रेलवे स्टेशन का दृश्य
Railway Station ka Drishya


भारतीय जन-जीवन का साक्षात दर्शन हमें भारत के किसी भी रेलवे स्टेशन पर हो जाता है। कौतूहल, भीड़-भाड़, शोरगुल, हंसी-मजाक, लड़ाईझगड़ा, धक्का-मुक्की और इन सबके साथ एक के बाद एक रेल का सीटी बजाते हुए आना और जाना।


रेलवे स्टेशन का बाहरी प्रांगण अत्यंत कोलाहल से पूर्ण होता है। करी पैदल चलने वाले तेज़ गति से सामान लिए आगे बढ़ रहे होते हैं तो कहीं। पी-पी का तेज हॉर्न बजाते वाहन एक दूसरे से आगे निकलने की होड में दिखाई पड़ते हैं। ऐसा लगता है मानो स्कूटर तथा टैक्सी की कतारे यात्रियों का स्वागत कर रही हों।


कोई यात्री अपने सामान के साथ रेलवे स्टेशन के बाहर उतरा नहीं कि कुलियों की भीड़ उस पर टूट पड़ती है। पैसे के लेन-देन को लेकर लंबे विवाद होते हैं। जीत कभी लाल वरदीधारी कुलियों की होती है तो कभी यात्रियों की। यहाँ किसी को किसी के विवाद से कोई लेना-देना। नहीं। निर्विकार भाव से सब अपने-अपने कार्यों में जुटे रहते हैं।

सिर पर सामान रखे तेज़ी से भागते-दौड़ते कुलियों की निपुणता देखते । ही बनती है। प्रत्येक यात्री को रेलवे स्टेशन से बाहर आते ही अपने गंतव्य पर पहुँचने की शीघ्रता रहती है। यात्री बच्चों का हाथ पकडे तेजी से ऐसे आगे बढ़ते हैं मानो पहाड़ी ढलान पर पानी आगे बढ़ता जा रहा हो।


स्टेशन के भीतर प्रवेश करते ही टिकट खिड़कियों की लंबी कतारों। के दर्शन होते हैं। खिड़की के पास जमे, लाइन तोड़ते यात्रियों और भीतर बैठे कर्मचारी की नोंक-झोंक का नजारा भला किसने नहीं देखा होगा।


पूछताछ की खिड़की पर सवालों की वर्षा हो रही होती है कि अमुक गाड़ा। कितनी लेट है? कौन-से प्लेटफार्म पर आ रही है आदि। सामने ही इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड पर प्रत्येक गाड़ी के आने-जाने की सूचना लगातार आती रहती है।


प्लेटफार्म तक पहुँचना भी कोई सरल काम नहीं। कभी कुलियों से जकर कभी यात्रियों से और कभी सामान से। प्लेटफार्म पर एक अलग ही नजारा दिखाई पड़ता है। कहीं कोई चादर बिछाकर आराम से पाँव पर रखे लेटा है तो कोई अपने सामान पर बैठा प्रतीक्षा कर रहा है, कोई प्रतीक्षालय में तैयार हो रहा है तो कोई खाना खा रहा है। बैठने के लिए बैंचों पर अजब रस्साकशी दिखाई देती है। एक के उठते ही कई लोग उस तरफ लपक पड़ते हैं।


प्लेटफार्म किसी बाजार से कम नहीं दिखाई देता। कहीं चायवाले चाय बनाकर बेचने में व्यस्त हैं तो कहीं पूरी-सब्जी व पकौड़े वाले। कहीं मिठाई और फल बिक रहे हैं तो कहीं पुस्तकों तथा पत्रिकाओं को बेचने के लिए आवाजें लगाई जा रही हैं। हर विक्रेता ने अपने गीत बना रखे हैं। सबकी आवाजें मिल-जुलकर प्लेटफार्म की चहल-पहल में चार चाँद लगा देती।


इतने में तेज सीटी गूंजती है। सब खोमचे वाले अधिक सजग व फुर्तीले हो उठते हैं। चाय वाले तेजी से गिलासों में चाय भरने लगते हैं। पूरी वाला तेज़ गति से पूरियाँ तलने लगता है। प्लेटफार्म पर गाड़ी रुकते ही ढेर सारे गीत गूंजने लगते हैं। चाय गरम-चाय गरम की आवाज़ तो चाय पीने के लिए बेसब्र कर देती है। मिट्टी के कुल्हड़ों में चाय पीने का आनंद ही अलग होता है। पकौड़े वाले, फल वाले, शीतल पेय वाले, पूरी-सब्जी वाले हर खिड़की पर भाग-भागकर अपना-अपना सामान बेचते रेल से उतरने व भीतर जानेवालों की धक्का-मुक्की अलग ही रंग जमाती है। यहाँ किसी को किसी की चिंता नहीं। सब पूर्ण स्वार्थी होकर केवल अपने ही बारे में सोचने में मगन हैं। उतरनेवाले उतरकर राहत महसूस करते हैं तो जानेवाले किसी भी तरह रेल के भीतर जाकर चैन की साँस लेते हैं।


लंबी यात्रा करनेवाले यात्री दौड-दौड़कर अपनी बोतलों में ठंडा पानी भरते दिखाई देते हैं। रेल के चलते ही धीरे-धीरे प्लेटफार्म पर शांति छाने लगती है। कुछ क्षण के लिए खाने-पीने का सामान बेचनेवाले थककर के जाते हैं। अब शुरू होती है, उनकी आपसी बातचीत। इनका ज्ञान रेलवे प्लेटफार्म की पूछताछ खिड़की पर बैठे कर्मचारियों से कम नहीं होता। किस प्लेटफार्म पर कितने बजे कौन-सी गाड़ी आएगी-यह बताना उनके बाएँ हाथ का खेल है। 


आजकल बड़े रेलवे स्टेशनों पर इस भीड़-भाड़ में सफाई कर्मचारी भी दिखाई पड़ते हैं। वे लगातार प्लेटफार्म को साफ़-सुथरा बनाए रखने के लिए काम में जुटे रहते हैं। सामान ढ़ोते हुए ठेले वालों से उनकी नोंक-झोंक चलती रहती है। अब कुछ रेलवे स्टेशनों पर रंगीन टेलीविज़न भी दिखाई पड़ते हैं। रोचक कार्यक्रम विशेष रूप से हिंदी सिनेमा दिखाए जाने पर सामने एक भीड़ जुट जाती है। कर्मचारी भी गरदन मोड़कर उसे देखते हए। आगे बढ़ते हैं। किसी से टकराने पर फिर वहीं तू-तू मैं-मैं आरंभ हो जाती है। रेलवे स्टेशन की यह चहल-पहल कुछ समय की नहीं अपितु चौबीसों घंटे चलती रहती है।


यह दृश्य समस्त देश में समान रूप से कहीं भी देखा जा सकता है। रेलवे स्टेशन भी किसी मंच से कम नहीं। बस, इसके नाटक में भाग लेने वाले अभिनेता बदलते रहते हैं। नज़ारा सदैव एक-सा बना रहता है।