भारतीय संस्कृति
Bharatiya Sanskriti


संस्कृति मानव की समस्त क्रियाओं, व्यापारों और अभिव्यक्तियों का पर्याय है। संस्कृति किसी राष्ट्र के स्थायित्व उसकी अंतर्रात्मा, विकास, भावनात्मक परिष्कृति का अनंत काल तक प्रवाहित होने वाला कोष है। 'संस्कृति' शब्द का मूल 'संस्कार' में है तथा संस्कार शब्द में भौतिक स्वरूप मूल्यों से अधिक आत्मिक व आध्यात्मिक गुणात्मकता को अधिक मूल्य दिया जा सकता है। सूक्ष्म रूप में संस्कति की धारणा में मत विभिन्नता हो सकती। है परंतु स्थूल रूप में कहा जा सकता है कि किसी भी जाति ने इतिहास के क्रम में युगों से सामाजिक, आत्मिक उन्नति व परिष्कार के जो प्रयत्न किए हैं, उनका परिणाम वहाँ की सामाजिक लौकिक, नैतिक, साहित्यिक व कलात्मक उन्नति के क्रम में स्पष्ट दिखाई पड़ता है, वही संस्कृति की अटूट धारा है।


भारतीय संस्कृति संसार की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। भारतीय संस्कृति के निर्माण में आर्य तथा द्रविड दोनों का योगदान रहा है।


भारतीय संस्कृति को केवल हिंदू संस्कृति का पर्याय नहीं कहा जा सकता। इसमें आर्य संस्कृति की प्रधानता होते हुए भी समय-समय पर कुषाण, हूण। यवन तथा अन्य विभिन्न जातियों का भी पर्याप्त प्रभाव पड़ा। भारतीय संस्कृति की यही विशेषता रही कि वह विभिन्न प्रभावों को ग्रहण कर, स्वयं में समाहित कर, पुष्ट व विकसित होती गई।

भारतीय संस्कृति का मुख्य आधार वेद और समृतियाँ हैं। अनादि काल से यहाँ वेदों की ऋचाएँ, उपनिषदों की मान्यताएं मानी जाती रही हैं। इन्हीं के आधार पर यहाँ वर्ण व्यवस्था स्थापित की गई। वेदिक युग से ही प्रकृति की महिमा को जाना गया। वृक्षों की अराधना तथा वायु, जल, अग्नि, पवन आदि को देवता के रूप में पूजा जाना भारतीय संस्कृति का अंग है। कुछ लोगों का मानना है कि मोहेंजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई में मिली शिव प्रतिमाएं सिद्ध करती हैं कि शैव धर्म अत्यंत प्राचीन है। कालांतर में यहाँ बौद्ध, जैन, ईसाई आए। यहाँ विचारों की विभिन्नता व सामसिक प्रवृत्ति सदा दिखाई दी। भारतीय संस्कृति ने मध्यकाल में मुस्लिम संस्कृति को आत्मसात कर उसे अपना अंग बना लिया। इस प्रकार भारतीय संस्कृति ने आर्य, अनार्य, बौद्ध, जैन, इसलाम, ईसाई, पारसी सभी संप्रदायों के विचार और साहित्य, धर्म, दर्शन, कला की किंचित अच्छाइयों को ग्रहण कर अपना प्रवाह अनवरत रखा।


किसी भी देश की संस्कृति व परंपराओं में गहन संबंध होता है। भारतीय संस्कृति में आशावादिता, हर्ष, उल्लास की भावना को अत्यंत महत्त्व दिया गया। पूजा, पर्व, उत्सव, मेले तथा नाच-रंग इसके उज्ज्वल पक्ष हैं। आपसी सौहार्द, उदारता, मिलन, प्रेम आदि मानवीय भावनाओं को पुष्ट करनेवाले यहाँ के रीति-रिवाज़ मनुष्य का मनुष्य से दृढ़ आत्मिक संबंध स्थापित करते हैं। उदारता व सहिष्णुता भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता है। यही कारण है कि हमारी संस्कृति व मान्यताओं का प्रसार चीन, जापान, लंका, मध्य एशिया व दक्षिण पूर्व एशिया तक हुआ।


