नर्स की आत्मकथा 
Nurse Ki Atmakatha



मैं सरकारी अस्पताल की नर्स हूँ। मेरा जन्म एक साधारण परिवार में हुआ। बचपन से ही मैं सब बच्चों से अलग पेड-पौधों में रहना पसंद करती थी। कभी भी खेलकूद में मेरा मन नहीं लगा। मुझे पशु-पक्षियों के क्रियाकलाप देखना बहुत भाता था। मुझे सदा लगता था कि प्राणी जगत में प्रेम व ममता का अभाव होता जा रहा है।

मेरे पिता जी चाहते थे कि मैं बड़ी होकर पुलिस अधिकारी बन, परंत खेलकूद-व्यायाम मुझे कभी नहीं भाए। इसका कारण मेरा संकोची स्वभाव था। मैं बहुत कम बोलती थी तथा इसी कारण सदा सहेलियों का अभाव रहता था। हाई स्कूल पास करने के बाद मेरी कक्षा की कुछ लड़कियों ने एक फॉर्म भरा। पूछने पर उन्होंने बताया कि यह नर्सिंग प्रशिक्षण विद्यालय का प्रवेश पत्र है।

मैंने घर आकर पिता जी को सारी बात बताई। समाजसेवा की अट भावना देखकर पिता जी ने मुझे नर्सिंग प्रशिक्षण दिलवाना तय कर लिया।। मेरा प्रशिक्षण समाप्त होते ही मुझे सरकारी अस्पताल में नौकरी मिल गई। यह नौकरी मेरे लिए कोई व्यवसाय नहीं, एक सेवा है। शपथ लेते समय भी मेरे मन में मानव सेवा की भावना भरी थी। अत्यधिक भावविभोर होने के कारण मेरी आँखें भर आई थीं। बस, तब से मन में जनसेवा के प्रति श्रद्धा व आस्था ने जन्म ले लिया। अस्पताल में मेरा समय कैसे बीत जाता है, कछ पता ही नहीं चलता। चारों तरफ शारीरिक कष्ट सहते हुए रोगियों को देखकर मन में ईश्वर के प्रति धन्यवाद का भाव आता है कि उसने मुझे स्वस्थ काया प्रदान की है। इस स्वस्थ काया का किसी लाचार की सेवा में प्रयोग कर सकूँ, इससे अच्छा इसका सदुपयोग और क्या हो सकता है। यही कारण है कि जब कभी कोई मरीज आवाज लगाता है, मैं सर्वप्रथम उसके पास उपस्थित हो जाती तथा यथासंभव उसकी आवश्यकता पूरी करने का प्रयत्न करती हूँ।

कभी-कभी बीमार लोगों को मरते हुए देखकर जीवन के प्रति आस्था टूटने लगती है तथा संसार की नश्वरता जानकर मन उदास हो उठता है। परंतु दूसरे ही क्षण अन्य विचार प्रबल हो उठते हैं और मानव-सेवा को ईश्वर सेवा जानकर अपने कामों में जुट जाती हूँ।

मैं काम पर जाते समय सफ़ेद वस्त्र पहनती हैं। मुझे सदा से यह लगता है कि ये सफ़ेद वस्त्र न केवल स्वच्छता की दृष्टि से उपयोगी व सार्थक हैं अपितु ये इस काम में मन की शुद्धता के भी प्रतीक हैं। मुझे लगता है कि सभी नसें रात-दिन रोगियों की सेवा में निस्वार्थ जुटी रहती हैं। ऐसा पवित्र भाव अन्य व्यवसायों में कम ही देखने को मिलता है।
हर नर्स की भांति मुझे भी समय का पाबंद रहना पड़ता है। कभी किसी रोगी की दवाई का समय है, तो कभी किसी बीमार को इंजेक्शन देना है। घड़ी की सूई के अनुसार में हर रोगी को उसकी आवश्यकता अनुसार खाना-पीना, दवा आदि देती रहती हूँ। कभी-कभी रात को आँखें नींद से भर जाती हैं, शरीर बोझिल होने लगता है पर कर्तव्य के सामने व्यक्तिगत सुख बौने लगने लगते हैं। अपनी इच्छाओं को नकार कर मैं दिन-रात काम में जुटी रहती है। यह सब मुझे असीम आनंद व शांति प्रदान करता है। 

कभी-कभी मेरे परिवार के लोग मेरी व्यस्तता तथा आने-जाने के समय को लेकर काफी चिंतित हो उठते हैं। उन्हें मेरे स्वास्थ्य की चिंता होती है। मैं अपने मरीजों को जो स्नेह, दया व ममता देती है, उसके बदले मय भी मुझे भरपर आशीर्वाद और स्नेह प्रदान करते हैं। पर सेवा की। जो भरपूर दौलत मैं लोगों में बाँटती है, वह दिन दूनी रात चौगुनी होकर मुझे मिलती है।

कभी-कभी मुझे अपनी साथी नसों के व्यवहार को देखकर रोष जाता है। लाचार रोगियों पर अपने क्रोध की वर्षा करने वाली ये ना निश्चित रूप से इस व्यवसाय के उपयुक्त नहीं है। इस व्यवसाय में केवल उदार, सहृदय, दया व ममता से परिपूर्ण उन लोगों को आना चाहिए जो दूसरों की खुशी में अपनी खुशी खोजते हैं।

मैं अपने अस्पताल को अपना आराध्य स्थल मानती हूँ तथा सेवा को अपना धर्म। अस्पताल के समस्त कर्मचारी मेरे कार्य की सदा सराहना करते हैं। मेरे सहकर्मी मेरा आदर करते हैं। एक व्यक्ति के जीवन में क्या इतनी उपलब्धि कम है?