जब मैं अकेला घर पर था
Jab mein Akela Ghar par tha


गरमी की छुट्टियाँ चल रही थीं। सुबह हम सोकर उठे ही थे कि नानी के घर से फ़ोन आ गया। माँ ने फोन सुनते ही मुझे पुकारा। माँ ने बताया कि उन्हें नानी जी के यहाँ अभी जाना पड़ेगा क्योंकि नाना जी की तबीयत खराब है और वे अस्पताल में भरती हैं।


माँ ने मुझे खाने-पीने की सभी हिदायतें दे दीं। उस दिन पिता जी को घर लौटना था। वे सरकारी कार्यवश बाहर गए हए थे अतैव किसी का घर पर रहना आवश्यक था। माँ भी संतुष्ट थीं कि पिता जी दो-तीन बजे तक घर आ जाएँगे। 


माँ तैयार होकर चली गईं। मैंने दरवाजा बंद किया। नहा-धोकर रसोई घर पहुंचा। शीतल पेय तैयार कर अपने कमरे में आ गया। मैंने कुछ कहानियाँ पढ़ीं लेकिन फिर उनमें मन न लगा।  टेलीविज़न का बटन दबाया और अंग्रेजी फिल्म देखने लगा। फिल्म कुछ डरावनी थी। धीरे-धीरे डर से काँपने लगा। मैंने टी.वी. बंद कर दिया। मुझे लगा घर की छत पर कोई चल रहा है। मैंने साथवाले घर में अपने मित्र को फोन किया। कुछ देर तक घंटी बजती रही। शायद, घर में कोई भी नहीं था। मैंने घर के सब परदे हटा दिए।

सब कमरों में घूमकर चक्कर काटा। कहीं भी कोई नहीं था। मैं स्वयं पर ही हँसा। लौटकर अपने कमरे में आ गया। फिर चलचित्र देखा गया। अब एक हास्यप्रधान सिनेमा चल रहा था। समय कब बीता मुझे पता ही नहीं चला। ढाई बज रहे थे। पिता जी का इंतजार करते-करते पेट में चूहे कूदने लगे। मैंने फोन कर पता किया, गाड़ी पाँच घंटे लेट चल रही थी।


उदास मन से मैंने खाना खाया और लेट गया। न जाने कब नींद आ गई। जब उठा तो चारों तरफ़ अँधेरा था। मुझे समय का भी कुछ अंदाजा नहीं था। डरते-डरते मैंने घर की सारी बत्तियाँ जला दीं। देखा, तो रात के आठ बज रहे थे। फ्रिज से निकालकर दूध पिया। नानी के यहाँ फोन किया पर कोई घर पर नहीं था। मेरे मन में डर समाया हुआ था।

हिलते हुए परदे भी भूत से दिखाई पड़ते थे। तभी मेरी नजर अलमारी पर पड़ी। मुंह से चीख निकल गई। मैंने आँखें बंद कर लीं। आँख धीरेधीरे खोली तो पाया कि सामने पापा का कुरता लटक रहा था। मुझे खुद पर भी हँसी आई। मैंने टेलीविज़न की आवाज तेज कर दी और गाना गाने लगा। अब पापा के आने का इंतज़ार था। घड़ी आगे खिसकती ही न थी। मन ही मन माँ पर भी क्रोध आने लगा।


भाव भी लग रही थी। रसोई घर से आलू चिप्स का पैकेट उठा लाया। टेलीविजन देख तो रहा था पर मन बार-बार माँ व पापा की तरफ ही जाता था। जरा-सा खटका भी मुझ कंपा देता था। तभी वीडियो खेल पर नजर गई। माँ मेरे वीडियो खेल लगातार खेलने पर काफ़ी नाराज होती हैं। मैंने सोचा, आज अच्छा मौका है। घंटा भर खेलता रहा.अब सोचा पापा के आने से पहले अच्छे स्वादिष्ट सैंडविच तैयार कर देता हूँ। रसोई घर में गया। डबलरोटी, टमाटर, खीरा और मक्खन निकाला। अभी टमाटर काट ही रहा था कि दरवाजे पर घंटी बजी। बंद दरवाजे की डोर आई से देखा तो मन खुशी से उछल पड़ा। सामने पापा सूटकेस लिए खड़े थे। सामने पापा सूटकेस लिए खडे थे। झटपट दरवाजा खोल दिया। तभी फोन की घंटी बजी। माँ पिता जी के बारे में पूछ रही थीं।


सारा समय कैसे डरते-डरते कटा, इसका पूरा विवरण मैंने पिता जी पिता जी ने मुझे प्यार से गले लगा लिया। यह मेरी जिंदगी दिन था, जब इतने घंटे मुझे अकेले घर पर रहना पड़ा। 


जल्दी-जल्दी सब कमरों का सामान समेटना शुरू कर दिया। माँ से पहले सारा घर ठीक-ठाक कर देना चाहिए, नहीं तो माँ बहुत डॉगी। तभी दरवाजे की घंटी बजी। माँ ने बताया कि वे दिनभर नाना जी की अस्वस्थता के कारण दवा आदि का प्रबंध करने हेतु भाग-दौड़ करती रहीं और उन्हें फोन करने का भी समय नहीं मिला। जब उन्हें चला कि पिता जी भी अभी आए हैं तो उनकी आँखें भर आईं। उन्होंने मुझे स्नेह से गले लगा लिया।