उड़नपरी पी.टी. उषा


Udanpari P. T. Usha


खेल जगत में भारत का मस्तक गर्वोन्नत करने तथा विश्वस्तर के कीर्तिमान स्थापित करने में भारतीय धावकों की श्रृंखला में पी.टी. उषा का नाम अग्रगण्य है।

पिलवालकंडी टेकापरविल उषा का जन्म केरल राज्य के कालीकट के समीप प्योली नामक छोटे से गाँव में हुआ। 20 मई, सन 1964 का वह नि देश के लिए सौभाग्यशाली था जब खेल जगत की उड़नपरी उषा का भारत भूमि पर जन्म हुआ। उनका बचपन अत्यंत सरल वातावरण में व्यतीत हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा वहीं की पाठशाला में संपन्न हुई। उनमें बचपन से ही तीव्र दौड़ने की अभूतपूर्व क्षमता थी। विद्यालय में बालिकाओं के साथ दौड़ते हुए वे सदैव आगे रहती थीं।


पी.टी. उषा अत्यंत सरल स्वभाव की खिलाड़ी हैं। दक्षिण भारतीय संस्कृति में पली-बढ़ी उषा पर विशिष्ट भारतीय संस्कृति का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है। वे स्वभावतः अत्यंत संकोची व गंभीर हैं। विश्व स्तर पर अपनी उत्कृष्ट प्रतिभा का प्रदर्शन करने तथा अनेक स्वर्णपदकों से भारत को सम्मान दिलाने के बाद उनमें गर्व भरा आत्मविश्वास झलकता है परंतु यह गर्व भरा आत्मविश्वास भी सरलता की आभा से ही प्रदीप्त है।


बारह वर्ष की आयु में उषा ने कन्नौर खेल छात्रावास में प्रवेश लिया। यहाँ पढ़ाई के साथ-साथ खेलों के प्रशिक्षण की भी उत्तम व्यवस्था है। यहाँ पर उषा को प्रतिमाह छात्रवृत्ति भी मिली। यहाँ छात्र-छात्राओं के आवास तथा भोजन की उत्तम व्यवस्था है। यहाँ पर प्रत्येक विद्यार्थी को छिपी प्रतिभा को पहचानकर उसे तराशा जाता है। श्री ओ.पी. नांबियार नामक प्रशिक्षक ने उषा में छिपी प्रतिभा को पहचाना और प्रशिक्षण आरंभ कर दिया। उषा का आज भी यह मानना है कि नांबियार जैसे कुशल प्रशिक्षक के अभाव में सफलता की इतनी सीढ़ियाँ चढ़ना उसके लिए कठिन था।


चौदह वर्ष की अवस्था में उषा ने विभिन्न दौड़ प्रतियोगिता लेना आरंभ कर दिया। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की विद्यालयी प्रतियो में भाग लिया। आरंभ में वे बाधा दौड़, लंबी दौड़ व लंबी कूद में, लेती रहीं। इन सबमें समय-समय पर उन्होंने अपनी प्रतिभा का पर किया तथा अनेक परस्कार भी प्राप्त किए। इनसे उषा की खेलों के रुचि बढ़ती गई और मन में उत्साह की वृद्धि उत्तरोत्तर होती गई। उ उच्च स्तरीय राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी अपने अच्छे खेल का प्रदर्शन किया।




उनके प्रशिक्षक नांबियार ने उषा की दौड़ने की क्षमता को निखारा। वे वायु सेना से अवकाश प्राप्त एक कुशल प्रशिक्षक हैं। उन्हें 'द्रोणाचार्य पुरस्कार' से भी सम्मानित किया गया। उषा की समस्त दिनचर्या का निर्णय नांबियार अत्यंत कुशलता से लेते रहे। नांबियार ने धीरे-धीरे अनुभव किया कि यदि उषा बाधा दौड़ की अपेक्षा सौ मीटर और दो सौ मीटर दौड में। भाग ले तो वह बेहतर रहेगी। नियमित अभ्यास तथा कठिन परिश्रम के बाद सन 1982 की दिल्ली में आयोजित नवीं एशियाई खेल प्रतियोगिताओं में उषा ने भाग लिया। दो सौ मीटर दौड में जापानी धावक इसोजाकी तथा सौ मीटर दौड़ में फिलिपीन्स की मिस लीडिया से कड़ा मुकाबला किया। इन दोनों प्रतियोगिताओं में वे दवितीय स्थान पर रहीं।


पी.टी. उषा ने सियोल में आयोजित दसवें एशियाई खेलों में चार स्वर्ण तथा एक रजत पदक प्राप्त किया। इन खेलों में भारत को कुल पाँच स्वर्ण पदक मिले थे जिनमें से चार पदक का योगदान उषा ने किया।


सन 1984 में लॉस एंजिल्स में ओलंपिक खेलों का आयोजन किया गया। जब नांबियार को पता चला कि यहाँ पहली बार चार सौ मीटर दौड़। का समावेश किया जा रहा है तो नांबियार ने उषा को इसके लिए तैयार करना आरंभ किया। उषा को पहले भी बाधा दौड का पर्याप्त अनुभव था। मात्र कुछ पल की देरी से उन्होंने अपना स्वर्ण पदक खो दिया तथा चाया। स्थान प्राप्त किया। ओलंपिक के फाइनल तक पहुँचने का गौरव भी उषा ने भारत को दिलाया। भारतीय महिला खिलाडियों तथा धावकों के इतिहास में यह गौरवशाली प्रयत्न सदा के लिए याद करने योग्य क्षण बन गया। 


इसके बाद जकार्ता में आयोजित एशियाई ट्रैक एडं फील्ड प्रतियोगिता ोजन हुआ। भारतीय विशिष्ट धाविका उषा सौ, दो सौ मीटर दौड़ तथा चार सौ मीटर बाधा दौड़ में सर्वोत्तम रहीं। खेल जगत के इतिहास गत कई दशकों में पी.टी. उषा का प्रदर्शन अतुलनीय रहा। निश्चित रूप से पी.टी. उषा भारत ही नहीं एशिया की सर्वोत्तम विका हैं। उनकी अतुलनीय प्रतिभा व विजयी शक्ति के कारण भारत सरकार ने उन्हें 'अर्जुन पुरस्कार' तथा 'पद्मश्री' से अलंकृत किया। खेल जगत की यह विशिष्ट खिलाड़ी भविष्य में भी अन्य धावकों का मार्गदर्शन कर भारत का मस्तक गर्व से उन्नत करेंगी, ऐसी कामना है।