पोंगल का त्योहार 
Pongal ka Tyohar

दक्षिण भारत में मनाए जाने वाले कृषि पर्यों में पागल का विशेष महत्त्व है। तमिलनाडु में धान की फसल कटने की खुशी में पागल का त्योहार मनाया जाता है।

पोंगल का त्योहार जनवरी मास के मध्य में मनाया जाता है। यह तमिल माह के अनुसार तइ नामक मास की प्रथमा को मनाया जाता है। यह उत्तरायण के आरंभ का द्योतक है। माना जाता है कि इस दिन से सूर्य उत्तर दिशा में जाता है।

पोंगल से पहले का दिन बोगी कहलाता है। इस दिन लोग घरों को झाड़-पोंछ कर साफ़ करते हैं। वे अपने घर आँगन की लिपाई-पुताई भी करवाते हैं। इस दिन घर की पुरानी चीजों तथा टूटे-फूटे सामान को बाहर निकाल देते हैं। इस सामान को इकट्ठा कर होली बना ली जाती है। बोगी की रात को इसे जलाया जाता है। इस अवसर पर लडके बोगी कोट अर्थात छोटे-छोटे ढोल बजाते और नाचते हैं।

अपने वातावरण को स्वच्छ व शुद्ध रखने की दृष्टि से बोगी का विशेष महत्त्व है। बोगी देवराज इंद्र की प्रसन्नता के लिए मनाया जानेवाला पर्व है। जिस प्रकार प्रकृति नई कोंपलें धारण कर अपना रंग-रूप संवार लेती है, उसी तरह सब अपने घरों को साफ़ कर उन्हें नया व सुंदर रूप देते हैं। नए उगे चावल को पीसकर 'कोलम' बनाए जाते हैं। दीवारों व फ़र्श पर देवी-देवताओं की आकृतियाँ बनाई जाती हैं। - इस दिन लोग सुबह-सुबह नहा-धोकर नए व साफ़ वस्त्र पहन लेते है। इस दिन सूर्य देवता की अर्चना की जाती है। सूर्य देवता की आकृति । तैयार कर उसकी विधिपूर्वक पूजा की जाती है और नए उगे चावल का विधिपूर्वक भोग लगाया जाता है। सूर्य देवता को प्रणाम कर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।

इस अवसर पर सूर्य देवता के लिए 'शर्करइ' नामक व्यंजन तैयार किया जाता है। शर्करइ बनाने के लिए नया बरतन खरीदा जाता है। नई पर के चावल, गड व ध से शर्करइ बनाकर सूर्य देवता का भोग लगाया - है। जिस बरतन में उसे पकाते हैं, उसके गले में हल्दी का पौधा बाँधा - है। तमिल लोग हल्दी को अत्यधिक पवित्र मानते हैं। पूजा के बाद प्रस व गंडेरिया बच्चों में बाँटी जाती हैं। पोंगल के इस अवसर पर लोग एक दूसरे को शुभकामना देते हैं और कामना करते हैं कि सबके अन्न भंडार भरे रहें।

अगले दिन माट्ट पोंगल मनाया जाता है अर्थात उस दिन पशुओं का पोंगल उत्सव होता है। इस दिन सुबह-सुबह नहाकर पशु पूजन किया जाता। है। खेतों में गोबर से गणेश की मूर्तियाँ बनाई जाती हैं, उन्हें फलों से सजाया जाता है। मिट्टी के बड़े-बड़े बरतनों में पोंगल बनाया जाता है तथा गणेश जी को भोग लगाया जाता है।

इस दिन बैलों तथा पालतू पशुओं को नहलाकर उनके मस्तक पर हल्दी-कुंकुम का टीका लगाते हैं। ताड़ के पत्तों से बैलों के गले में डालने के हार तैयार करते हैं। बैलों के सींगों को रंगों से रंगकर उन्हें सजाया जाता है। उन्हें पोंगल खिलाया जाता है।

इस अवसर पर खेती के काम में आने वाले हल तथा अन्य औजारों। को भी सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है।

इस दिन किसान अपने बैलों के गले में रुपयों की थैली बाँधकर उन्हें गलियों में छोड़ देते हैं। साहसी नवयुवक इन भागते बैलों को बलपूर्वक रोककर रुपयों की थैली को ले लेते हैं। भागते बैलों तथा नवयुवकों का उत्साह देखते ही बनता है। इस अवसर पर बैलगाडियों की दौड़ का आयोजन भी होता है।
पॉगल के अवसर पर खेत-खलिहान व घर जोश और उमंग से भर उठते हैं। किसानों को पकी फसलों से लदे खलिहान देखकर जो आनंद। आता है, वह पोंगल पर्व पर छलक पड़ता है। सारा परिवार वर्षभर का मेहनत के पश्चात हर्ष-उल्लास में डूब जाता है।