क्रिकेट और मैच-फिक्सिंग 
Cricket aur Match Fixing 

हम भारतीयों के लिए क्रिकेट केवल एक खेल नहीं-जुनून है। क्रिकेट खिलाड़ियों की लोकप्रियता सिनेमा के सितारों से भी बढ़कर हैं। क्रिकेट का मैच हो तो सिनेमाघर खाली रहते हैं, दफ्तरों में काम रुक जाता है, विद्यार्थी पूरीक्षा की तैयारी छोड टी०वी० के सामने बैठ जाते हैं। लेकिन जिस तरह कुछ भ्रष्ट धर्मगुरुओं के आचरण से धर्म कलंकित हुआ है उसी प्रकार कुछ भ्रष्ट और लोभी क्रिकेट अधिकारियों और खिलाड़ियों के कारण क्रिकेट बदनाम हुई है। यह निर्विवादित तथ्य है कि क्रिकेट मैचों पर अरबों रुपयों का सट्टा खेला जाता है। जहाँ इतनी बडी राशि लगी हो वहाँ अनैतिकता का प्रवेश न हो-यह संभव नहीं। अधिक से अधिक पैसा बनाने के लिए ये सट्टेबाज खिलाडी तो खिलाडी, रैफ़रियों तक को खरीदने की कोशिश में लगे रहते हैं। रातोंरात अमीर बन जाने और ऐशोआराम की जिंदगी जीने का लोभ निर्बल चरित्र वाले खिलाड़ियों को सट्टेबाजों के जाल में फंसा देता है। बल्लेबाजों को जल्दी आउट हो जाने और गेंदबाजों को धीमी या तेज़ गेंदबाजी करने के आदेश खेल के समय ही संकेतों से दे दिए जाते हैं। उनके इशारों का पालन करने का संकेत खिलाड़ी भी कभी जेब से रुमाल बाहर लटकाकर तो कभी बाँह ऊपर उठाकर देते हैं। कभी-कभी तो एक ही दल के कई खिलाड़ी मैच-फिक्सिंग में शामिल हो जाते हैं। कहा तो यहाँ तक जाता है कि वर्ल्ड-कप' तक में मैच-फिक्सिंग होती है। बेचारे दर्शक समझ नहीं पाते कि कैसे कोई कुशल बल्लेबाज़ मात्र 10 रन बनाकर ही आउट हो जाता है और क्यों खतरनाक गेंदबाज़ की गेंदों पर चौके-छक्के लगते रहते हैं। सट्टेबाजों की चाँदी हो जाती है और बेचारे क्रिकेट-प्रेमी जान ही नहीं पाते कि उन्हें मूर्ख बनाया जा रहा है। ऐसा नहीं कि इसकी रोकथाम के प्रयत्न नहीं हुए। कुछ खिलाड़ियों पर आजीवन खेल पर प्रतिबंध लग चुका है, कुछ को हवालात की हवा खानी पड़ी है लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात। तुलसी ठीक कह गए हैं—'माया महा ठगिनी में जानि'। धन का लोभ जो न कराए कम है। इससे मुक्ति तभी संभव है जब क्रिकेट-बोर्डों को 'चोर-चोर मौसेरे भाइयों के कब्जे से मुक्त करके क्रिकेट प्रेमियों के हाथों में सौंपा जाएगा। सरकार का नियंत्रण आवश्यक है। एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है-हमें उन सडी मछलियों से क्रिकेट के तालाब को मुक्त कराना ही होगा।