नैतिक-शिक्षा की आवश्यकता
Naitik Shiksha ki Aavyashakta 

व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना शिक्षा का मूल उद्देश्य है। आज की शिक्षा व्यवस्था में मानसिक विकास को सबसे अधिक महत्व दिया गया है। शारीरिक विकास के लिए विभिन्न खेल-कूद, व्यायाम, योग जैसी गतिविधियों के नैतिक अथवा विकास की पूर्णतया उपेक्षा की गई है। नैतिक मूल्यों एवं सुसंस्कारों का सारा उत्तरदायित्व परिवार एवं समाज पर है। आज की उपभोक्तावादी संस्कृति के चलते परिवारों से भी नैतिक-मूल्य गायब होते जा रहे हैं। यह संस्कृति व्यक्ति को उपभोग ना सिखाती है-त्याग करना नहीं। यही कारण है कि वर्तमान पीढ़ी स्वार्थी एवं आत्मकेंद्रित होती जा रही है। अभद्र भाषा, अभद्र व्यवहार आम बात हो चली है। आवश्यक है कि विद्यालयों में भी नैतिक-शिक्षा पर ध्यान दिया जाए। सत्य, अहिंसा, स सहयोग, सौहार्द, सहिष्णुता, अनुशासन-प्रियता, दया, करुणा, परोपकार और बड़ों के प्रति सम्मान जैसे नैतिक मूल्यों को अपनाने का वहाँ वातावरण निर्मित करना आवश्यक है। हाल ही में बोर्ड द्वारा पूरीक्षा के प्रश्न-पत्रों में मूल्य-आधारित प्रश्नों का समावेश एक शुभारंभ है। इस दिशा में और कदम भी उठाए जाने आवश्यक हैं। हिंदी. अंग्रेजी जैसे विषयों के पाठ्य-क्रम निर्माण में यदि नैतिक मूल्यों का ध्यान रखकर पाठों का चुनाव हो तो यह एक उपयोगी कदम होगा। भारत जैसे बहुधर्मी, सांस्कृतिक वैभिन्य वाले देश में 'सर्वधर्म समभाव', 'जियो और जीने दो' जैसे उदार जीवन-मूल्यों की प्रेरणा देना आवश्यक है। ये मूल्य ही चरित्र का निर्माण करते हैं। जिस प्रकार बूंद-बूंद से घट भरता है उसी प्रकार देश के व्यक्ति से उस देश का चरित्र निर्मित होता है। पाठ्य-क्रम एवं मूल्यांकन में नैतिक मूल्यों को स्थान देने के साथ-साथ अध्यापकों का आचरण भी आदर्श होना आवश्यक है।