एक यादगार अनुभव
Ek Yadgar Anubhav


विद्यालय से विद्यार्थियों की टीम ने भ्रमण का कार्यक्रम तैयार किया। काफी चर्चा के बाद तय हुआ कि हम ऐतिहासिक भव्य इमारत ताज देखने जाएंगे। दशहरे की छुट्टियाँ आरंभ हुई थी। हमने एक बस का इंतजाम किया तथा सब विद्यार्थी ताज की यात्रा के लिए चल दिए।


रास्ते भर हम सब छात्र गाने गाते तथा चुटकुलों का आनंद लेते गए। कभी शीतल पेय, कभी स्वादिष्ट व्यंजन उस आनंद में वृद्धि कर रहे थे। दोपहर कैसे बीत गई, पता ही न चला। सूरज ढलने से पहले ही हम आगरा पहुंच गए। पहले हमने लाल किला देखा। घूमते-घूमते शाम हो गई। सबने खाना खाया। अब ताज की बारी थी। मन में विश्वप्रसिद्ध इमारत को देखने की उत्कंठा थी।


सामने एक विशाल लाल दरवाजा और चारदीवारी को पार कर भीतर पहुचे तो सामने दुग्ध-धवल ताज मुसकरा रहा था। ताज के सामने हरीभरी घास के मध्य फुव्वारे चल रहे थे। उद्यान की हरियाली और फव्वारे ताज के सौंदर्य में वृद्धि कर रहे थे। सब मित्र उन ठंडे फब्बारों का आनंद लेते रहे। शीतल हवा और हरे-भरे वृक्षों का कलात्मक शृंगार मन को अभूतपूर्व हर्ष प्रदान कर रहा था।


शाम दल चुकी थी। आसमान में तारे दिखाई दे रहे थे। पूर्णिमा के चाँद आकाश में मुसकरा रहा था। हम ताज के विशाल चबूतरे पर पहुंचे। चाँदनी रात में ताज चाँदी-सा चमक रहा था। उसका विशाल गुंबद श्वेत चाँदी-सा चमचमाता अत्यंत मोहक जान पड़ता था।


सामने शांत यमुना बह रही थी। चाँदनी रात में निर्मल जल में ताज का प्रतिबिंब देखकर हम सब ठगे-से रह गए। इतना भव्य दृश्य, ऐसा प्राकृतिक सौंदर्य अब तक जीवन में देखने को न मिला था। चारों ओर चंद्रमा की शीतल किरणों का साम्राज्य देखकर मेरे मित्र गाने लगे-


चारु चन्द्र की चंचल किरणें, खेल रही हैं जल थल में 

स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अंबर तल में। 


सब मित्र अपने अपने कैमरों में वहाँ बिखरी प्राकृतिक सुंदरता को कैद कर रहे थे। बर्फ-सा ठंडा चबूतरा, मित्रों का साथ, ठंडी हवा-जो आनंद आ रहा था, वह शब्दों में कहना असंभव है। कहीं-कहीं कोई पर्यटक दिखाई पड़ रहा था। हम सबके स्वर वहाँ की शांति को भंग कर रहे थे।


ताज की नक्काशी उस भव्य इमारत के कारीगरों की कुशलता के गीत गा रही थी। शाहजहाँ तथा मुमताज़ की करें मानो अब भी उन अमर प्रेमियों के पावन प्रेम की गाथा कह रही हों। कुछ क्षण के लिए उस शांत सुरम्य वातावरण में हम सब उनके प्रेम लोक में खो गए। इतना सुखद अलौकिक अनुभव पहले कभी न हुआ था। रात के वे क्षण बीतते जा रहे थे। समय कैसे और कहाँ उड़ा जा रहा था, इसका किसी को भी न पता था।


तभी कुछ मित्र नीचे की असली कब्रें देखने उतरे। दौड़कर उनका लौट आना तथा अन्य सब मित्रों का हंसी-मज़ाक यदि आज भी याद आता है, तो चेहरे पर बरबस मुसकान छा जाती है। ठंडे चबूतरे पर सब मित्र बैठ तरह-तरह की बातें करते रहे। ताज का सौंदर्य, ऊँची-ऊँची मीनारें, अद्भुत नक्काशी, श्वेत दीप्तिमान आभा, यमुना का शांत जल व शीतल बयार न उस रात्रि को एक अनुपम रूप प्रदान किया।


उस यात्रा से लौटकर न जाने कितनी बार उस अनोखी रात के विषय हम सबने चर्चा की। वैसा अद्भुत आनंद हमें फिर कभी नहीं मिला। हम सब मित्रों ने कई बार देर रात तक अपने घरों के बगीचों में सभा व परी का आयोजन किया परंतु वह अनुभव इन सभी से भिन्न था। पूर्णिमा की वह रात, ताज का सामीप्य व मित्रों का साथ-इन सबका सामंजस्य स अनुभव को अविस्मरणीय बनाने के लिए काफी था। कितना समय बीत गया लेकिन बार-बार मन उस आनंद को अनुभव करने हेतु आकुल हो उठता है तथा उसके समक्ष अन्य अनुभव अत्यंत साधारण से जान पड़ते हैं.


निश्चित रूप से वह मेरे जीवन का अविस्मरणीय अनुभव था जिसका स्मरण आज भी किसी साधारण पल को असाधारण बनाने की अभूतपूर्व क्षमता रखता है। इस स्मरणीय अनुभव को चिरस्थायी बनाने हेतु हमने कुछ चित्र कैमरे में कैद किए थे। अब भी हम सब मित्र एकत्रित होकर उस सुंदर रात्रि के सुखद अनुभवों को उन चित्रों के माध्यम से याद कर लेते हैं.


मुझे महसूस होता है कि निश्चित रूप से हजारों लोगों के अथक प्रयत्न व परिश्रम से निकली यह कलाकृति अपने आप में एक विशिष्ट आकर्षण संजोए है जो प्राकृतिक चाँदनी में और भी निखर उठती है। यही कारण है कि प्रतिवर्ष हजारों पर्यटक इस भव्य इमारत की ओर खिंचे चले आते है। न जाने उस कलात्मक सौंदर्य ने हम सबके मानस पटल पर कैसी अद्भुत आभा आकत कर दी कि उसकी सुखद अनुभूतिया हमें आज भी वहां की यात्रा के लिए प्रेरित करती रहती हैं। मन में कवि की ये पंक्तियाँ गूंजने लगती हैं-

नयन मन उन्मादिनी, आज निकली चाँदनी 


आज केवल शून्य नीचे, शून्य ऊपर 

स्वर्ग की सम्पूर्ण सुषमा आज भू पर।