मेरा देश भारत 

Mera Desh Bharat


लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीलास्थल कहाँ ?

फैला मनोहर, गिरि हिमालय और गंगा जल जहाँ।

संपूर्ण देशों से अधिक किस, देश का उत्कर्ष है?

उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है। 


कविवर मैथिलीशरण गुप्त ने विश्व के प्राचीनतम देशों में प्रमुख भारतवर्ष की महिमा का गान उपयुक्त ही किया है। आर्यावर्त कहलाने वाली यह पुण्य भूमि विश्वभर में भौगोलिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से विशिष्ट है।

भारत प्राचीनकाल में आर्यावर्त के नाम से जाना जाता था। यहाँ के निवासी आर्य कहलाते थे। महाप्रतापी महाराज दष्यंत तथा कण्व ऋषिपालिता शकुंतला के पुत्र भरत, जो महाप्रतापी सूर्यवंशी राजा बने, के नाम से इस देश का नाम भारत पड़ा।

भौगोलिक दृष्टि से भारत में अत्यंत समृद्धि के दर्शन किए जा सकते हैं। इसके उत्तर में विशाल हिमालय पर्वत सुशोभित है तथा दक्षिण में अथाह गंभीर हिंद महासागर इसके चरण पखारता है। संसार के समस्त सुंदर प्राकतिक नजारों के दर्शन यहाँ किए जा सकते हैं। तभी तो कवि इकबाल के हृदय से यह भावधारा प्रस्फुटित हुई-सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ताँ हमारा।

यहाँ कश्मीर में बर्फ से ढके पहाड़, केरल-तमिलनाडु में दूर-दूर तक फैला समुद्र और उसके तटीय क्षेत्रों की शोभा, राजस्थान के रेतीले रेगिस्तान, सब एक साथ देखने को मिलते हैं। देश के एक भाग में बर्फीली हवाएँ चलती हैं तो दूसरे भाग में कहीं तटीय शीतलता है तो कहीं भीषण उष्णता। प्रकृति के विभिन्न रूप हमारे देश को अद्भुत विलक्षणता प्रदान करते हैं। कविवर गोपाल सिंह नेपाली लिखते हैं-


इसकी छाया में रंग गहरा

है देश हरा प्रदेश हरा

हर मौसम है संदेश भरा,

इसका पदतल छूनेवाला वेदों की गाथा गाता है। 


हमारा देश भारत सब देशों में शिरोमणि है। इसका अतीत भव्य व गौरवशाली है। यहाँ चंद्रगुप्त, अशोक व अकबर जैसे अनेक सम्राटों ने शासन किया। वर्तमान का अफ़गानिस्तान जो गांधार कहलाता था, वहाँ तक यहाँ के सम्राटों का शासन था। यहाँ के शासकों के प्रताप व यशोगाथा का वर्णन करते हुए श्री रामनरेश त्रिपाठी लिखते हैं-


अतुलनीय जिनके प्रताप का, साक्षी है प्रत्यक्ष दिवाकर

घूम-घूमकर देख चुका है, जिनकी निर्मल कीर्ति निशाकर

देख चुके हैं जिनका वैभव, ये नभ के अनंत तारागण

अगणित बार सुन चुका है नभ, जिनका विजयघोष रण गर्जन 

भारत की पावन भूमि पर गंगा, यमुना, कृष्णा, कावेरी, गोदावरी, सतलुज, रावी और व्यास जैसी पुण्य नदियाँ प्रवाहित होकर समस्त भूमि को शस्य-श्यामल बनाए रखती हैं। देश में छह ऋतुएँ अपना-अपना । प्राकृतिक वैभव दिखाती हैं। देश की जलवायु परिवर्तनशील है। यहाँ कश्मीर, जम्मू जैसे रमणीक तथा मनोहर स्थल हैं जो धरती का स्वर्ग कहलाते हैं। दक्षिण व उत्तर के प्रदेशों की हरियाली देश को अत्यंत आकर्षक रूप प्रदान करती है। यहाँ भाँति-भाँति के वक्ष, फल, फूल और सब्जियाँ बहुतायत में होते हैं। ये सब देखकर ही कविवर प्रसाद ने लिखा है-

अरुण यह मधुमय देश हमारा,

जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा


भारत सचमुच विशाल व महान देश है। इसे स्वयं प्रकृति देवी ने अपने हाथों से सजाया व सँवारा है। यहाँ की भूमि सोना, चाँदी, ताँबा, लोहा, कोयला आदि विभिन्न खनिज पदार्थों से समृद्ध है।

