पेड़ की आत्मकथा

Ped ki Aatmakatha 


मैं हूँ, नीम का पेड़। गत पच्चीस वर्षों से मैं यहाँ बगीचे के कोने में हूँ। मुझे वह दिन अच्छी तरह से याद है जब मुझे वनोत्सव के दिन बगीचे के कोने में लगाया गया था। शुरू के कुछ दिन तो बहुत कठिनाइयो से भरे थे। उन्हें याद कर मैं सिहर उठता हूँ।


उन दिनों मेरी आयु वर्षभर की रही होगी। दिन की तेज धूप से सतार आवारा जानवर मुझसे सटकर आराम करते। कभी-कभी छोटे पिल्ले में पंजों से मिट्टी कुरेदने लगते तो मेरी जड़ों में तेज दर्द होता और मैं कराहने लगता। कुछ बच्चों ने शायद मेरा कराहना सुना। उन्होंने कंटीली झाड़ियाँ मेरे इर्द-गिर्द खड़ी कर दी। पर उस दिन एक बुड़िया आई, उसने उन झाड़ियों तो तोड़कर गट्ठर बनाया और चलती बनी।


शाम के समय बच्चे फिर मुझसे मिलने आए। मैंने हिल-हिलकर अपने मन का डर उन्हें बताया। बस, देखते ही देखते वे लोहे का एक जंगला ले आए। अब में सुरक्षित था। बच्चे बहुत प्यार से मुझे सींचते। मैं भी मन ही मन सोचता कि बड़ा होने पर इन्हें अपनी डालियों पर खूब झुलाऊँगा।


समय बीतता गया। अब में विशाल वृक्ष हूँ। मेरी शाखाएँ मजबूत हैं। मेरा तना बहुत मोटा है। अब मैं खड़ा-खड़ा बगीचे में आने-जाने वालों और पास की सड़क के सामने बनी इमारतों को देखा करता हूँ।


बचपन में दूर-दूर तक मुझे बड़े-बड़े पेड़ दिखाई देते थे। धीरे-धीरे घरों की संख्या बढ़ती गई और पेड़ कटते गए। अब तो चारों तरफ ऊँचीऊंची इमारतें दिखाई पड़ती हैं। वाहनों का धुआँ मेरा दम घोट देता है। तेज चलती गर्म हवा को भी केवल मेरा ही सहारा है।


मेरी डालियाँ हरे-भरे पत्तों से लदी रहती हैं। इनमें छोटी-छोटी निबोरियां भी लगती हैं। पकने पर ये पीली हो जाती हैं। बच्चे कभी-कभी इन्हें तोड़कर चूसते हैं। कुछ लोग मच्छरों, कीड़ों को मारने के लिए मेरी पत्तियाँ तोड़कर ले जाते हैं। मुझे खुशी होती है। आखिर, मैं उनके काम आ सका।


तरह-तरह के पक्षियों ने मुझ पर घोंसले बना रखे हैं। दिनभर मैं अकेला खड़ा रहता हूँ पर सुबह के समय मैं बहुत खुश होता हूँ। सुबह मेरी गोद में अनेक पक्षी खेल रहे होते हैं। वे अपने बच्चों को मेरी देखरेख में छोड़कर दाना चुगने चले जाते हैं। ऐसे में मेरी ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है। कभी-कभी शैतान बच्चे आकर पक्षियों के घोंसले तोड़ देते हैं। तब मैं बहुत नाराज होता हूँ और अपनी डालियों को हिला-हिलाकर अपना क्रोध प्रकट करता हूँ।


छुट्टी के दिनों में बच्चे मेरी छाया में तरह-तरह के खेल खेलते हैं। मैं उनके सभी खेलों में रुचि लेता हूँ। बरसात के मौसम में लड़कियाँ मेरी डालियों पर झूला डाल लेती हैं। सावन के महीने में मुझे उनके तरह-तरह के गीत सुनने को मिलते हैं। ये गीत मुझे अपने बचपन की याद दिला देते हैं। मुझे याद है, एक बार एक शैतान बच्चे ने मेरी डाली पर लटककर उसे तोड़ डाला था तब उसके दादा जी ने उसे पेड़ों को नुकसान पहुँचाने से होनेवाली हानियों के बारे में बताया था। वह बालक कई दिनों तक प्रतिदिन मेरे पास आकर मुझे सहलाता रहा। उसके प्रेम और स्नेह को मैं आज भी अनुभव कर रहा हूँ।


शाम के समय पक्षी लौटकर आ जाते हैं तो मैं उन सबकी बातें बड़े शौक से सुनता हैं। अब तेज़ आँधी-तूफ़ान मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाते। मैं धरती को अपनी घनी जड़ों से पकड़े गर्व से खड़ा हूँ। में रात-दिन हवा को स्वच्छ करने में व्यस्त रहता हूँ। मेरी इच्छा है कि मैं जितना हो सके, सदा दूसरों के काम आऊँ।


मैं समाज के हर वर्ग के काम आता हूँ। पहले कुछ लोग ईंधन के लिए मेरी टहनियाँ तोड लेते थे पर आजकल सब मेरी तरफ़ बहुत ध्यान देते हैं। लगता है, जैसे मैं सदा मनुष्य के हितों के बारे में सोचता रहता था, वे भी आजकल हमारे बारे में सोचने लगे हैं। क्यों न सोचें ! आखिर हमारा हजारों वर्षों पुराना साथ है।