आचार्य विनोबा भावे
Acharya Vinoba Bhave


स्वतंत्र भारत में रामराज्य के स्वप्न को साकार करने में आजीवन प्रयत्नरत रहने वाले संत व समाज सुधारक आचार्य विनोबा भावे उन महान विभूतियों में से हैं जिनसे देश व जाति का मस्तक गौरव से ऊँचा हो जाता है।


आचार्य विनोबा का नाम विनायक नरहरि भावे था। उनका जन्म 11 सितंबर, सन 1895 को महाराष्ट्र के कोलाबा जिले के गागोडा गाँव में एक ब्राहमण परिवार में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। उन्होंने सन 1910 के आसपास औपचारिक शिक्षा प्राप्त करना आरंभ किया। बचपन से ही वे भिन्न विचारों के थे। विद्यालय की पढ़ाई में उनका मन नहीं लगता था। वे बचपन से ही संतों की भक्ति रचनाएँ बहुत शौक से पढ़ते थे।


जब वे लगभग बीस वर्ष के थे तो उनकी भेंट गांधी जी से हुई। वे इससे पहले हिमालय पर जाकर तपस्या में जीवन व्यतीत करना चाहते थे। गांधी जी के विचारों से बहुत प्रभावित होने पर उनकी आध्यात्मिक तपस्या ने जनसेवा का रूप धारण कर लिया। अब वे काचयाराव आश्रम में रहने लगे। उन्होंने गांधी जी के स्वतंत्रता आंदोलन के विभिन्न कार्यों में भरपूर सहयोग दिया। इन्हें विनोबा नाम भी गांधी जी ने ही दिया।


सन 1923 में विनोबा ने 'महाराष्ट्र धर्म' नामक मराठी मासिक पत्रिका प्रकाशित करनी प्रारंभ की। तभी नागपुर में झंडा सत्याग्रह के दौरान विनोबा गिरफ्तार हो गए। उनके बंदी बनने पर पत्रिका का प्रकाशन-कार्य रुक गया। उन्होंने स्थान-स्थान पर सार्वजनिक सभाओं में जन-जागृति हेतु भाषण दिए। तथा कई बार गिरफ्तार भी हुए। 'भारत छोड़ो आंदोलन' के समय उन्हें तीन वर्ष का कठोर कारावास दिया गया।


स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात विनोबा का ध्यान भारत की गरीब ग्रामीण जनता की ओर गया। उन्होंने ग्राम स्वराज्य का सपना संजोया तथा भूदान आंदोलन सन 1951 में आरंभ किया। उनके साथ हजारों कार्यकर्ता भी। कार्य में जुट गए। असंतुष्ट किसानों की रक्तरंजित क्रांति को जीत उन्होंने 18 अप्रैल, 1957 को पहली बार समाज के सम्मुख हाथ फैलाया. पोचमपल्ली के एक वृद्ध हरिजन को आठ एकड़ भूमि दान दिलवाकर भूदान यज्ञ आरंभ किया।


विनोबा ने पैदल यात्रा कर भूदान आंदोलन छेड़ दिया। वे गाँव-गाँव पैदल जाते और लोगों से कहते-भूमि माता.है, हम सब उसके पुत्र हैं। माता पर उसके सब पत्रों का समान अधिकार होता है। जैसे जल वायु, धूप पर सबका अधिकार है, उसी तरह पृथ्वी पर भी सबका अधिकार है। जो उसकी सेवा करे, उसे ही फल मिले।


सन 1951 में ही यरवदा में होने वाले सम्मेलन में भाग लेने के लिए। विनोबा लगभग पांच सौ किलोमीटर पैदल चलकर गए। विनोबा ने हजारों किलोमीटर पैदल यात्रा की। वे देश के अनेक गाँवों में गए। भूमिहीन किसानों की दुर्दशा के सुधार के लिए उन्होंने दान में प्राप्त 44 लाख एकड़ भूमि किसानों को वितरित की। उन्होंने गाँवों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में ग्राम दान और संपत्ति दान का अभियान भी सन 1952 में आरंभ। किया। समाज उत्थान के इन कार्यों के अतिरिक्त विनोबा ने हरिजनों को मंदिरों में प्रवेश दिलवाया। सन 1970 में डाकुओं के आत्मसमर्पण का महान कार्य विनोबा द्वारा संपन्न हुआ। विनोबा का सर्वोदय आंदोलन जन उत्थान की भावना से ओतप्रोत था। उनका मानना था कि शक्ति का प्रयोग। सेवा के लिए होना चाहिए।


आचार्य विनोबा पूँजी पर आधारित अर्थव्यवस्था को बदलना चाहते थे। वे धन, बद्धि, श्रम और भूमि सबका दान मांगते थे। उनका कहना था कि पन, भूमि और श्रम को मिलाकर भदान की सार्थकता सिदध हो सकता है। परोपकार के नाम पर भूमिदान स्वयं में अनोखा कार्य था।


विनोबा ने गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के लिए उपवास व आंदोलन किए। सन 1976 में उन्होंने इसी उद्देश्य से उपवास रखा तथा भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई द्वारा संविधान संशोधन का आश्वासन दिए जाने पर ही उन्होंने उपवास तोड़ा। उन्होंने सन 1981 में राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रचार व प्रसार हेतु राष्ट्रव्यापी अभियान छेडा।

विनोबा भावे ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में अन्न-जल त्याग दिया तथा राम नाम का निरंतर जाप करते रहे। 15 नवंबर, 1982 को इनका स्वर्गवास हुआ। उन्होंने अपना समस्त जीवन आध्यात्मिक चिंतन-मनन तथा जनसेवा में व्यतीत किया। देश में सुख, शांति, समता व भाईचारे की भावना व्याप्त करनेवाला और सर्वोदय का नारा