आज का विद्यार्थी
Aaj ka Vidyarthi


किसी भी देश की प्रगति तथा सामाजिक सुख-समृद्धि वहाँ के नागरिक के योगदान पर अवलंबित होती है। सामाजिक व्यवस्था में विद्यार्थी का विशिष्ट स्थान है। आज के विद्यार्थी कल के नागरिक व नेता हैं।  

अपने सुनहरे भविष्य की कामना से पूर्व आज पर विचार करना आवश्यक है। देश व काल की परिस्थितियों का प्रत्यक्ष व परोक्ष प्रभाव छात्रों की विचारधारा पर पड़ता है। छात्रों की बदलती मानसिकता आज विश्वव्यापी विचारणीय प्रश्न बन गया है।


प्राचीन ऋषि-मुनियों ने छात्र जीवन को ब्रह्मचर्य आश्रम के अंतर्गत रखा है। तदनुसार विद्यार्थी कठोर संयम और अनुशासन से क्रमिक शिक्षा ग्रहण कर समाजोपयोगी बनता था। विदयार्थी का प्रमुख कर्तव्य अध्ययन माना गया था। कहा गया है-


काक चेष्टा बको ध्यानं, श्वान निद्रा तथैवच,

अल्पाहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणम्। 


तब माना जाता था कि विद्यार्थी को एकाग्रचित्त चिंतन-मनन करना चाहिए। कम भोजन, गृहसुखों का त्याग तथा अल्प निद्रा लेनी चाहिए। विद्यार्थी जीवन में आनंद, प्रमोद, सुख, चिंता सबसे दूर रहना चाहिए। परंतु आज का विद्यार्थी इन गुणों से कोसों दूर है। समय के साथ सामाजिक जीवन व चिंतन-प्रणाली में अंतर आने से आज के विद्यार्थी में इन गुणों का सर्वथा अभाव दिखाई देता है।


आज का विद्यार्थी अपने भविष्य की चिंता में ग्रस्त निरंतर संघर्षरत है। पाठ्यक्रम के बोझ तथा प्रतियोगिताओं व प्रवेश की आपाधापी ने उसक समस्त नैतिक मूल्यों को ताक पर रख दिया है। अपने सुनहरे भविष्य की कल्पना लिए वह परिस्थितियों का गुलाम बन दिशाहीन होकर भटक रहे हैं।


आज का विद्यार्थी प्राचीन विद्यार्थी की भांति न तो मितव्ययी है न संयमी। पुस्तकों की बढ़ती कीमतें, आधुनिक शिक्षा प्रणाली से जनता उसका भविष्य प्रतिवर्ष उस पर हजारों रुपए खर्च करवाता है। अपने भरपूर प्रयत्नों के पश्चात भी जब वह जीवन के क्षेत्र में स्वयं को असफल पाता है तो घोर निराशा से भरा वह उपद्रवों, हिंसा, तोड़फोड़ तथा राजनीति के दलदल में फँसता जाता है।


विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता की समस्या विकट रूप धारण करती जा रही है। वर्तमान शिक्षा पद्धति के दोषों के कारण छात्रों में नैतिकता का पर्याप्त अभाव पाया जाता है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में वह पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त करता है। अपनी संस्कृति व मूल्यों के प्रति उसकी कोई आस्था नहीं रहती। परिणामतः छात्रों में अच्छे संस्कारों का अभाव देखा जाता है। आज का विद्यार्थी पश्चिमी सभ्यता की अंधी दौड़ का हिस्सा बन चुका है। चलचित्रों का शौक, फैशन, अभद्र व्यवहार उसके जीवन के अंग बन गए हैं। आज के विदयार्थी की आस्था भारतीय नैतिक व सामाजिक मूल्यों में नहीं है। उसे अपनी प्राचीन वैभवशाली संस्कृति का ज्ञान ही नहीं है।


आज के विद्यार्थियों को पथभ्रष्ट करने में राजनैतिक दलों की भी भूमिका है। विभिन्न राजनैतिक दल अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए धन देकर छात्रों को राजनीति में घसीटते हैं। छात्र अपना अध्ययन का समय अन्य गतिविधियों में नष्ट करते हैं। भावना के आवेग में वे अपने हित-अनहित का ख्याल नहीं कर पाते तथा राजनैतिक आंदोलनों का हिस्सा बनकर नारेबाजी, हड़ताल, अनुशासनहीनता के दलदल में डूबते जाते हैं।


विद्यार्थी जीवन भविष्य की नींव होता है। चारित्रिक बल तथा नैतिकता के अभाव में युवा किसी राष्ट्र को सुदृढ़ कैसे बना सकते हैं? आज विद्यालयों से विश्वविद्यालयों तक के छात्रों में असंयम व उच्छृखलता पाई जाती है। गुरुजनों के प्रति असम्मान तथा नैतिक मूल्यों के प्रति अनास्था सर्वत्र दिखाई देती है। यही कारण है कि छात्र अनेक व्यसनों में लिप्त हो जाते हैं। आज की इस भीषण समस्या को रामधारी सिंह दिनकर में व्यक्त किया है-


और छात्र बड़े पुरजोर हैं 

कालिजों में सीखने को आए तोड़-फोड़ हैं। 

कहते हैं पाप है समाज में 

धिक हम पै! जो कभी पढ़े इस राज में 

अभी पढ़ने का क्या सवाल है?


अभी तो हमारा धर्म एक हड़ताल है। 


आज के विद्यार्थी की दुर्दशा का चित्रण कवि ने अपने शब्दों में ही ही किया है। समस्त विद्यार्थी जगत में अशांति व अराजकता व्याप्त है। विद्यार्थी समाज दिग्भ्रमित है, वह अपने भविष्य के प्रति अपने कर्तव्य अनभिज्ञ है। इसका दोष विद्यार्थी को नहीं समाज को है. हमारी व्यवस्था को है।


आज के विद्यार्थी को वह सुसंस्कृत, पुष्ट और शांत वातावरण नहीं मिलता जिसका वह अधिकारी है। कठोर परिश्रम, असंख्य धनराशि के व्यय होने के बाद भी उसे भविष्य से कोई आशा नहीं। छात्रों की सामर्थ्य व क्षमता पर संदेह नहीं करना चाहिए। विदयार्थियों को ऐसा स्वस्थ सामाजिक वातावरण प्रदान करना चाहिए जिससे उनके हृदय में जोश और उमंग का संचार हो तथा वे अपनी समस्त शक्तियों का रचनात्मक उद्देश्यों में प्रयोग कर सभ्य व उन्नत नागरिक बन सकें।


विद्यार्थियों को सही दिशा दिखाने की जिम्मेदारी समस्त राष्ट्र की है। ताकि आज के विद्यार्थी कल के सुधारक, नेता, देशभक्त, वैज्ञानिक व उद्योगपति बन देश को उन्नति की राह पर ले जा सकें और कहा जा सके-


सामाजिक बलधार बनेंगे नैतिक नेता, 

होंगे सुप्रसिद्ध सुधारक ग्रंथ प्रणेता, 

भारत को फिर विश्वशिरोमणि कर देंगे।