मेरा जीवन स्वप्न

Mera Jeevan ka Sapna


मनुष्य एक चिंतनशील प्राणी है। वह स्वयं तथा समाज के उत्थान के लिए सतत प्रयत्नरत रहता है। इस प्रक्रिया के दौरान वह अपने जीवन के भिन्न-भिन्न स्वप्न देखता है। कोई चिकित्सक बनकर समाज के लोगों को स्वस्थ रखने की कामना करता है, तो कोई इंजीनियर बनकर विभिन्न निर्माणों द्वारा समाज को प्रगति के पथ पर अग्रसर करना चाहता है। कोई उद्योगपति बन देश को आर्थिक दृष्टि से समृद्ध बनाने का स्वप्न देखता। है तो अन्य सैनिक बन, देश के सीमा प्रहरी बनने में ही अपनी सार्थकता ढूँढ़ते हैं।


मैं बचपन से ही शिक्षक बनना चाहता हूँ। ध्येय चुनने में मैं सदा परमार्थ को प्राथमिकता प्रदान करता हूँ। समाज को स्वस्थ व समदध बनाने में शिक्षकों की अहम भूमिका होती है। शिक्षक भावी पीढ़ी को अच्छे संस्कार देकर समस्त समाज के दृष्टिकोण में ही आमूल परिवर्तन ला सकते हैं।


बालक जब विद्यालय आता है तो उसका मन शुदध व कोमल होता है। उसे बाहरी जगत की विषमताओं तथा विभीषिकाओं का लेशमात्र भी ज्ञान नहीं होता। समाज व व्यक्ति से सर्वथा अपरिचित वह विशुद्ध जीव होता है। बालपन में ग्रहण किए गए संस्कारों का हमारे हृदय व प्रवृत्ति पर बेहद प्रभाव रहता है। वे प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से हमारे कार्यों में झलकते हैं। ऐसे में शिक्षकों के हाथों में देश के भविष्य की बागडोर होती है। मैं भी एक संस्कारी आदर्श शिक्षक बनकर उत्कृष्ट कोटि के नागरिक तैयार करना चाहता हूँ।

मुझे सदा यह अनुभव होता रहा है कि शिक्षक राष्ट्र के भावी नागरिकों के भविष्य को बनाते व सँवारते हैं। शिक्षक न केवल उन्हें पाठ्यपुस्तकों से संबंधित ज्ञान देते हैं अपितु सत्य, अहिंसा, दया, परोपकार, उदारता जैसे मानवीय गुणों को भी स्वाभाविक रूप से बालक के चरित्र में सींचते है।


मैं शिक्षक बनकर छात्र-छात्राओं को पूर्ण अनुशासित मानव बनाना चाहता है। सदाचारी अनुशासित छात्र ही समाज में स्वस्थ वातावरण रख सकते हैं। आज वर्तमान युग में विभिन्न प्रकार का असंतोष, हिंसा, भ्रष्टाचार व स्वार्थ दिखाई पड़ता है। यदि अध्यापक सही समय पर बालकों को स्वाभिमान, देश-प्रेम, सदाचार व स्वावलंबन का सबक दें तो ऐसे बालक सच्चे कर्मयोगी बन देश का भविष्य उज्ज्वल बनाएँगे।


मैं शिक्षक बनकर छात्रों को प्राचीन भारतीय संस्कृति की महिमा से परिचित कराऊँगा। आज के छात्र विदेशों के भौतिक आकर्षणों से मोहित होकर भारतीय धर्म, संस्कृति के प्रति आस्थाहीन होते जा रहे हैं। अपने गौरवपूर्ण इतिहास, कला, संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान से उनका परिचय कराऊँगा ताकि वे अपने धर्म, दर्शन, कला, संस्कृति व देश पर गर्व कर सकें। छात्रों को पर्यटन के द्वारा अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से साक्षात्कार करवाऊँगा।


मैं सदा से खेलों में रुचि लेता रहा हूँ। मेरा स्वप्न है कि जब मैं अध्यापक बनूंगा तब भी छात्रों की इस रुचि का भरपूर आदर करूँगा। खेलों। के माध्यम से उनमें चारित्रिक गुणों का विकास करने का प्रयत्न करूँगा तथा अपने पाठ्य-विषय को अत्यंत रोचक तथा सरल ढंग से बालकों को समझाने का प्रयास करूंगा। बालकों की आयु व अनुभव दोनों का ध्यान रखते हुए ही मैं उन्हें विषय-ज्ञान दूंगा। विषय के साथ अन्य गतिविधियों से अपने पाठन को सरल व रोचक बनाऊँगा।


मुझे अपने छात्र जीवन में ही ऐसे अनेक शिक्षक मिले हैं जो इस कार्य को व्यवसाय नहीं, धर्म समझते हैं। शायद, इन्हीं महानुभावों का छात्र होने का ही परिणाम है कि मैं इतने उच्च विचारों के प्रति आस्थायुक्त हूँ। मैं सदा से यह मानता रहा हूँ कि अच्छे शिष्य बनाने के लिए अच्छा शिक्षक बनना अति आवश्यक है। अपना उदाहरण छात्रों के समक्ष यदि साक्षात प्रस्तुत हो सके तो इससे अच्छा शिक्षण का क्या माध्यम हो सकता है। विवेकानंद जैसा महातपस्वी शिष्य बनाने के लिए रामकृष्ण-सा महासाधक बनना नितांत आवश्यक है। अतैव अपने आचार-विचार, चिंतन-मनन के विषय में अत्यधिक सर्तक हूँ तथा सतत प्रयलशील कि समस्त मानवीय गुणों का समावेश मेरे व्यक्तित्व में हो सके।


मेरा लक्ष्य समष्टिपरक है। देश के प्रति प्रत्येक व्यक्ति के कुछ दायिक होते हैं। मेरी सदा यह आकांक्षा रही है कि मैं अपने व्यक्तिगत स्वार्थी ऊपर उठकर राष्ट्रहित में जीवन अर्पित करूं । शिक्षक बन भावी पीढ़ी की अपनी संस्कृति के अनुकूल बनाना, देश व जाति के प्रति सत्कर्म है। इस मार्ग में भौतिक सुख व समृद्धि उपलब्ध नहीं होती। आत्मिक सुख का यह मार्ग सच्ची मानवसेवा का मार्ग है।


हमारे देश में अशिक्षा आज भी व्याप्त है। देश को साक्षर बना हम विश्व के स्तरानुकूल ला सकते हैं। मैं चाहता है कि मैं एक आदर्श शिक्षक बनकर न केवल बालकों को अपितु प्रौढों को भी शिक्षित कर अपना शिक्षक धर्म निभाऊँ। अब मुझे प्रतीक्षा है उस दिन की, जब मैं अपने स्थान को साकार कर पाऊँगा तथा कविवर मैथिलीशरण गप्त की भांति कहंगामेरी वाणी मुखरित हो फूट पड़ेगी, इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया। मेरे जीवन का स्वप्न सदा यही रहेगा-


यदि मैं शिक्षक होता, बालकों को पढ़ाता 

सत्य की राह दिखा, उज्वल भविष्य बनाता।