बढ़ती जनसंख्या: घटते संसाधन 
Badhti Jansankhya Ghatate Sansadhan

जनसंख्या की दृष्टि से भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है। पहले स्थान पर रहे चीन में जिस तेज़ी से जन्म दर घट रही है, वह दिन दूर नहीं जब भारत पहले स्थान पर आ जाएगा। यूँ तो जनशक्ति किसी देश के संसाधनों का महत्त्वपूर्ण घटक है किंतु भारत में जनसंख्या का अधिकांश भाग अशिक्षित, अप्रशिक्षित होने के कारण अनुत्पादक है। धरती, जल, जंगल, व अन्य संसाधन जनसंख्या की तुलना में तेजी से घट रहे हैं। रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताएँ तक पूरी नहीं होती। कोशिशों के बावजूद जनसंख्या नियंत्रण में हम सफल नहीं हो पा रहे हैं। प्रमुख कारण हैं-छोटी उम्र में विवाह, भाग्यवादिता, अंधविश्वास और पुत्र की कामना। अशिक्षित ही नहीं शिक्षित परिवारों तक में लड़के की प्रतीक्षा में लड़कियाँ जन्म लेती रहती हैं। संसाधनों पर बढ़ते बोझ के कारण समस्या विकराल रूप लेती जा रही है। गाँवों में कृषि योग्य भूमि सीमित है इसलिए गाँवों से बड़ी संख्या में लोग। शहरों में बस रहे हैं। आवश्यकताएँ बढ़ रही हैं किंतु आपूर्ति कम है। निर्यात से आयात बढ़ रहा है। जिसका हमारी आर्थिक प्रगति पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। एक ओर जनसंख्या पर नियंत्रण करने के लिए शिक्षा के प्रसार और। लोगों में जागरूकता लाने की आवश्यकता है तो दूसरी ओर इस 'मानव-संसाधन' की मात्रा और गुणवत्ता के बीच स्वस्थ संतुलन लाने की दिशा में भी ठोस कदम उठाने आवश्यक हैं।