर तरह-तरह की मिठाइयाँ दिखाई देती हैं।

रक्षाबंधन के दिन भाई-बहन स्नानादि कर नए वस्त्र पहनते हैं। बहनें थाली में राखी, कुंकुम, मिठाई आदि रखती हैं। अपने भाई के मस्तक पर रोली या कुंकुम का टीका व चावल लगाती हैं। कलाई पर प्रेमपूर्वक राखी बाँधती हैं। राखी बाँधने के बाद भाई का मुंह मीठा कराती हैं तथा मन ही मन कामना करती हैं कि उनके भाई का जीवन सुख, शांति व समृद्धि से परिपूर्ण हो। 

भाई भी राखी बंधवाकर अपनी बहन को प्रेमस्वरूप रुपए या उपहार भेंट करते हैं। वे बहन को वचन देते हैं कि उसके सम्मान की रक्षा के लिए आजीवन प्रयत्नरत रहेंगे। भाई-बहन के अनोखे पवित्र प्रेम का ऐसा उत्सव संसार के किसी भाग में भी नहीं मनाया जाता। भावनात्मक मूल्य रखनेवाले राखी के कच्चे धागों के समक्ष समस्त संसार की दौलत तुच्छ जान पड़ती है। निश्चित रूप से इस त्योहार का अपना अलग ही महत्त्व है।