आतंकवाद-समस्या 
Atankwad ki Samasya 


'क्या करेगा प्यार वह भगवान को? 

क्या करेगा प्यार वह इंसान को? 

जन्म लेकर गोद में इनसान की

प्यार कर पाया न जो इनसान को?' 

इंसान से शैतान बन जाने का दुष्परिणाम है-आतंकवाद। इंसान शैतान तब बन जाता है जब उसकी आँखों पर संकीर्ण विचारों या स्वार्थ का परदा पड जाता है। यँ तो यह समस्या शक्तिशाली, अहंकारी वर्ग के अन्याय के विरुद्ध संगठित होकर आवाज़ उठाने से शुरू हुई थी, लेकिन आज यह स्वेच्छाचारिता, निर्ममता और हैवानियत का पर्याय बन चुकी है। विश्व के कुछ देशों से शुरू होकर आज यह विश्वव्यापी स्वरूप ग्रहण कर चकी है। नशीले पदार्थों की तस्करी ने आग में घी का काम किया है क्योंकि इस धंधे की सारी काली कमाई आतंकी कार्रवाइयों के लिए आधुनिक हथियारों व आतंकवादी प्रशिक्षण पर खर्च की जाती है। धार्मिक कट्टरता एवं बेरोज़गारी ने इस समस्या को पनपने के लिए उर्वर भूमि प्रदान की है। आतंकवादी धर्मांधता फैलाकर धर्म के वास्तविक रूप से लोगों को दूर कर देते हैं। उनकी भावनाओं को भड़काकर धार्मिक वैमनस्य फैलाकर, सुख-शांति को नष्ट कर देते हैं। अपनी पश्चिमी, उत्तरी और उत्तर-पूर्वी सीमाओं से आज आतंकवाद पूरे देश में दहशत का वातावरण बना चुका है। आवश्यकता है प्रत्येक नागरिक को जागरूक करने की, उनमें एकता, उदारता, सहिष्णुता और बंधुत्व की भावना के विकास का। हर हाथ को काम देने की तथा सरकार द्वारा ठोस और कठोर कदम उठाने की। यदि सभी देश, स्वार्थ से ऊपर उठकर संगठित होकर प्रयत्न करें तो हम आतंकवाद से मुक्ति पाकर सुख-शांति का जीवन प्राप्त कर सकते हैं।