यदि मैं प्रधानाचार्य होता
Yadi Me Principal Hota

राष्ट्रनिर्माण में शिक्षकों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। इस कर्म क्षेत्र के प्रत्येक दायित्व का पालन करने हेतु मेरी सदा अभिलाषा रही कि काश मैं किसी विद्यालय का प्रधानाचार्य होता! आज के विद्यालयों तथा विद्यार्थियों। की स्थिति को देखकर न केवल भावी पीढ़ी के भविष्य की चिंता होती है अपितु छात्रों की अवज्ञा, उदंडता तथा अनुशासनहीनता के प्रश्न को भी। जन्म देती है कि क्या सब अपने उत्तरदायित्वों के पालन हेतु कृतसंकल्प भी हैं?

यदि मैं किसी विद्यालय का प्रधानाचार्य होता तो नैतिक मूल्यों. रचनात्मक गुणों, उच्च आदर्शों का पालन करते हुए शिक्षा की सर्वांगीण। समृद्धि पर बल देता। विद्यालयों में विद्यार्थियों को शिक्षा ही नहीं दी जाती अपितु उनमें अच्छे संस्कारों का बीजारोपण किया जाता है। आदर्श अध्यापक ही इस दिशा में कर्मरत हो छात्रों में श्रेष्ठ संस्कार डाल सकते हैं। यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो अपने विद्यालय में भारतीय संस्कृति व परंपरा के अनुकूल स्वस्थ परंपराओं का पालन करता तथा अधीनस्थ कर्मचारी व शिक्षकों से इस दिशा में सचेष्ट रहने संबंधी दिशानिर्देश देता। इन उच्च संस्कारों के परिणामस्वरूप ही छात्र अपने देश, जाति, संस्कृति । व सभ्यता के प्रति आत्मगौरव अनुभव करने में सक्षम होते हैं।

प्रधानाचार्य का पद विद्यालय में अत्यधिक गरिमायुक्त पद होता है। इस पद की गरिमा को बनाए रखने के लिए मैं समय पालन, अनुशासन, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और मधुर व्यवहार को अपनाता। अध्यापक भी इन गुणों को अपनाएं, इसके लिए स्वयं उदाहरण बनता ताकि सब विद्यालय। को एक आदर्श विद्यालय बनाने में सफल हो सकें। मेरी मान्यता है कि विद्यार्थी पर विद्यालय के वातावरण का बहुत प्रभाव पड़ता है। अध्यापक विद्यार्थियों के आदर्श होते हैं। विद्यार्थियों पर प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप अध्यापकों के चरित्र, आचार-विचार व व्यवहार का प्रभाव पड़ता प्रभाव पड़ता है। मैं अपने विद्यालय में अध्यापकों की नियुक्ति के समय यह ध्यान देता कि अध्यापक विशुद्ध भारतीय परंपराओं व विचारों में आस्था रखने वाले हों तथा सादा जीवन व उच्च विचार उनका ध्येय हो। आधुनिक पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित आदर्शहीन शिक्षक विद्यार्थियों को क्या शिक्षा देंगे?

मैं अध्यापकों के मान-सम्मान का भी ध्यान रखता। अध्यापकों के आर्थिक स्तर को सुधारने की दिशा में मैं प्रयत्नरत रहता ताकि अध्यापक अपने कर्तव्यों का सही रूप से पालन कर पाएँ। वे अपने विद्यार्थियों को सही शिक्षा व ज्ञान दें तथा साथ-साथ नैतिकता पर विशेष बल दें। अध्यापकों की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वे शिक्षा को व्यवसाय समझने लगते हैं तथा केवल पाठ्यपुस्तकों को पढ़ाना ही अपना कर्तव्य समझ बैठते हैं। कुछ शिक्षक तो इस कर्तव्य को भी नहीं निभाते तथा वे ट्यूशन लेकर धनोपार्जन ही अपना लक्ष्य मानते हैं। मैं यदि प्रधानाचार्य होता तो नैतिक शिक्षा पर बल देता तथा अध्यापक सामाजिक व आर्थिक रूप से सम्मानित जीवन कैसे व्यतीत करें, इस दिशा में प्रयलरत रहता।

यदि में प्रधानाचार्य होता तो विद्यालय में अनुशासन पर बल देता। अनुशासनहीनता न केवल व्यक्ति अपितु समस्त समाज व राष्ट्र को नुकसान पहँचाती है। अनुशासन बाहरी रूप से जबरन थोपा जाए तो उससे लक्ष्य प्राप्त नहीं होता। मैं अध्यापकों तथा छात्रों में बाह्य अनुशासन के स्थान पर भीतरी अनुशासन की आदत डालना पसंद करता। अनुशासन के प्रति यदि मन से सम्मान हो तब ही किसी व्यक्ति, राष्ट्र व भावी पीढ़ी का उत्थान संभव है। मैं चाहता हूँ कि सभी विद्यार्थी आपसी मनमुटाव, भेदभाव, जाति, धर्म के समस्त भेदों को मिटाकर आपस में प्रेम व शांति से शिक्षा ग्रहण करें।

यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो यह प्रयास करता कि छात्र मेरे व्यक्तित्व से प्रभावित होकर प्रेम, दया, श्रदधा की भावना ग्रहण करें। मैं छात्रों से पितृवत व्यवहार करता ताकि समस्त विद्यालय का वातावरण मधुर हो। सक, छात्र शिक्षकों का उचित सम्मान कर सकें और शिक्षक छात्रों केशारीरिक, बौद्धिक व मानसिक विकास में तन-मन से जुटे रहें। इस प्रकार के वातावरण में छात्र शिक्षा ग्रहण कर, अपार सुख व गर्व का अनुभव करते हैं। इससे ऐसा विद्यालय अन्य विद्यालयों से भिन्न व श्रेष्ठ बन जाता है तथा अन्यों के सम्मुख एक आदर्श प्रस्तुत करता है।

यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो छात्रों के उचित शैक्षिक विकास हेत विद्यालय में विभिन्न विषयों की पुस्तकें उपलब्ध कराता। इन्हें पुस्तकालय के वाचनालय में इस प्रकार रखवाता कि छात्र किसी भी समय आकर इन पुस्तकों का लाभ उठा पाते। वाचनालय में सभी प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध करवाता ताकि छात्र विद्यालय द्वारा उपलब्ध समस्त सुविधाओं से लाभान्वित हो सकें। निर्धन छात्रों के लिए मुफ्त शिक्षा व्यवस्था के साथ। साथ मैं उनके लिए छात्रवत्तियों का भी प्रबंध करवाता। 

मैं अपने विद्यालय में छात्रों को प्रोत्साहित करने हेतु विभिन्न प्रकार। के पुरस्कारों की व्यवस्था भी करवाता। जो छात्र नियमित रूप से विद्यालय। में उपस्थित होते हैं, विद्यालय के नियमों का पालन करते हैं, स्वच्छता। का ध्यान रखते हैं, पढ़ाई में अपनी योग्यता का प्रदर्शन करते हैं या लेखन। गायन, नृत्य, वाय, चित्रकला आदि किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट योग्यता रखते हैं - मैं उनके प्रोत्साहन के लिए समय-समय पर विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन करवाता और अधिकाधिक संख्या में छात्रों को पुरस्कार। वितरित करता। उनकी रुचि के क्षेत्र में उनके विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था। कर, उन्हें आगे बढ़ाने का प्रयास करता।

मैं विद्यालय की स्वच्छता का अत्यधिक ध्यान रखता। विदयालय की। कक्षाओं, खेल का मैदान व शौचालयों का स्वयं निरीक्षण करता तथा समय-समय पर छात्रों से वार्ता करता ताकि मझे उनकी दिन-प्रतिदिन की समस्याएं ज्ञात हो सकें। जिनका निवारण कर मैं उनके विकास के लिए। सतत प्रयत्नशील रहता। में स्वयं भी कुछ कक्षाओं में शिक्षण कार्य करता ताकि विद्यालय की सभी समस्याओं से मेरा प्रत्यक्ष साक्षात्कार होता आर मैं उनमें गुणात्मक सुधार कर पाता। मैं शिक्षण तथा परीक्षा प्रणाली में भी सुधार लाता ताकि छात्रों पर पाठ्यपुस्तकों का बोझ कम हो सके। उनके बौद्धिक विकास हेतु अन्य गतिविधियों व रचनात्मक शैली में शिक्षण हेतु विभिन्न उपकरण क्रय कर विद्यालय में अत्याधुनिक शिक्षा व्यवस्था में अपने विद्यालय में नियमित रूप से नैतिक शिक्षा, खेलकुद, व्यायाम व मनोरंजन पर भी बल देता। सहशिक्षा के माध्यम से अपने विद्यालय के वातावरण को समृदय व पुष्ट बनाता तथा शिक्षा को पूर्ण शिक्षा बनाने का प्रयास करता। समय-समय पर अंतर्विद्यालयी खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन करवाता तथा छात्रों को देश-विदेश भ्रमण के लिए भी ले जाता। इससे छात्र दूसरों के संपर्क में आते हैं तथा उनके व्यावहारिक ज्ञान में वृथि होती है।

यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाकर छात्रों को चारित्रिक, नैतिक, बौधिक, सांस्कृतिक व कलात्मक दृष्टि से पुष्ट विद्यार्थी । बनाता ताकि वे आगे चलकर देश के विकास में सहायक सिद्ध हो सकें।