भारतीय संस्कृति में मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति को महत्त्व दिया गया। 'सत्यं शिवं सुन्दरं' की भावना यहाँ मनु काल से चली आ रही है।


यहाँ सदा नर सेवा को नारायण सेवा माना गया। नम्रता, विवेक, सदाचार मानवीय मूल्यों को भौतिक सिद्धियों से अधिक महत्त्व दिया जाता रहा है. यही कारण है कि विश्वभर में हो रही औद्योगिक क्रांति तथा प्रगति के पश्चात भी यहाँ आज भी इन गुणों पूजा जाता है। विश्व के किसी भी देश में औद्योगिक क्रांति के बाद अर्थ को अधिक महत्व दिया गया तथा मानवीय मूल्य धीरे-धीरे विलुप्त होते गए। परंतु भारतीय संस्कृति के पष्ट अतीत के कारण आज भा दशम आध्यात्मिक मूल्यों व मानवता को पजा जाता है। यही कारण है यूरोप के आर्थिक वैभव के दुष्प्रभावों से पीड़ित लोग आज भी हमारे देश की ओर दौड़े आते हैं। संतों, ऋषि-मुनियों की यह पावन भूमि अपने आध्यात्मिक व उत्कृष्ट आदर्शों के कारण ही हजारों वर्षों का इतिहास रखती है।


भारतीय संस्कृति में कर्म को प्रधानता दी गई है। विश्व के अनेक देशों में कुछ वर्षों से कर्म पूजा है' का नारा गूंजा, परंतु भारत में सहस्रों वर्ष पूर्व कर्मण्येवाधिकारस्ते....’कहा गया था। यहाँ वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था के साथ ही कर्म भी बाँट दिए गए। यहाँ मनुष्य सदा कर्म करते हुए जीवित रहने की कामना करता आया है।


भारतीय संस्कृति में 'वसुधैव कुटुम्बकं' की भावना सर्वत्र दिखाई पड़ती है। भारतीय संस्कृति उदार, विशाल समग्रतापूर्ण व स्थायी है। क्षणिक या सामयिक सुखों की अपेक्षा वह चिरंतन व स्थायी सुखों की ओर प्रेरित रही है। सामाजिक तथा व्यक्तिगत जीवन का आधार भी सत्य, परोपकार व उदारता ही रहे हैं। यहाँ अतिथि सत्कार, अहिंसा, जीवों पर दया, प्रकृति को पूजा जैसे स्थायी जीवन मूल्यों को पूजा जाता है जो मानव जीवन के सुखों तथा अस्तित्व की आधारशिलाएँ हैं।


भारतीय संस्कृति की वैचारिक श्रेष्ठता का ही परिणाम है कि यहाँ धर्म, कला, साहित्य, विज्ञान सभी क्षेत्रों में अभूतपूर्व सफलता मिली। वेद ज्ञान के भंडार हैं। मनु स्मृति का जीवन दर्शन, चाणक्य की राजनीति, अर्थशास्त्राय। पुराणों की व्यावहारिकता, दण्डी का कलादर्शन, अजंता की चित्रकला, दक्षिण भारत के मंदिरों की मूर्तिकला व शिल्य विधान, रामायण, मशाल सगीता जैसे ग्रंथ भारतीय संस्कृति के अनुपम उदाहरण है। कहा जा सकता है आध्यात्मिकता प्रधान होते हुए भी भारतीय संस्कृति में भौतिक, वैज्ञानि व कलात्मक उन्नति को पर्याप्त स्थान दिया जाता रहा है। इन विविध क्षी की उपलब्धियाँ ही भारतीय संस्कृति की प्रतिमूर्तित करने के लिए पर्याप्त हैं।