सत्यम शिवम सुंदरम
Satyam Shivam Sundaram


साँच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप।

जाके हिरदे साँच है, ताके हिरदे आप॥ 


सत्य परम पुनीत भावना है। कवि ने सच ही कहा है कि सत्य एक कठोर तपस्या है। सत्य ईश्वर का स्वरूप है। भारतीय दर्शन में विभिन्न मनीषियों ने तरह-तरह से सत्य की व्याख्या की है। हमारा तात्पर्य उस ब्रह्म स्वरूप सत्य से है जो एक भावना मात्र है, जो सतत जीवन के यथार्थ से जूझता है तथा जिस सत्य के लिए 'सत्यमेव जयते' की अलौकिक गूंज युगों से विश्व को सम्मोहित करती रही है।


सत्य वह मानवोचित गुण है जिससे मनुष्य समाज में सम्मान पाता है। सत्य के स्वरूप को जाननेवाला, सत्य का जीवन में पालन करनेवाला तथा सदा सत्य बोलनेवाला पुरुष युगपुरुष बन जाता है। सत्य की सुगंध दूर तक फैलती है। सत्य सब गुणों का शिरोमणि रत्न है जिसकी आभा को छूना इतना सहज नहीं।


भारतीय संस्कृति में सदा से 'सत्यंवदेत धर्मं चरेत' की शिक्षा दी जाती। सत्य शाश्वत होता है। यह काल, समय, परिस्थिति किसी से प्रभावित नहीं होता। यह सच है कि सत्य की राह में फूल नहीं, कांटे अधिक मिलत हैं। सत्य बोलनेवाले व्यक्तियों को समाज में अनेक विरोधों का सामना करना पड़ता है। जीवन में कभी-कभी सफलता भी उसके लिए मृग मरीचिका बन जाती है परंतु युगों तक अमर बनने के लिए धारा के विपरीत चलना ही पड़ता है। जो समाज में अपना विशिष्ट स्थान बनाना चाहते हैं। उन्हें कठिनाइयाँ सहनी ही पड़ती हैं पर निश्चित रूप से जीत सत्य की ही होती है।


सत्य वह चमकता सूर्य है जिसकी तेज किरणें शीघ्र ही झूठ की काली घटाओं को भेदकर प्रकट हो जाती हैं। सच बोलनेवाले व्यक्ति के मुख पर अभूतपूर्व तेज झलकता है। सत्यवादी हरिश्चंद्र की कथा युगों से लोग कहते-सुनते आए हैं। महात्मा गांधी ने भी सत्य की महिमा का गुणगान किया है। सत्यवादी पुरुष की महिमा युगों तक गाई जाती है। जीवन समाप्त होने पर भी उसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैलती रहती है।


सत्य बोलने से मनुष्य को स्थायी विजय व सफलता मिलती है। व्यक्ति झूठ बोलकर क्षणमात्र के लिए किसी का मन मोह सकता है. छोटी-मोटी सफलताएँ प्राप्त कर सकता है पर सच की आयु बहुत लंबी होती है।  

सत्यवादी पुरुष इस लोक में सुख-शांति से रहता है उसे किसी प्रकार का भय नहीं सताता जबकि असत्यवादी सदैव चिंतामग्न रहता है। उसे अपनी पोल खुलने का सदा भय लगा रहता है। पोल खुल जाने पर समाज में सर्वत्र उसकी निंदा होती है तथा लोग उस पर विश्वास करना छोड़ देते हैं।


सत्य वह महान गुण है जिस पर हजारों वर्षों से विभिन्न दार्शनिक चिंतन-मनन करते रहे हैं। याज्ञवल्क्य से लेकर महात्मा गांधी तक ने सत्य के गुणों की महिमा का गान किया। सुकरात और कन्फ्यूशियस दोनों ने इस पर अपने विचार व्यक्त किए। सत्य की मीमांसा करने पर ही हमें इसके गुण पता चलते हैं। क्रोचे जैसे चिंतक का मानना है कि सत्य का स्वभाव बड़ा कोमल होता है। इसमें पलायन, छल, आडंबर का तनिक भी स्थान नहीं होता।


सामाजिक जीवन में सत्य की बहुत महिमा है। सत्यवादी पुरुष अपना जीवन यापन सुख-शांति से करता है। शेक्सपियर ने लिखा है कि-While you live tell the truth and shame the devil' सत्य मार्ग से मानव-जीवन गंगा-सा पावन रहता है। मानवीय दुर्भावनाएँ कोसों दूर रहती हैं तथा सत्य की राह पर चलनेवाला न केवल अपना अपितु समाज का भी भला करता है। 


सत्यभाषण की युगों से महिमा गाई जा रही है। सत्य की राह पर चलनेवाले को अत्यंत सतर्क रहना पड़ता है। सत्य वचन से यदि किसी का नुकसान हो तब मौन ही भला-ऐसा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था।


प्राचीन संस्कृत साहित्य में भी कहा गया है कि सत्यं ब्रूयात, प्रियं ब्रूयात-अर्थात सत्य बोलो, प्रिय बोलो। कभी भी अप्रिय लगनेवाला सत्य नहीं बोलो। 


सत्य का विवेक से गहन संबंध है। सत्यभाषण अविवेकी के लिए सम्मान नहीं, निंदा तथा असफलता का कारण भी बन सकता है। इस अलौकिक दिव्य गुण का प्रयोग मानवोचित कार्यों, समाज की उन्नति के लिए किया जाना चाहिए। सत्य की रक्षा के लिए राजा हरिश्चंद्र ने राजपाट का त्याग किया, अनेक यातनाएँ सहीं, पत्नी व पुत्र को बेचा परंतु सत्यपालक बने रहे। सत्य की रक्षा के लिए राजा दशरथ ने अपने प्रिय पुत्र राम का बिछोह सहा तभी यह उक्ति प्रसिद्ध हो गई-


रघुकुल रीत सदा चली आई 

प्राण जाई पर वचन न जाई। 


छात्र जीवन में सत्यभाषण का अत्यंत महत्व है। छात्रों को सत्य की राह पर चल अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाना होता है। सत्य की राह एक स्वस्थ, उन्नत व समृद्ध जीवन प्रदान करती है तथा असत्य की राह पराजय, निंदा व अपयश तक पहुँचाती है। उन्नति व जय के स्थायित्व के सत्य का अनुसरण सदा कल्याणकारी होता है।