मेरे प्रिय अध्यापक 
Mere Priya Adhyapak

तो विद्यालय के सभी अध्यापकों के प्रति मेरे मन में आदर व सम्मान है परंतु हमारे हिंदी के अध्यापक अपनी विशिष्टताओं के कारण मुझे सर्वाधिक प्रिय हैं।

मेरे प्रिय अध्यापक न केवल एक आदर्श शिक्षक हैं अपितु एक सच्चे देशभक्त, उत्कृष्ट कोटि के समाज सुधारक तथा सच्चरित्रता की साक्षात मूर्ति हैं। उनका उदात्त चरित्र सबको अपनी ओर आकृष्ट करता है। जैसा कि वर्जिल ने कहा है कि-सद्गुण में भी चार चाँद लग जाते हैं यदि वे किसी सुंदर व्यक्ति में हों, उसी के अनुरूप मेरे गुरु जी के सद्गुणों की सुगंध से सारा विद्यालय सुगंधित रहता है तथा उनके बलिष्ठ शरीर व आचार से हमें सदा प्रेरणा मिलती रहती है। सब उन्हें 'गुरु जी' कहते

मेरे प्रिय गुरु जी को अपने विषय का भरपूर ज्ञान है। वे हमें समयसमय पर विभिन्न पौराणिक गाथाएँ सुनाते हैं। छात्रों को सुसंस्कृत बनाने की ओर उनका विशेष प्रयल रहता है। वे हमें बताते हैं कि आचारः परमो धर्मः तथा इसका पालन वे स्वयं भी करते हैं। कक्षा में उनका धैर्य देखते ही बनता है। क्रोध उन्हें छु तक भी नहीं गया। वे सब छात्रों को समान प्रेम करते हैं। छात्रों को विषय समझ न आने पर धैर्यपूर्वक समझाते हैं।

गुरु जी विद्यार्थियों को समय पालन के लिए विशेष रूप से सतर्क रहने की प्रेरणा देते हैं। घंटा बजते ही वे कक्षा में उपस्थित हो जाते हैं। तथा उनका मानना है कि समय की गति को पहुंचानने वाला अपने भाग्य के द्वार स्वयं खोलता है। कभी-कभी छात्र आपस में लड़ते हैं तो वे उन्हें स्नेहपूर्वक समझाते हैं कि झगडे में समय व शक्ति व्यय करना मूर्खता है। समय बीत जाने पर मनुष्य को पछताना पड़ता है। वे हमें गीता के श्लोक सुनाते हैं और कहते हैं, 'स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धि विन्दति मानवः' अर्थात अपने-अपने कर्मों के अनुसार पूजा करने से ही मनुष्य को सिद्धि मिलती है लेकिन विद्यार्थी के लिए तो उचित शिक्षा प्राप्त करना ही पूजा है। अध्ययन ही उसका धर्म है।

गुरु जी स्वयं भी समय का पूर्ण सदुपयोग करते हैं। अपने खाली समय में वे कोई समाचार पत्र या पत्रिका पढ़ते हैं या पुस्तकालय में बैठे कुछ लिख रहे होते हैं। गुरु जी के बार-बार समझाने से कितने ही छात्र खाली समय का सदुपयोग करने लगे हैं तथा अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो। गए हैं।

हर छात्र की व्यक्तिगत समस्याओं पर वे ध्यान देते हैं। उनका उददेश्य केवल पाठ्यपुस्तकों का ही ज्ञान देना नहीं है अपित वे अपने छात्रों को जीवन क्षेत्र में विजयी होने हेतु सक्षम भी बनाना चाहते हैं। वे हमें बताते हैं कि भगवान शिव जब परोपकार तथा परहित के लिए विषपान कर सकते। हैं तो क्या हमें सबके सुख-दुख का ध्यान नहीं रखना चाहिए? बालकों के दुख को वे अपना दुख समझते हैं। किसी भी छात्र का यदि कक्षा में। ध्यान नहीं है तो वे तुरंत समझ जाते हैं कि वह किसी प्रकार के मानसिक तनाव से गुजर रहा है। अपने विद्यार्थियों के चेहरों से वे उनके मन की भावनाओं को जान जाते हैं। मैं घर में भी गुरु जी की इस कुशलता की प्रायः चर्चा करता रहता है। कभी-कभी लगता है कि गुरु जी जितना हमें। समझते हैं, शायद हम स्वयं को भी उतना नहीं जानते।

गुरु जी विभिन्न कलाओं में निपुण हैं। वे एक कुशल चित्रकार हैं। पाठ से संबंधित चित्र को श्यामपट पर इतनी कुशलता से चित्रित कर देते। हैं कि सब छात्र ठगे-से रह जाते हैं। वे हमें भी चित्रकला का अभ्यास करने की प्रेरणा देते हैं। गुरु जी का लेख सब छात्रों के लिए उत्कृष्ट उदाहरण है। श्यामपट पर लिखे अक्षर मोती-से चमकते हैं। वे कहते हैं कि लेख को आकर्षक बनाने में चित्रकला का अनुपम योगदान है। इस संदर्भ में वे हमें बार-बार गांधी जी का उदाहरण देते हैं।

गुरु जी हमें समय-समय पर पर्यटन हेतु शहर से बाहर भी ले जाते हैं। कक्षा के बाहर वे हमसे मित्रवत व्यवहार करते हैं। छात्रों के साथ खाना-पीना, उठना-बैठना और खेलना उनकी विशिष्टताएँ हैं। ऐसे में जब सब अध्यापक आपस में व्यस्त होते हैं तो हमारे गुरु जी चारों ओर से छात्रों से घिरे हुए होते हैं। वे छात्रों के साथ दौड़ लगाते हैं और उत्साहपूर्वक खो-खो आदि खेल खेलते हैं। कुछ क्षण के लिए तो हम सब भूल ही जाते हैं कि वे हमारे शिक्षक हैं या मित्र। ऐसा मित्रवत स्नेह उनकी अलग ही पहुंचान है। 

हमारी कक्षा की स्वच्छता देखते ही बनती है। गुरु जी सब छात्रों को स्वावलंबी बनने की प्रेरणा देते हैं। वे कहते हैं कि हमें अपने आसपास का वातावरण स्वच्छ रखना चाहिए तथा इसके लिए स्वयं पर ही निर्भर करना चाहिए। व्यक्ति का समाज में क्या योगदान है, इसका आभास आज हम सब छात्रों को है। इस सबका श्रेय हमारे गुरु जी को जाता है। उन्हें देखकर 'गुरु ब्रह्मा....' श्लोक मन में गूंजने लगता है। लगता है कि गुरु ही साक्षात ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। लगता है, शायद भक्तिकालीन समस्त साहित्य में ऐसे ही गुरुजनों की महिमा का वर्णन है। हमारा मन पुकार उठता है-

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो मिलाय॥ 

जीवन की सही दिशा दिखाने वाले, ज्ञान का पथ प्रदर्शित करनेवाले मेरे प्रिय अध्यापक ही मेरे सच्चे गुरु हैं।