मैंने छुट्टियाँ ऐसे बिताईं
Mene Chuttiya Aise Bitayi
ग्रीष्मावकाश आने से काफ़ी दिन पहले से ही मन में बहुत खुशी थी कि हम इस समय का भरपूर आनंद उठाएंगे। विद्यालय में मित्रों से तथा पर भाई-बहनों से यही बातचीत होती रहती थी कि छुट्टियों में क्या-क्या किया जाए, हर दिन का भरपूर आनंद कैसे लिया जाए, हर पल को सार्थक कैसे बनाया जाए।
मैंने छुट्टियों की समय-तालिका बना ली। मेरी माता जी व पिता जी कामकाजी हैं। सप्ताह के पाँच दिन वे अपने व्यवसाय में व्यस्त रहते हैं। शनिवार तथा रविवार का समय वे मेरी सुविधा व आनंद के अनुकूल व्यतीत। करना पसंद करते हैं। अतः मैंने अपने परिवार की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर अपनी समय-तालिका बनाई।
मई का महीना आ गया। उन दिनों तेज़ ल चलनी आरंभ हो गई थी। दिन का तापमान भी काफ़ी बढ़ गया था। इस कारण ग्रीष्मावकाश शीघ्र कर दिया गया। जिस दिन हमारे प्रधानाध्यापक महोदय ने घोषणा की कि विद्यालय अगले सप्ताह से छह हफ़तों के लिए बंद रहेगा, उस दिन छात्रों का उल्लास व उमंग दर्शनीय था।
मैंने इन दिनों का सर्वाधिक लाभ उठाने का निश्चय पहले से ही कर रखा था। में रोज प्रात: उठकर व्यायाम करता। विदयालय के दिनों में सुबह शांत और सुरम्य प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने का अवसर ही नहीं मिलता था। बस, शीघ्र तैयार होकर स्कूल बस को पकड़ पाना ही अपनी उपलब्धि लगती थी। रोज चार बजे का अलार्म लगाकर मैं उठ जाता। नित्यकर्म से निवृत्त होकर कुछ व्यायाम करता तभी मेरे साथी भी आ जाते। हम सैर के लिए निकल जाते। हिरन उदयान का शांत व हरा-भरा नज़ारा तन-मन दोनों को भरपूर आनंद देता। दो-तीन मील की इस सेर से दिनभर शरीर में चुस्ती व स्फूर्ति बनी रहती थी। प्रात:कालीन शीतल पवन, पक्षियों का कलरव और नीला आसमान- रमणीक दृश्य चित्त को प्रसन्नता से भर देता।
इस सैर के दौरान मित्रों से कई विषयों पर बातचीत होती। दिनभर के क्रियाकलापों पर दृष्टिपात किया जाता। उद्यान की हरी-हरी घास पर पडी ओस की बूंदों पर नंगे पाँव चलने से मन घंटों आनंदित रहता।
घर आकर मैं समाचार पत्र पढ़ता। विश्वभर की घटनाओं से अनभिज्ञ हम केवल पाठ्यपुस्तकों में ही डूबे रहते हैं तो बाहरी दुनिया का कुछ पता ही नहीं चलता। जनता के शिक्षक इन समाचार पत्रों की उपयोगिता को भी मैंने पहचानना आरंभ कर दिया। अब दूरदर्शन के समाचार रोचक लगने लगे। एक-दो घंटे अपनी पाठ्यपुस्तकें पढ़कर मैं दूरदर्शन के रोचक कार्यक्रमों का आनंद लेता। मैंने कई पत्रिकाएँ भी उन दिनों पढ़ीं। रोज शाम को मैं और मेरे मित्र पुस्तकालय जाते तथा एक दो घंटे क्रिकेट, फुटबॉल आदि खेल खेलते। सारा दिन कैसे बीत जाता था, पता ही नहीं चलता।
ग्रीष्मावकाश में मैंने अनेक महापुरुषों की जीवनियाँ पढ़ीं। प्रेमचंद तथा यशपाल के कई उपन्यास पढ़ डाले। हिंदी साहित्य कितना रुचिकर है। इसका आभास मुझे पहली बार हुआ। मेरी माता जी भी मेरी दिनचर्या से काफ़ी प्रसन्न थीं। उन्हें लगता था कि मैं हर कार्य सनियोजित रूप से कर रहा हूँ। समय का भरपूर सदुपयोग कर अपना मनोरंजन कर रहा हूँ।
पूरे माह हर शनिवार व रविवार हमने घूमने-फिरने में बिताया। हमने इस बार समस्त दिल्ली के दर्शनीय स्थलों पर भ्रमण का कार्यक्रम बनाया हुआ था। उसी के अनुरूप हम कुतुबमीनार, लाल किला, जामा मस्जिद, बिड़ला मंदिर, हुमायूँ का मकबरा, लोदी गार्डन, कमल मंदिर आदि स्थानों पर गए। हमने इस बार दिल्ली व समीपस्थ उद्यानों के भ्रमण का भी लाभ उठाया। हम बुद्ध जयंती उद्यान, नेहरू उद्यान, कालिंदी कुंज घूमने गए। हरे-भरे उद्यान, झील-फव्वारे तथा रंग-बिरंगे फूल, पेड़-पौधे सबको हमने अपने कैमरे में कैद किया। माता जी को चित्रकारी का शौक है। उनके साथ जाकर मैंने कतबमीनार, महावीर स्थली आदि के तैलचित्र बनाने का प्रयास किया।
दिल्ली के कला संग्रहालय व विज्ञान संग्रहालय को भी हमने देखा मूर्तिकला, चित्रकला, वस्त्र उद्योग आदि की कई सौ वर्ष प्राचीन कलाकृतियाँ देखकर प्राचीन शिल्पियों के लिए मन श्रद्धा से भर उठा। हस्तशिल्प के इतने सुंदर नमूने उनकी निपुणता की गौरव गाथा गा रहे थे।
इन दिनों हमने कई चलचित्र भी देखे। मुझे पहली बार कला सिनेमा का आनंद आया तथा मैंने इस विधा के विषय में माता जी तथा अपने मित्रों से काफ़ी बातचीत की। दो-तीन रविवारों का मैंने तथा मेरे मित्रों ने पार्टियों का आयोजन भी किया। शीतल पेय, मधुर संगीत, शाम का लुभावना वातावरण तथा मित्रों के साथ का आनंद ही निराला था। न परीक्षा का भय न पाठ्यक्रम का बोझ केवल हंसी-मजाक! सब अपने-अपने जीवन के रोचक प्रसंग सुनाते। इससे अपने मित्रों के नज़दीक आने का भी सुनहरा अवसर मिला। अधिक समय साथ रहने के कारण उनकी कई विशिष्टताओं का ज्ञान हुआ।
ग्रीष्मावकाश के एक-एक दिन का आनंद मैंने लिया। विदयालय खुलने पर मैंने अपने मित्रों से बातचीत की। इतना अध्ययन, पठन-पाठन, भ्रमण, व्यायाम, खेलकूद व मनोरंजन-सब एक साथ कैसे संभव हो पाया; सब इस विषय पर विस्मित थे। निश्चित रूप से ग्रीष्मावकाश के दौरान ज्ञान व आनंद के इस अभूतपूर्व मिश्रण ने मुझे भविष्य के लिए नई दिशा दी।
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