भारत के अधिकांश लोग खेती करते हैं तथा विभिन्न प्रकार के पदार्थ यथा कपास, से विश्व की धर्मगुरु रही है। हमारा देश यगों से अनेक ऋषि-मनियों की तपोभूमि रहा। वेद, शास्त्र, पुराण, रामायण महाभारत गीता जैसे गंथों की यहाँ रचना की गई। यहाँ राम, कृष्ण, अर्जुन, महावीर, महात्मा बुद्ध, गुरु नानक, शंकराचार्य जैसी दिव्या पवानात्माओं ने जन्म लिया। वेदव्यास, तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई, केशव, कबीर, घनानंद जैसे कवियों की अमर रचनाएँ विश्व साहित्य को दिशा दिखाती हैं।

यहाँ अजंता एलोरा की गुफाओं के भित्ति चित्र, ताजमहल, कुतुबमीनार, दिलवाड़ा के मंदिर, दक्षिण के रथ मंदिर कला व शिल्प की अद्भुत मिसाल हैं। नालंदा तथा तक्षशिला जैसे महाविदयालयों ने अनेक विदेशियों को भी शिक्षा दी। यहाँ अनेक धर्मात्मा, त्यागी, परोपकारी व बीर पुरुष तथा स्त्रियाँ हुई। ध्रुव, प्रहलाद, लव-कुश, अभिमन्य जैसे बीर बालकों ने अपने उच्च आदर्शों के सम्मुख भविष्य को भी नतमस्तक कर दिया। सीता, शकुंतला। मैत्रेयी, गाणी, लक्ष्मीबाई जैसी महान वीरांगनाओं ने इस पुण्य भूमि पर जन्म लिया।

हमारा देश प्राचीन काल में सोने की चिड़िया कहलाता था। आर्थिक दृष्टि से संपन्न होने के कारण विदेशियों की धन-लोलुप दृष्टि बार-बार हमारे देश पर पड़ती रही। कई बार शत्रुओं ने यहाँ आक्रमण किए पर हर। बार उन्हें मुंह की खानी पड़ी। बार-बार विदेशियों से संघर्षरत रहने के कारण देश की भावात्मक एकता, आर्थिक संपन्नता और समृद्धि को अनेक प्रकार से हानि उठानी पड़ी। हमारा देश जो असंख्य वर्ष पूर्व ऋषि चरक के समय से चिकित्सा व शल्य चिकित्सा में निपुण था, जहाँ गणितरेखागणित तथा नक्षत्रों की विभिन गणनार की जाती थी, जहाँ ज्योतिषशास्त्र व नक्षत्र विज्ञान अत्यंत उन्नत था तथा जहाँ वायुवेग से आकाशगामी रथ चला करते थे- वह महान भारत देश आज पुनः वैज्ञानिक प्रगति के पथ पर अग्रसर है। यहाँ शल्य चिकित्सा तथा ब्रह्मांड के विषय में अनेक अनुसंधान सफल हुए हैं। यहाँ गत तीन दशकों में ही वैज्ञानिक उनति असाधारण रूप से हुई है। विभिन्न आणविक केंद्र, नेट व जेट विमान तथा कम्प्यूटर आदि की तकनीकी उन्नति व औद्योगिक तरक्की इसे शीत्र ही पुरातन संपन्नता प्रदान करेगी।

भारत में विभिन्न धर्म, जाति व संप्रदायों के लोग मिल-जुलकर रहते। हैं। यहाँ हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, पंजाबी, बंगला, गुजराती, मराठी आदि। विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं। यहाँ वर्षभर में सैकड़ों पर्व मनाए जाते हैं। जिनमें होली, दशहरा, दीपावली, राखी, पोंगल, ओणम, बैसाखी, दुर्गा पूजा गणेशोत्सव, ईद, क्रिसमस आदि प्रमुख हैं। हर प्रदेश के विभिन्न लोक नत्य व संगीत हैं। हर भाषा का अपना समृद्ध साहित्य है। यहाँ महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, सुभाषचंद्र बोस, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, सरदार पटेल जैसे देशभक्त तथा राजा राममोहन राय, दयानंद सरस्वती, विनोबाभावे. बाबा आमटे जैसे समाज सुधारकों ने जन्म लिया तथा आजीवन मानवता की सेवा में जुटे रहे।

भारत देश ने समस्त विश्व को सत्य, अहिंसा, दया, शांति, ममता, प्रेम, उपकार आदि का मार्ग दिखाया। विभिन्नता में एकता रखने वाला यह देश गणतंत्र प्रधान है जहाँ प्रत्येक नागरिक सम्मानपूर्वक जीता है। तभी कवि सुमित्रानंदन पंत लिखते हैं-


जय जन भारत, जनगण अभिमत, जय स्वतंत्र विधाता।

भारत की विशेषताओं को देखकर हृदय पुकार उठता है

जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गात् अपि गरीयसी।